मंगलवार, 24 मार्च 2015

कली पुष्प बन इठलाती जब




 कली पुष्प बन इठलाती जब
 

सुगन्ध बिखेरती कली,
बागों मे खिलती है जब,
भीनी -भीनी सी खुशबू-
वातावरण मे मिलती है तब।

षष्ठ केन्द्रों मे भर आकर्षण
कली, पुष्पबन इठलाती जब
गुंजायमान हो भौंरे उसे पर-
आकर्षित हो जाते हैं तब।

माया जाल बिखेर कली,
इतराती बन पुष्प जहां,
स्वर्ग समझ उस बाग को -
अठखेली करता भौंरा वहां।

सिकवा, गिला बिसार कर भौंरा,
मंडराता है, पुष्प पर जब-
हरण, वरण की समझ पुष्प
सकुचाती है, भौंरे से तब।

न्याय- अन्याय की दे दुहाई-
पुष्प समझाती भौंरे को,
स्वर्गिक सुख मे हो विभोर-
कुछ समझ न आती  भौंरे को।

हार समझ पंखुडी मे पुष्प,
कैद भौंरे को करती  है,
देख मिलन तब, पुष्प भौंरे की -
दसों दिशायें हंसती है।

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