एक बीज
मन के मंदिर मे, जब
बसा लेते हैं एक मूरत
वाणि की मधुरता से-
रस टपकाता हुआ एक सूरत।
धुन मे तब उसके
लोग सुध खो देते हैं
बिन सोचे अनजाने मे
एक बीज बो लेते हैं।
सिकवा हो या गिला
परवाह इसकी नहीं करते हैं
नयनन की भाषा समझ
आगे बढने की सोंचते हैं।
न्याय या अन्याय की
तब परवाह नही रहती उन्हें,
जाने फिर कब मिले
क्षण इतने सुखद उन्हें।
हार कर तब सब अपना
दिल मे बचा लेते हैं एक
मूरत
हर घडी, हर महफिल मे -बस
याद आती है उन्हें वो
सूरत।
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