रविवार, 13 अक्टूबर 2019

गोल्डेनकार्ड बनाने में युद्धस्तर पर जुटा है जिला प्रशासन

आयुष्मान भारत योजना के तहत गोल्डेनकार्ड निर्माण की दिशा में युद्ध स्तर पर जुटा है जिला प्रशासन

*गिरिडीह-*  केंद्र सरकार की महात्वाकांक्षी योजना आयुष्मान भारत एक जन आरोग्य योजना है अर्थात यह एक स्वास्थ्य योजना है। यह योजना 1 अप्रैल 2018 से देश मे लागू किया गया है। जिसके तहत आर्थिक रूप से कमजोर लोगों (बीपीएल धारकों) को स्वास्थ्य बीमा मुहैय्या कराना है। इस योजना के अंतर्गत आने वाले परिवार को 5 लाख तक केशरहित स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाता है।
           इस योजना के लागू होने के बाद से गिरिडीह जिला प्रशासन इस दिशा में कार्य कर रही है। प्रारम्भिक दौर में इस योजना के तहत लाभुकों का निबंधन सदर अस्पताल में शुरू हुआ बाद में प्रज्ञाकेन्द्रों पर भी इसका निबन्धन शुरू हुआ। लेकिन प्रज्ञा केंद्र संचालक इस दिशा में काफी उदासीनता बरतने लगी। परिणामतः जिले को प्राप्त 20 लाख 97 हज़ार 519 लाभुकों का निबन्धन कर उनका गोल्डेनकार्ड बनाने के लक्ष्य के अनुरूप कार्य नही हो पाया। तब जिला प्रशासन ने इस कार्य मे पीडीएस संचालकों को लगा कर युद्ध स्तर पर गोल्डन कार्ड बनवाने की दिशा मे कार्य प्रारंभ की। जिसका परिणाम यह निकला कि अब तक लक्ष्य के अनुरूप 20 प्रतिशत की उपलब्धि प्राप्त कर लिया और जिले के 4 लाख 26 हज़ार 609 कार्ड धारियों का गोल्डन कार्ड निर्मित करा लिया।


          हालांकि जिला प्रशासन लक्ष्य के अनुरूप शत प्रतिशत उपलब्धि हासिल करने की दिशा में अभी भी युद्ध स्तर पर जुटा है। इसके लिये जंहा उपयुक्त गिरिडीह राहुल कुमार सिन्हा ने जिले के सभी बीडीओ को आवश्यक निर्देश दिया है। वंही जिला आपूर्ति पदाधिकारी पवन कुमार मण्डल ने जिले के जमुआ, तिसरी, देवरी, गांवा, बगोदर, सरिया, बिरनी, गांडेय एवं बेंगाबाद प्रखंड में पीडीएस डीलरों, सीएससी संचालकों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक कर सबों को गोल्डेनकार्ड निर्माण में तेजी लाने निर्देश दिया है और बढ़चढ़ कर इस कार्य मे सहयोग करने की अपील भी किया है।
                वंही 100 से अधिक वैसे सीएससी संचालकों जिन्होंने इस कार्य मे असहयोग किया और अरुचि दिखायी है उनका आईडी ब्लॉक कर दिया है। साथ ही भविष्य में उन्हें तथा उनके परिवार के किसी भी सदस्य को सीएससी संचालन के कार्य से वंचित रखने का निर्देश जिला सीएससी मैनेजर को दिया है।
       गोल्डन कार्ड निर्माण के लिये जिला प्रशासन द्वारा सभी जनप्रतिनिधियों खास कर पंचायत के मुखिया से यह अनुरोध किया गया है कि वह अपने पंचायत के सभी लाभुक परिवारों का गोल्डन कार्ड निर्माण कराने में सहयोग करें और जिन मुखिया के पंचायत में शतप्रतिशत उपलब्धि प्राप्त होगी उन्हें सम्मानित किया जायेगा।

महेशमुण्डा में 77 वर्षों से अनवरत जारी है माता लक्ष्मी की पूजा

77 वर्षों से अनवरत जारी है महेशमुण्डा में माँ लक्खी की पूजा अर्चना

14 व 15 अक्टूबर को लगेगा दो दिवसीय मेला



गिरिडीह :-  जिले के बेंगाबाद प्रखंड अंतर्गत महेशमुण्डा रेलवे स्टेशन परिसर ऱघेयडीह में श्री श्री लक्ष्मी पूजा वर्ष 1942 से अनवरत जारी है। इस पूजा की शुरुआत ग्रामीण यदुनंदन गोस्वामी के द्वारा किया गया था। बताया जाता है कि उस समय सम्पूर्ण इलाके में आकाल पड़ी थी। खेतों में बोये गये धान के बिचड़े व खेत सब सूखने लगे थे। चहुंओर पानी के लिये हाहाकार मच गयी थी। उसी को दूर करने की मन्नत दिल मे लिये यदुनंदन गोस्वामी ने माता लक्की की पूरे भक्ति भाव से पूजा अर्चना किया था। कहते है कि उनकी श्रद्धा भक्ति से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो गयी थी। परिणामस्वरूप सम्पूर्ण इलाके में अच्छी वर्षा हुई जिससे फसल भी काफी अच्छी हुई थी। और, लोगों पर छाये आकाल का संकट टल गया था। उस वक़्त से ही प्रत्येक वर्ष महेशमुण्डा में माता लक्खी की पूजा अर्चना बड़े ही धूमधाम से की जाती है।
          लक्की पूजा होने के बाद से लोग अपनी धान की फसल की कटाई शुरु करते हैं।

साम्प्रदायिक सौहार्द का मिशाल है यह पूजा

     महेशमुण्डा में हर वर्ष शरदपूर्णिमा की अर्ध रात्रि में होने वाली माता लक्खी की पूजा साम्प्रदायिक सौहार्द की एक बड़ी मिशाल है। इस पूजन का खासियत यह है कि यंहा माता की पूजा अर्चना न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम समुदाय के लोग भी बड़े ही धूमधाम से करते हैं। और, माता से दोनों ही समुदाय के लोग मन्नतें भी मांगते है। किवंदिति है कि यंहा माँ से मांगी गयीं हर मुराद अवश्य पूर्ण होती है।

क्या कहते है आयोजक

      माता लक्खी की पूजा अर्चना के बाबत पूजा समिति के अध्यक्ष व जिला परिषद सदस्य धनंजय राणा ने बताते हैं कि माता की पूजा अर्चना करने के बाद ही हमलोग अपनी अपनी फसल की कटाई शुरु करते हैं। यह परम्परा हमारे पूर्वजों के द्वारा शुरू की गयी है। जिसका पालन हमलोग अब तक करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले यंहा एक दिवसीय पूजानोत्सव हुआ करता था। बाद में तीन दिवसीय आयोजन शुरू हुआ। जिसमें पहले दिन शरदपूर्णिमा की मध्यरात्रि में माँ लक्ष्मी की विधिवत पूजन होता है। उसके बाद दो दिवसीय मेला लगता है। जिसमे हर प्रकार के खेल तमासे, झूला, विभिन्न प्रकार की दुकानें आदि लगते है। दूर दराज के लोग इस मेला का लुत्फ उठाने व खरीददारी करने पहुंचते हैं। हम सबों का हमेशा बढ़-चढ़कर आकर्षक मेला लगाने का प्रयास रहता  हैं ताकि इस मेला के प्रति लोगों का आकर्षण बना रहे।

इनका रहेगा सराहनीय योगदान

इस वर्ष लक्खी पूजा मेला के सफल संचालन में मुख्य रूप से पूजा समिति के अध्यक्ष व जिप सदस्य अध्यक्ष धनंजय राणा, सचिव बैजनाथ राणा, उप सचिव विजय गोस्वामी, जितेंद्र सिंह, मैनेजर महतो, सदानंद राणा, गोपाल राणा, सुधीर यादव, मंदिर मिर्जा, जनार्दन दास, सुखदेव राणा, मनोज बैठा, धारा दास, राजू राणा, मथुरा बैठा, एजाज मिर्जा, विनोद राणा समेत रघेयडीह बंधाबाद के लोगों का अहम योगदान रहेगा।


"तुलसी कौन थी"

​*तुलसी कौन थी?*


तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.

वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.

एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा –

स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प

नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता ।

फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे

ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूँछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।
सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे

सती हो गयी।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब

भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से

इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और में

बिना तुलसी जी के भोग

स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में

किया जाता है.देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है !