कली पुष्प बन इठलाती जब
सुगन्ध बिखेरती कली,
बागों मे खिलती है जब,
भीनी -भीनी सी खुशबू-
वातावरण मे मिलती है तब।
षष्ठ केन्द्रों मे भर
आकर्षण
कली, पुष्पबन इठलाती जब
गुंजायमान हो भौंरे उसे
पर-
आकर्षित हो जाते हैं तब।
माया जाल बिखेर कली,
इतराती बन पुष्प जहां,
स्वर्ग समझ उस बाग को -
अठखेली करता भौंरा वहां।
सिकवा, गिला बिसार कर भौंरा,
मंडराता है, पुष्प पर जब-
हरण, वरण की समझ पुष्प
सकुचाती है, भौंरे से तब।
न्याय- अन्याय की दे
दुहाई-
पुष्प समझाती भौंरे को,
स्वर्गिक सुख मे हो
विभोर-
कुछ समझ न आती भौंरे को।
हार समझ पंखुडी मे पुष्प,
कैद भौंरे को करती है,
देख मिलन तब, पुष्प भौंरे की -
दसों दिशायें हंसती है।
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