मंगलवार, 24 मार्च 2015

औरत तेरी यही कहानी

"’ औरत तेरी यही कहानी ’’

आंचल मे है दूध, आंखों मे पानी,
त्याग, सेवा और बलिदान है तेरी निशानी
औरत तेरी यही कहानी। औरत तेरी यही कहानी।

तू ममता की देवी है
तू मानव की जननी है,
पर तेरी सेवा न करते प्राणी-
औरत तेरी यही कहानी।

कभी-कभी तू मां बनकर
बच्चों को है गीत सुनाती
कभी- कभी तो अद्धांगिनि बनकर,
मर्दों को है तू बहलाती -

तू मानव की क्षुधा मिटाती
तू सब दुःखों को सह जाती
औरत तेरी यही कहानी।

तुझ बिन जीवन व्यर्थ हो जाता,
तुझ बिन उन्नति अपूर्ण रह जाती,
मार्ग दर्शक बन तू मार्ग दिखाती-
करते जब हैं लोग मनमानी।

ममता तुझ मे भर आती जब
बरसाती घर मे अमृत तब-
ममता,स्नेह और आर्दश बिखेर कर
घर को बनाती स्वर्ग है तब।

कभी -कभी तू भगिनी बनकर
हाथों मे है राखी पहनाती
उस राखी की लाज को-
दहेज के लालची कुत्तों से,
बचा न पाता है प्राणी।

दहेज के कारण तब तू, दे देती है अपनी कुर्बानी।
औरत तेरी यही कहानी। औरत तेरी यही निशानी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें