हस्ताक्षर
शहद युक्त कटोरे में,
जब कोई मक्खी -
गिर जाती है।
फडफडाना छोड,
शिथिल पड जाती है।
मुंह बिचकाकर घृणा से -
लोग बाहर फैंक देत हैं।
मैं स्वयं -
उस मक्खी के समान,
शहद भरे कटोरे में,
जा गिरा हूं।
तिस्कृत होता हूं,
घृणित दूष्टि से -
देखा भी जाता हूं।
पर शहद के कटोरे से,
फैंका नहीं जाता हूं।
क्योंकि- मेरी धमनियां-
रक्तों से लैश है ।
उसमें स्वांस भी -
अभी शेष है।
काश!
मैं अधमरा न हो,
पूरा मर जाता ।
फडफडाना छोड
शिथिल पड जाता।
घृणा और तिरस्कार से
विमुख तो रहता।
देख कर मुझको, मुंह -
किसी का तो न बिचकता।
या खुदा, तु मुझे-
अधमरा न छोड,
पूरा मार दे।
जिल्लत की जिन्दगी से -
मुझको उबार दे।
मेरी इस आरजू को ,
तू पूरा कर दे ।
मेरी इस आरजू पर तू-
अपनी: हस्ताक्षर: दे।
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