मंगलवार, 25 सितंबर 2018

मधुबन : डोली मजदूर और बाइक सवार में हिंसक झड़प, फूंकी बाइक

जैन तीर्थस्थल मधुबन में डोली मजदूरों और बाइक सवार में हिंसक झड़प, बाइक को किया आग के हवाले



गिरिडीह: विश्व प्रसिद्ध जैन तीर्थस्थल सम्मेदशिखर पारसनाथ (मधुबन) में डोली मजदूरों और बाइक सवारों के बीच तनाव बढ़ता ही जा रहा है। यह तनाव दिनानुदिन हिंसक होती जा रही है। इसी कड़ी में एक बाइक को आग के हवाले कर दिया गया। जिससे बाइक चालकों और डोली मजदूरों के बीच पनपी तनाव और बढ़ गया है। हालाँकि पुलिस ने घटना की तहकीकात शुरू कर दी है। लेकिन अब तक कोई खास सुराग पुलिस के हाथ नही लग पाया है।

कैसे हुई घटना

जानकार बताते हैं कि सोमवार को संदीप चौरसिया नामक व्यक्ति अपने किसी रिश्तेदार को लेकर बाइक से पारसनाथ पर्वत की चढ़ाई कर रहा था। तभी क्षेत्रपाल के ऊपर काफी संख्या में डोली मजदूरों ने उसपर हमला बोल दिया। इतना ही नही बाइक सवार और डोली मजदूरों के बीच इस दौरान हिंसक झड़प भी हो गयी। इसी बीच किसी ने संदीप के बाइक को आग के हवाले कर दिया। और, देखते ही देखते बाइक पूरी तरह से जल गयी। विदित हो कि इस घटना के पूर्व भी मधुबन में यात्रियों को पर्वत वंदना कराने को लेकर डोली मजदूरों और स्थानीय बाइक सवारों के बीच कई बार झड़प हो चुकी है।

प्रतिबंध के बावजूद पर्वत पर बाइकों का संचालन जारी

पारसनाथ पहाड़ पर जैन यात्रियों को मंदिर तक ले जाने और लाने के लिए सैकड़ों की संख्या में डोली मजदूर सालों से यहां कार्यरत हैं। ये सभी स्थानीय आदिवासी समुदाय के लोग है। वजन के हिसाब से ये गरीब मजदूर जैन यात्रियों को डोली पर बैठा कर काफी मेहनत से पर्वत वंदना कराते हैं। इसी से इनकी रोजी-रोटी चलती है। लेकिन कुछ महीनों से इस काम में कुछ स्थानीय युवा बाइक से यात्रियों को पहाड़ पर ऊपर तक ले जाने के काम में जुटे हुए हैं। इसके कारण डोली मजदूरों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा हुआ है।

डोली मजदूरों ने कई बार किया है शिकायत

डोली मजदूरों ने इसका विरोध करते हुए पुलिस और प्रशासन से कई बार लिखित शिकायत किया है और पारसनाथ पहाड़ पर बाइक के जाने पर रोक लगाने की मांग भी की है। डोली मजदूरों ने संगठित होकर इसका विरोध करना शुरू किया। 
गौरतलब है कि सूबे के मुख्यमंत्री ने भी पर्वत पर बाइक के संचालन पर रोक लगाने का आदेश दिया था। बावजूद इसके पारसनाथ पर मोटरसाइकिल का संचालन नहीं रूका। कुछ दिनों पूर्व भी बाइक संचालकों और डोली मजदूरों के बीच जबरदस्त मारपीट हुई थी। जिसमें दर्जनों घायल हो गए थे।

पुलिस प्रशासन की लापरवाही उजागर

पुलिस प्रशासन की लापरवाही से फिर यह घटना सामने आयी है। अगर समय रहते गिरिडीह के आला अधिकारी इस मसले को हल नहीं करते हैं, तो डोली मजदूरों और बाइक संचालकों का तनाव और भी गंभीर रूप अख्तियार कर सकता है।

विधायक ने दिया बीच का रास्ता निकालने का आश्वासन 


घटना के बाद मधुबन के युवाओं का एक दल मंगलवार को विधायक निर्भय शाहाबादी से मुलाक़ात कर अपनी समस्याओं से उन्हें अवगत कराया। विधायक श्री शाहाबादी ने इस बावत मुख्यमंत्री से बात कर कोई बीच का रास्ता निकालने का आश्वासन उन युवाओं को दिया।

जन्मदिन पर याद किये गये दीनदयाल उपाध्याय

भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ ने मनाया दीनदयाल उपाध्याय का जन्म दिवस, लिया उनके बताये मार्ग पर चलने का संकल्प

गिरिडीह : बोडो स्थित चौधरी कंपलेक्स में भारतीय जनता पार्टी की प्रबुद्ध प्रकोष्ठ द्वारा मंगलवार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म दिवस मनाया गया l

भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ के जिला संयोजक सत्येंद्र कुमार की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्वलित कर तथा पण्डित दीनदयाल उपाध्याय के तस्वीर पर माल्यार्पण कर किया गया।

वक्ताओं ने मौके पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह महान चिंतक, संगठनकर्ता और भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष थेl
                    विलक्षण बुद्धि, सरल व्यक्तित्व एवं नेतृत्व के अनेक गुणों के स्वामी भारतीय राजनीतिक क्षितिज के इस प्रकाशमान सूर्य ने भारत वर्ष में "समतामूलक राजनीति विचारधारा" का प्रचार एवं प्रोत्साहन किया l
               पंडित दीनदयाल उपाध्याय एक महान दार्शनिक ,पत्रकार एवं लेखक थेl उन्हें जनसंघ के आर्थिक नीति का रचनाकार कहा जाता है l

उन्होंने कहा था कि - "भारत में रहने वाला और इसके प्रति ममत्त्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन है उनकी जीवन प्रणाली कला साहित्य दर्शन सब भारतीय संस्कृति है इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार या संस्कृति है इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी यह एकात्म रहेगाl"

वक्ताओं ने कहा कि वह समाज के अंतिम छोर के लोगों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने में विश्वास रखते थेI
मौके पर उपस्थित लोगों ने एक स्वर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय के बताए मार्ग पर चलने का दृढ़ संकल्प लिया।


कार्यक्रम में  भाजपा प्रबुद्ध प्रकोष्ठ प्रदेश कार्यसमिति सदस्य डॉक्टर शैलेंद्र कुमार चौधरी, प्रभात कुमार, संजीत सिंह, नितेश नंदन, गंगाधर दास, रोहित श्रीवास्तव, हिमांशु सिन्हा, अंशु ,प्रतीक ,सत्यम सहित काफी लोग मौजूद थे।

पितृपक्ष में कब और कैसे करें पिंडदान ? आइये जाने पितृपक्ष के महत्व को

पितृपक्ष में पूर्वजों को पिंडदान और तर्पण, कब और कैसे करें ?


  • 24 सितंबर से 8 अक्टूबर तक चलेगा पितृपक्ष मेला
  • महालय अमावस्या के साथ समाप्त हो जाएगा पितृपक्ष
  • जिन्हें पूर्वजों की तिथि की नहीं होती है जानकारी वो महालय को करते हैं दान
  • पितृ पक्ष में पूर्वजों का तर्पण या पिंडदान कराना अनिवार्य है
  • जो नहीं कराते तर्पण या पिंडदान उन्हें पितृदोष लगता है
  • पितृपक्ष में कर्मकांड का विधि व विधान अलग-अलग है
  • श्रद्धालु 1, 3, 7, 15 दिन और 17 दिन का करते हैं कर्मकांड

पितृपक्ष की शुरुआत हो गई। देश-दुनिया से लोग यहां पिंडदान और तर्पण के लिए लोग आने लगे हैं। इस वर्ष 24 सितंबर से पितृपक्ष मेला की शुरुआत हो चुकी है, जो 8 अक्टूबर तक चलेगी। इस खास मौके पर अपने पूर्वजों के आत्मा की शांति के लिए लोग पिंडदान और तर्पण के लिए यहां आते हैं और पिंडदान करते हैं। कहा जाता है कि सर्वपितृ अमावस्या यानी महालय अमावस्या के साथ खत्म हो जाएगा। महालय अमावस्या के दिन खासतौर से वह लोग जो अपने मृत पूर्वजों की तिथि नहीं जानते, वह इस दिन तर्पण कराते हैं। भाद्रपद के कृष्णपक्ष के 15 दिन पितृपक्ष कहलाता है। पितृ ऋण से मुक्ति पाने का यह श्रेष्ठ समय माना जाता है। शास्त्रों की मानें तो इस अवसर पर अपने पूर्वजों के लिए किए जाने वाले पिंडदान सीधे उनके पूर्वजों तक स्वर्गलोक तक लेकर जाता है।

अपने मृत पूर्वजों का श्राद्ध करने का सबसे उत्तम समय अमावस्या या पितृपक्ष माना जाता है। पिंड शब्द का मूल अर्थ किसी वस्तु का गोलाकार रूप होता है। प्रतिकात्मक रूप में शरीर को भी पिंड ही माना जाता है। पिंडदान के लिए पके हुए चावल, दूध और तिल को मिलाकर एक पिंड को तैयार किया जाता है। वही पिंड अपने पूर्वजों अर्पित कर दिया जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान मृत व्यक्ति अपने पुत्र और पौत्र से पिंडदान की उम्मीद रखते हैं।


जब तक हम जीवन जीते हैं रिश्तों की खास अहमियत होती है। वो रिश्ते चलते रहते हैं मगर एक वक्त ऐसा भी आता है जब हम एक दूसरे से बिछड़ जाते हैं। मृत्यु के पश्चात खुद के सगे-संबंधी तक उन्हें अधिक दिनों तक याद नहीं रख पाते हैं। दुनिया में इंसान भले ही अकेले आता है, परंतु सांसारिक मोह में बंधकर रिश्तों की एक कड़ी बन जाती है। भले ही मरने के साथ इंसान खत्म हो जाता है लेकिन उसकी आत्मा समाप्त नहीं होती है। मृतक की आत्मा अपने आगे के सफर को तभी तय कर पाती है जब उसके सारे कर्मों का सारा हिसाब किताब हो जाता है। इन सभी बंधनों से मुक्ति के लिए हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की व्यवस्था की गई है, जिसके तहत श्राद्ध और पिंडदान करने की परंपरा है। इसीलिए अपने पित्रों को तर्पण और निमित अर्पण करना उनकी आत्मा की शांति के लिए सबसे अहम माना गया है।


पिंडदान कैसे बनता है:
  1. पिंडदान में दूध, शहद, तुलसी पत्ता, तिल आदि  महत्वपूर्ण होता है।
  2. पिंडदान में सोना, चांदी, तांबे, कांसे या पत्तल के पात्र का ही प्रयोग करना चाहिए।
  3. कुत्ता, कौआ और गायों को पितृपक्ष के दौरान भोजन जरूर कराएं. ऐसी मान्यता है कि कुत्ता और कौआ पित्रों के करीब होते हैं और गाएं उन्हें वैतरणी पार कराती हैं।
  4. श्राद्ध के लिए गया, बद्रीनाथ, हरिद्वार, गंगासागर, पुश्कर, जगन्नाथपुरी, काशी, कुरुक्षेत्र, आदि को सबसे उत्तम स्थान माना जाता है।
  5. पिंडदान के लिए यह जरूरी नहीं कि आप किसी श्रेष्ठ जगह ही जाएं या किसी बड़े पंडित को ही बुलाएं. सरल विधि के द्वारा आप घर पर भी श्राद्ध कार्य को कर सकते हैं।
कैसे किया जाता है पिंडदानः

1.सबसे पहले पिंडदान के समय मृतक के घरवाले जौ या चावल के आंटे में दूध और तिल मिलाकर गूथ लें और उसका गोला बना लें।
2. तर्पण करते समय पीतल की थाली या बर्तन में साफ जल भरकर उसमें थोड़े सा काला तिल व दूध डालकर अपने सामने रख लें और अपने सामने एक दूसरा खाली बर्तन रख लें।
3. दोनों हाथों को एकसाथ मिलाकर उस मृत व्यक्ति का नाम लेकर तृप्यन्ताम कहते हुये अंजली में भरे हुये जल को दूसरे खाली पात्र में छोड़ दें।
4. जल में काले तिल, जौ, कुशा एवं सफेद फूल मिलकार उस जल से विधिपूर्वक तर्पण किया जाता है, इससे पितर तृप्त होते हैं।
5. इसके बाद श्राद्ध के बाद ब्राह्मण को भोजन कराकर यथाशक्ति दान दिया जाता है.

सीता जी ने दिया फल्गू नदी को श्राप ? जानिए क्यों

फल्गू नदी के तट पर राजा दशरथ को पिंडदान करने के बाद सीता जी ने दिया फल्गू नदी को श्राप?



वनवास के दौरान भगवान राम लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे। वहां श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। उधर दोपहर हो गई थी। पिंडदान का समय निकलता जा रहा था और सीता जी की व्यग्रता बढती जा रही थी। अपराहन में तभी दशरथ की आत्मा ने पिंडदान की मांग कर दी। गया जीके आगे फल्गू नदी पर अकेली सीता जी असमंजस में पड़ गई। उन्होंने फल्गू नदी के साथ वटवृक्ष केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर स्वर्गीय राजा दशरथ के निमित्त पिंडदान दे दिया।

थोडी देर में भगवान राम और लक्ष्मण लौटे तो सीता जी ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया। 

बिना सामग्री के पिंडदान कैसे हो सकता है, इसके लिए राम ने सीता से प्रमाण मांगा।


तब सीता जी ने कहा कि यह फल्गू नदी की रेत केतकी के फूल, गाय और वटवृक्ष मेरे द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। इतने में फल्गू नदी, गाय और केतकी के फूल तीनों इस बात से मुकर गए। सिर्फ वटवृक्ष ने सही बात कही। तब सीता जी ने दशरथ का ध्यान करके उनसे ही गवाही देने की प्रार्थना की।


दशरथ जी ने सीता जी की प्रार्थना स्वीकार कर घोषणा की कि ऐन वक्त पर सीता ने ही मुझे पिंडदान दिया। इस पर राम आश्वस्त हुए लेकिन तीनों गवाहों द्वारा झूठ बोलने पर सीता जी ने उनको क्रोधित होकर श्राप दिया कि 
         फल्गू नदी- जा तू सिर्फ नाम की नदी रहेगी, तुझमें पानी नहीं रहेगा। इस कारण फल्गू नदी आज भी गया में सूखी रहती है। गाय को श्राप दिया कि तू पूज्य होकर भी लोगों का जूठा खाएगी और, केतकी के फूल को श्राप दिया कि तुझे पूजा में कभी नहीं चढाया जाएगा। 
           वटवृक्ष को सीता जी का आर्शीवाद मिला कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री तेरा स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।

यही कारण है कि गाय को आज भी जूठा खाना पड़ता है, केतकी के फूल को पूजा पाठ में वर्जित रखा गया है और फल्गू नदी के तट पर सीताकुंड में पानी के अभाव में आज भी सिर्फ बालू या रेत से पिंडदान दिया जाता है।

वाल्मिकी रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देकर दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है।


धार्मिक दृष्टि से गया न सिर्फ हिन्दूओं के लिए बल्कि बौद्ध धर्म मानने वालों के लिए भी आदरणीय है। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महात्मा बुद्ध का ज्ञान क्षेत्र मानते हैं जबकि हिन्दू गया को मुक्तिक्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान मानते हूं। इसलिए हर दिन देश के अलग-अलग भागों से नहीं बल्कि विदेशों में भी बसने वाले हिन्दू आकर गया में आकर अपने परिवार के मृत व्यकित की आत्मा की शांति और मोक्ष की कामना से श्राद्ध, तर्पण और पिण्डदान करते दिख जाते हैं।