मंगलवार, 24 मार्च 2015

एक ख्वाब हूं मैं



 एक ख्वाब हूं मैं 


खामोश रात का चिराग हूं मैं,
गर्दिश बाग का गुलाब हूं मैं।
न पूछ मुझसे दिल की बात यारों-
टुटा तार का सितार हूं मैं।
न बजता हूं, न गुनगुनाता हूं
चोट खाकर लौट आता हूं मैं।
गमो के सागर मे डूबा रहता हूं,
सारे जख्मों को सीने से लगा रहता हूं मैं।
मरहम मिलता नहीं जख्म भरेगी खाक-
जख्म सहने की आदत बना रखता हूं मैं।
फूल चमन मे नहीं, कांटो को सींचता हूं मैं,
दिल रोने को चाहता है पर हंसता हूं मैं।
सच पूछो तो जीने का शौक नही मुझको
नसीब कल तो खुलेगी ये सोंचकर जीता हूं मै।
जब रोता है दिल तो बहती है आंसू-
बनाकर स्याही आंसूओं से गजल लिखता हूं मै।

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