’’ खत ’’
भूल जायें आप
पर मैं न भूलूंगा
आप दें न दे
पर मै अक्सर खत दूंगा।
जबाब आयेगी, तो-
सुकून मिलेगी।
न आयी तो, दिल को-
तसल्ली दे लूंगा।
राहगीरों की तरह ,
आप
राह मोड़ लें,
पर मै मंजिल पहुच ही
चैन लूंगा।
आप दें न दें
पर मैं अक्सर खत दूंगा।
रिश्ते बने हैं तो
निभाता रहुंगा
सारे जख्मों को सीने से
लगाता रहूंगा, क्योंकि -
रिश्तों के टूटने का दर्द
आप क्या जाने ?
वो लम्हा कभी आपने
जी भर नहीं देखा।
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