गांधी तेरे देश मे
गांधी तेरे देश मे -अहिंसा की आड़ मे,
पशुओं के भेष मे,
लाखों हिंसक जीव -खडे हैं इंतजार मे
निरीह जनता को खाने।देश भक्तों के भेष मे,
सत्ता की आड़ मे -घोटालों के फेर मे,
अनेकों बगुला भगत-
खड़े हैं कतार मे,
अपना उल्लू सीधा करने।न सुरक्षित हैं इंसान
न मजदूर न किसान,
सभी बन गये हैं -’’आदिमानव’’
सभ्यता से विहीन,
स्वार्थी व नेत्रहीन।खड़ग सस्ती हो गयी है, और -
बढ गये हैं दाम अनाजों के।।
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