’’ अनमोल बात ’’
छुपाये रखा था जो दिन मे
वो चीज तुम्हें देता हूं।
सम्हाल कर रखना इसे
एक अनमोल चीज देता हूं।
छल्के न अश्क आंखो से
तेरी
इस पर नजर मैं रखता हूं
अपना ले परिवार नियोजन
यही सबों से कहता हूं।
है यह अनमोल जो
इत्तिफाक से हासिल होता
है
जिसने भी अपनाया इसे
ता उम्र खुशी से जी ता
है।
जख्म सीने का तीरे
न बहे बनकर मवाद
तो बच्चे दो ही रखो
गर न चाहते दंगा फसाद।
बढने न तो जनसंख्या मेरे
दोस्त
वर्ना बढेगी बेकारी-
गरीबी की जंजीरों मे फंस
जाओगे तुम
तब रोयेगी वतन हमारी।
आओ आगे बढो और नसबन्दी
करा लो
बच्चे कम करो और जीवन
खुशनशीं बना लो
है दो ही ठीक तुम्हारे
लिये बच्चे
बढकर ये ही बनेंगे वतन
सिपाही सच्चे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें