मंगलवार, 9 अक्टूबर 2018

रेलवे ट्रैक के नीचे जमीन धंसी, कोयला ढुलाई बाधित

  रेलवे ट्रैक के नीचे जमीन धंसी, कोयला ढुलाई प्रभावित 

गिरिडीह : गिरिडीह रेलवे स्टेशन से बनियाडीह कोलियरी को जाने वाली रेलवे ट्रैक के नीचे जमीन के धँस जाने से कोयला ढुलाई का कार्य प्रभावित हो गया है। कोलियरी का गिरिडीह रेलवे स्टेशन तक का यह एकमात्र सम्पर्क रेलवे ट्रैक है।

मुफस्सिल थाना क्षेत्र के हेठलापीठ के पास मंगलवार की सुबह रेलवे ट्रैक के नीचे यह हादसा घटित हुई है।  जिसमे रेलवे ट्रैक की जमीन लगभग 60 फीट तक धँस गयी है।

रेल ट्रैक के नीचे भू-धंसान की सूचना मिलते ही सीसीएल के परियोजना पदाधिकारी लक्ष्मीकांत महापात्रा समेत सीसीएल कीबनियाडीह परियोजना के कई पदाधिकारी घटना स्थल पर पहुंच वस्तुस्थिति का जायजा लिया। मौके पर परियोजना पदाधिकारी ने अधीनस्थ के कर्मियों को जल्द से जल्द ट्रैक की मरम्मति का निर्देश दिया। 

गौरतलब है कि रेलवे स्टेशन से सीसीएल के सीपी साइडिंग तक अंग्रेजों के शासन काल से एक अलग रेल लाइन बिछाई गई है। दशकों पुराने इस रेललाइन के माध्यम से गिरिडीह कोलियरी का उत्पादित कोयला मालगाड़ी पर लादकर देश के अन्य भागों में भेजा जाता है।

लेकिन इस इलाके में अवैध तरीके से हो रही कोयला खनन के कारण इस रेल ट्रैक के नीचे की जमीन धंसने लगी है। यूँ तो अवैध कोयला खुदाई के कारण कई बार सीसीएल के इलाके में भू धसान हो चुकी है। लेकिन सीसीएल प्रबन्धन अवैध कोयला खुदाई को रोक पाने में नाकाम रही है।

 मंगलवार को हुई इस घटना के बाद घटनास्थल पर पहुंचे परियोजना पदाधिकारी से सीसीएल क्षेत्र में बार-बार हो रहे भू-धंसान के बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कुछ भी कहने से साफ़ इनकार किया और घटना स्थल से निकल लिए।

कल से शुरू होगा नवरात्र, दो गुरुवार का है शुभ संयोग

कलश स्थापना के साथ कल से शुरू होगा नवरात्र

इस बार नवरात्र में दो गुरुवार का है शुभ संयोग




   मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का पावन पर्व दुर्गा पूजा 10 अक्टूबर को कलश स्थापना के साथ शुरू होगी और इसके साथ ही नवरात्रि का त्योहार भी शुरू हो जाएगा। नवरात्र के नौ दिनों में मां के अलग-अलग रुपों की पूजा को शक्ति की पूजा के रुप में भी देखा जाता है। नवरात्र पर देवी पूजन और नौ दिन के व्रत का बहुत महत्व है।

दो गुरुवार का अत्यंत शुभ संयोग

इस बार की नवरात्रि में दो गुरुवार पड़ रहे हैं। जिसे अत्यंत शुभ माना जा रहा है। क्योंकि गुरुवार को दुर्गा पूजा का हजार-लाख गुना नहीं बल्कि करोड़ गुना फल मिलता है।

चित्रा नक्षत्र में नौका पर होगा माँ का आगमन


नवरात्रि का शुभारंभ चित्रा नक्षत्र में हो रहा है। वहीं नवमी श्रवण नक्षत्र में है। इस दिन ध्वज योग भी है। इस बार मां दुर्गा नौका पर आ रहीं हैं। जबकि माँ हाथी पर सवार होकर विदा होगी। लाभ, शुभ, अमृत (राहु काल छोड़कर) स्थिर लग्न में घट स्थापना कर सकते है।


शुभ योगों का बन रहा संयोग

इस दौरान ग्रहों की स्थिति भी बेहद शुभ है। शुक्र अपने घर में विराजमान है, जोकि बेहद शुभ स्थिति है। इस बार राजयोग, द्विपुष्कर, अमृत, स्वार्थ और सिद्धियोग का संयोग भी बन रहा है। इस संयोग में किसी भी नए कार्य की शुरुआत फलदाई रहेगी।

 कलश स्थापना का मूहूर्त



 नवरात्र में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। आचार्य सतीश मिश्र के अुनसार सुबह 06:18 बजे से 10:11 बजे तक कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त है।अगर किसी कारणवश विशेष मुहूर्त में कलश स्थापना नहीं कर पाएं तो पूरे दिन किसी भी समय कलश स्थापना किया जा सकता है। क्योंकि नवरात्र के शुरू होने पर शुभ समय भी शुरू हो जाता है। नौ दिनों तक माता के भक्त उनकी पूजा-अर्चना करेंगे। इसलिए माँ अपने भक्तों का कभी बुरा नहीं मानतीं।

वर्ष में होती है दो नवरात्रि

गौरतलब है कि एक वर्ष में दो नवरात्रि होते हैं। प्रथम नवरात्रि चैत्र मास में शुक्ल प्रतिपदा से आरंभ होती हैं और रामनवमी तक चलती है। जबकि शारदीय नवरात्र आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर विजयदशमी के दिन तक चलती है। दोनों ही नवरात्रि के पूजन विधान में कोई अंतर नहीं होता है। इस बार आश्विन (शारदीय) महानवरात्र 10 से 19 अक्तूबर तक रहेगा. 18 अक्टूबर को अंतिम नवरात्रि होगी।






जानिये दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों को जिन्हें कहा जाता है नवदुर्गा

मां दुर्गा के नौ रूप बनाम दिव्य गुणों वाली नौ औषधियों जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है




*प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी..*

1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -

नवदुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री माना गया है। कई प्रकारकी समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप हैं। यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है। इसमें 

हरीतिका (हरी) भय को हरने वाली है।पथया - जो हित करने वाली है।कायस्थ - जो शरीर को बनाए रखने वाली है।अमृता - अमृत के समानहेमवती - हिमालय पर होने वाली।चेतकी -चित्त को प्रसन्न करने वाली है।श्रेयसी (यशदाता)- शिवा कल्याण करने वाली।

*2. द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी :-*

ब्राह्मी, नवदुर्गा का दूसरा रूप ब्रह्मचारिणी है। यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वालीऔर स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।यह मन एवं मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है। अत: इन रोगों से पीड़ित व्यक्ति को ब्रह्मचारिणी की आराधना करना चाहिए।

               *तृतीयं चंद्रघण्टेति* 
               *कुष्माण्डेती चतुर्थकम*

*3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर :-*

नवदुर्गा का तीसरा रूप है चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है। अत: इस बीमारी से संबंधित रोगी को चंद्रघंटा की पूजा करना चाहिए।

*4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा :-*

नवदुर्गा का चौथा रूप कुष्माण्डा है। इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिकरूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है। इन बीमारी से पीड़ितव्यक्ति को पेठा का उपयोग के साथ कुष्माण्डादेवी की आराधना करना चाहिए।

               *पंचम स्कन्दमातेति* 
               *षष्ठमं कात्यायनीति च*

*5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी :-*

नवदुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता है जिन्हें पार्वती एवं उमा भी कहते हैं। यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है।

अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।इस रोग से पीड़ित व्यक्ति ने स्कंदमाता की आराधना करना चाहिए।

*6. षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया :-*


नवदुर्गा का छठा रूप कात्यायनी है। इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार एवं कंठ के रोग का नाश करती है। इससे पीड़ित रोगी को इसका सेवन व कात्यायनी की आराधना करना चाहिए।

               *सप्तमं कालरात्री*
               *ति महागौरीति चाष्टम*

*7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन :-*

दुर्गा का सप्तम रूप कालरात्रि है जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी कहा गया है। यह नागदौन औषधि केरूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वालीऔषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली एवं सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है। इस कालरात्रि की आराधना प्रत्येक पीड़ित व्यक्ति को करना चाहिए।

*8. अष्टम महागौरी यानि तुलसी :-*


नवदुर्गा का अष्टम रूप महागौरी है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति औषधि के रूप में जानता है क्योंकि इसका औषधि नाम तुलसी है जो प्रत्येक घर में लगाई जाती है। तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है एवं हृदय रोग का नाश करती है।

तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि:तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत्।मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

इस देवी की आराधना हर सामान्य एवं रोगी व्यक्ति को करना चाहिए।


               *नवमं सिद्धिदात्री च* 
               *नवदुर्गा प्रकीर्तिता*

*9. नवम सिद्धिदात्री यानि शतावरी :-*

नवदुर्गा का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार एवं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं। इससे पीड़ित व्यक्ति को सिद्धिदात्री देवी की आराधना करना चाहिए। इस प्रकार प्रत्येक देवी आयुर्वेद की भाषा में मार्कण्डेय पुराण के अनुसार नौ औषधि के रूप में मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित एवं साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करती है।

नवग्रहों की शांति करती हैं यह नौ देवियां , एक रहस्यपूर्ण जानकारी

*नवग्रहों की शांति करती हैं यह नौ देवियां *


सर्वमंगल मांग्लये शिवे सर्वार्थ साधिके।शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुति।।जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनि।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।

 माँ दुर्गा के नौ रूपों की अलग अलग महत्ता है।  इनके सभी रूप अलग-अलग नौ ग्रह को शांत करता है। इसलिये हर रुप की पूजा-अर्चना पुरे विधि विधान के साथ किया जाता है। ताकि उनका वह चरित्र प्रभावी हो और लोक का कल्याण हो सके।


प्रतिपदा के दिन *मंगल ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा में *स्कन्दमाता* के स्वरूप की पूजन करनी चाहिए।

द्वितीय दिन *राहु ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के *ब्रह्मचारिणी* स्वरूप का पूजन करना चाहिए। 


तृतीय दिन *बृहस्पति ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजन-उपासना करनी चाहिए।

चतुर्थी के दिन *शनि ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा में *कालरात्रि* स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।


पंचमी के दिन *बुध ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के *कात्यायनी* स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।

षष्ठी के दिन *केतु ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के कूूष्मांडा स्वरूप की पूजन करनी चाहिए।

सप्तमी के दिन *शुक्र ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के *सिद्धिदात्री* स्वरूप की पूजन करनी चाहिए।

अष्टमी के दिन *सूर्य ग्रह* की शांति हेतु *शैलपुत्री* स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।

नवमी के दिन *चन्द्र ग्रह* की शांति हेतु नवदुर्गा के *चन्द्रघंटा*  स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।


अपराधक्षमा स्त्रोत्र