अंतिम बार गोमो स्टेशन पर दिखे थे नेताजी
"तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा" का नारा देने वाले नेताजी के जीवन से जुडी है 18 जनवरीगिरिडीह (राजेश कुमार) : नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज ही के दिन 18 जनवरी 1941 को एक पठान के वेश में अपने महा निष्क्रमण यात्रा के दौरान धनबाद जिले के गोमो पहुंचे थे और गोमो रेलवे स्टेशन से पेशावर के लिए पेशावर मेल (कालका मेल) में सवार हुए थे। उसके बाद नेताजी फिर कहीं नही दिखे। यूं कहें कि उसके बाद रात के गुमनाम अंधेरे में एक चमकता हीरा न जाने कहां गुम हो गया।
नेताजी को लेकर उनके एक दोस्त दिल्ली जानेवाली कालका मेल में चढ़ाने गोमो आए थे। हालांकि नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक पठान के वेश में थे और उन्हें पहचान पाना कठिन था। ट्रेन के एक कंपार्टमेंट में सवार हुए। उनके सवार होने के तुरंत बाद ही ट्रेन खुल गयी। पठान ने परिचित से हाथ हिला कर विदा लिया।
नेताजी काफी देर तक हाथ हिलाते रहे थे। तब परिचित जान नहीं पाया था कि नेताजी से उनकी फिर कभी मुलाकात होगी कि नहीं। परिचित देर तक ट्रेन की तरफ ताकते रहे थे। ट्रेन के सामने से गुजर जाने के बाद पीछे प्रकाश का दो पुंज काफी दूर तक दिखा और फिर वह अंधेरे में विलीन हो गए। इसके बाद नेताजी कहीं नहीं मिले। उनके बारे में फिर किंविदंतियां ही शेष रह गयी
"तुम मुझे खून दो मैं तुझे आजादी दूंगा" स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह नारा देने वाले आजाद हिंद फौज के नायक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का धनबाद से एक तरह से पारिवारिक रिश्ता था। यहां उनके भतीजे अशोक बोस केमिकल इंजीनियर थे। नेताजी तब यहां आते-जाते थे। नेताजी ने यहां देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन की शुरुआत की। इसके खुद अध्यक्ष थे। उन्होंने यहां मजदूरों के हक की लड़ाई लड़ी थी।
18 जनवरी 1941 को गोमो से ऐतिहासिक महानिष्क्रमण यात्रा से दो दिन पहले ही भतीजे शिशिर बोस ने एक पठान के रूप में उन्हें बरारी कोक वक्र्स में लाया था। यहां से शिशिर बोस ही उन्हें छोड़ने गोमो अपने भाई की कार से गए थे।
आज गोमो में उनके महा निष्क्रमण की याद दिलाता प्लेटफॉर्म संख्या एक और दो के बीच उनकी प्रतिमा स्थापित है साथ ही पूरे स्टेशन परिसर में नेताजी का चित्र बनाया गया है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नही छोड़ता है। चित्र में नेताजी को ट्रेन में एक पठान के वेश में चढ़ता दिखाया गया है।
धनबाद में सन 1930 में देश की पहली रजिस्टर्ड मजदूर यूनियन कोल माइनर्स टाटा कोलियरी मजदूर संगठन की स्थापना नेताजी ने की। जब अंग्रेजों ने नेता जी को अपने आवास में नजरबन्द किया था, उस दौरान वह वहां से जियाउद्दीन नामक पठान का वेशधर कर वंडर कार से 14 जनवरी 1941 को यहां पहुंचे थे।
तब भतीजे ने उन्हें अपने घर में शरण दी थी। नेता जी दिनभर यही रहे, यहीं भारत में उनका आखिरी पड़ाव था। नेता जी की याद में बीसीसीएल ने ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए यहां पार्क बनवाया।
लेकिन वह देखरेख के अभाव में वर्षों खंडहर बना रहा। अब इस पार्क की सुधि बीसीसीएल ने ली है। धनबाद से जुड़ी नेताजी की और भी स्मृतियां हैं। यहां का चप्पा-चप्पा उनकी यादों से जुड़ा है. बावजूद इसके आज तक यहां की उनकी निशानियां सहेजने की सरकार ने कोशिश नहीं की।
18 जनवरी 1941 रात के वक्त अपने वंडर कार से नेताजी डॉ शिशिर बोस के साथ धनबाद के गोमो स्टेशन पहुंचे। अंग्रेजी फौजों और जासूसों से नजर बचा कर गोमो हटियाटांड के घने जंगलों में छिपे रहे थे जंहा उन्होंने स्वतंत्रता सेनानी अलीजान और वकील चिरंजीव बाबू के साथ एक गुप्त बैठक की थी। जहां नेताजी छिपे थे वहां आज आजाद हिंद स्कूल है। जो आज भी उनकी याद क्षेत्र वासियों को दिलाती है।@News Update,Jharkhand