मंगलवार, 24 मार्च 2015

खत



    ’’ खत ’’

भूल जायें आप
पर मैं न भूलूंगा
आप दें न दे
पर मै अक्सर खत दूंगा।
        जबाब आयेगी, तो-
        सुकून मिलेगी।
        न आयी तो,  दिल को-
        तसल्ली दे लूंगा।
राहगीरों की तरह , आप
राह मोड़ लें,
पर मै मंजिल पहुच ही
चैन लूंगा।
आप दें न दें
पर मैं अक्सर खत दूंगा।
        रिश्ते बने हैं तो
        निभाता रहुंगा
        सारे जख्मों को सीने से
        लगाता रहूंगा, क्योंकि -
        रिश्तों के टूटने का दर्द
        आप क्या जाने ?
        वो लम्हा कभी आपने
        जी भर नहीं देखा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें