मंगलवार, 24 मार्च 2015

एक बूंद



 ’’ एक बूंद’’

अथाह जल का
एक बूंद हूं मैं,
खुदा के समुद्र का।
तरंगो की भांति
मुस्कुराता रहूंगा।
वाणि की मधुरता से -
तृष्णा-तृप्ति करूंगा।
जीवन दान देता,
बढता रहूंगा,
आगे की ओर....।
प्रकृति की जड.ता को
रूढ.ता , पुरतनता को
अहमृ और जज.बात को
प्रश्रय न दूंगा।
घृणा-द्वेष स्वार्थ से
विमुख रहूंगा
जाति-धर्म भेद-भाव
मिटाता रहूंगा।
भेद मुक्त - निर्भय मन
बढता रहूंगा
आगे की ओर....।

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