सोमवार, 10 सितंबर 2018

डॉलर के मुकाबले फिर लुढ़का रुपया, बढ़ेंगे डीजल-पेट्रोल के दाम

               फिर गिरा रूपया, 93 पैसे की गिरावट के साथ 72.66 का हुआ एक डॉलर

डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का सिलसिला जारी है। सोमवार को रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर खुला है। डॉलर के मुकाबले रुपया आज 93 पैसे टूटकर 72.66 के स्तर पर जा पहुंचा है। सोमवार को डॉलर के मुकाबले रुपए ने 72.18 प्रति डॉलर पर शुरुआत की थी और इसमें 93 पैसे की भारी गिरावट आई है। जबकि पिछले हफ्ते रुपया 71.73 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था।
वहीं, सेंसेक्स में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है और ये 276 अंक फिसलकर 38,113.79 पर पहुंच गया है। जबकि निफ्टी 49.35 अंक कमजोर होकर 11,539.75 पर था। पिछले कारोबारी दिन सेंसेक्स 37,837.79 पर बंद हुआ था।
वहीं, रुपए की गिरावट की वजह से तेल कंपनियों को विदेशों से तेल आयात करने के लिए ज्यादा लागत चुकानी पड़ रही है, जबकि इसके कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में और भी बढ़ोत्तरी होने की आशंका जताई जा रही है। बैंकिंग, ऑटो, एफएमसीजी, रियल्टी, ऑयल एंड गैस और पावर सेक्टर के शेयरों में भी गिरावट देखी जारी है।
रुपए की गिरावट की वजह से तेल कंपनियों को विदेशों से तेल आयात करने के लिए ज्यादा लागत चुकानी पड़ रही है, जबकि इसके कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतों में और भी बढ़ोत्तरी होने की आशंका जताई जा रही है।

रविवार, 9 सितंबर 2018

बन्द के दौरान उपद्रवियों से निपटने पुलिस ने किया चाक चौबंद इंतज़ाम

                   विपक्षियों के बन्द के दौरान उपद्रवियों से निपटने पुलिस ने किया चाक चौबंद इंतज़ाम
गिरिडीह : 10 सितम्बर को कांग्रेस समेत सभी विपक्षी पार्टियों द्वारा आहूत भारत बन्द के दौरान उपद्रवियों से निपटने हेतु जिला पुलिस महकमा ने व्यापक इंतज़ाम किया है। बन्दी के पूर्व संध्या पर पुलिस द्वारा शहर की मुख्य सड़कों पर फ़्लैग मार्च किया गया। साथ ही वाहनों  के माध्यम से भी शहरी व ग्रामीण इलाकों में गस्ती की गयी।

बन्द के दौरान उपद्रवियों से निपटने पुलिस ने किया चाक चौबंद इंतज़ाम
वंही पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़ बंद के मद्देनजर उपद्रवियों से निपटने के लिये गिरिडीह नगर में 300 पुलिस कर्मी को तैनात किया जायेगा। बताया गया कि शहर में हर चौक चौराहों पर पुलिस और मजिस्ट्रेट की तैनाती रहेगी। जो हर तरह से उपद्रवियों पर काबू पाने में सक्षम होंगे।


          बहरहाल विपक्षयों के इस बन्द के दौरान किसी भी प्रकार की कोई अप्रिय घटना घटित न हो इसके लिए जिला पुलिस महकमा पूरी तरह से मुस्तैद है। बन्द को लेकर आम जनमानस के मन में किसी प्रकार का भय व्याप्त न हो इसके लिए बन्द की पूर्व संध्या पर एसडीपीओ जीतवाहन उरांव के नेतृत्व में पुलिस के जवानो ने शहर के मुख्य मार्गों पर फ्लैग मार्च कर लोगों को आश्वस्त किया कि वह इस बन्दी से डरे नहीं। जिला पुलिस महकमा उनकी तथा उनके जानमाल की सुरक्षा को मुस्तैद है।

पांच सौ जरूरत मंदों के बीच परोसी गयी "दोस्ती की थाली"

पांच सौ जरूरतमंदों के बीच परोसी गयी "दोस्ती की थाली"


गिरिडीहगुरु ग्रंथ साहिब जी के 414 वें प्रकाश पर्व पर के मौके पर मानव सेवा परिवार द्वारा  सिक्ख स्त्री सत्संग के सहयोग से आज 500 जरूरत मंदों के बीच दोस्ती की थाली परोसी गयी।

 जिला मुख्यालय स्थित गुरुद्वारा के समक्ष मानव सेवा परिवार द्वारा संचालित 15 वी रविवारीय "दोस्ती की थाली" आज जरूरत मंदो के बीच परोसी गई।

आज के "दोस्ती की थाली" में जरूरत मंदो के बीच परोसी गयी भोजन में चावल, कड़ी ,आलू भुजिया, सेव, केला, जलेबी और आचार शामिल था।

मौके पर सिक्ख स्त्री सत्संग की अध्यक्ष डीम्पी खालसा ने कहा कि मानव सेवा ही सच्ची सेवा है। प्यासे को पानी भूखे को खाना देना यही  सही मायने में मानव सेवा है। उन्होंने कहा की सिक्ख स्त्री सत्संग परिवार की ओर से इस प्रकार की "दोस्ती की थाली" कार्यक्रम लगातार आयोजित किया जायेगा।


वंही मौके पर मानव सेवा परिवार के सचिव शुभम केडिया ने आम लोगों से अपील किया कि जिन्हें भी इस श्रृंखला में शामिल होना है वह सादर आमन्त्रित है। कहा कि किसी के जन्मदिन, शादी की शालगिरह, पुण्यतिथि के मौके पर "दोस्ती की थाली" के माध्यम से जरूरत मंदो को सहयोग करने को इच्छुक लोग आगे आये।

 श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी  पहले प्रकाश पर्व के उपलक्ष्य में आयोजित इस कार्यक्रम में शामिल संरक्षक, महिला सदस्य, सचिव शुभम केडिया समेत सिक्ख स्त्री सत्संग के सदस्यों ने इस अवसर पर अपनी सेवा दी।

कविता : इंतज़ार करते करते

इंतजार करते करते
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इंतज़ार करते करते
              आँखें पथरा गयी
वक़्त भी देखते देखते
              चार साल बिसरा गयी।

आया फेंकू,फेंका पासा
                लोग गये चौन्धिया
चाय की चुस्की पिला
                लोगों को दिया बर्गलाय।

 हर रंग का तो आ गया धन
              पर नही आया काला धन।
चार बरस हवा में उड़ उड़
              दिखलाता रहा बस अपना फन।


दोस्तों!

रंग बिरंगे धन को देख संतोष करो
                          क्या रखा है काले में
आने वाला है 2019 सब्र करो,
                          सूद समेत देकर बन्द करेंगे     
 अबकी फेंकू को ताले में।

  राजेश
गिरिडीह,झारखण्ड।

यह खबर नही देखा तो क्या देखा


यह गाना नही सुना तो क्या सुना


सोमवार, 19 जून 2017

भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" दिखेगा राहुल और रेशमा की लाजवाब कैमेस्ट्री


 भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" में दिखेगा राहुल और रेशमा की लाजवाब कैमेस्ट्री


रेशमा शेख

          मुम्बई की ब्लू भर्ज फिल्म्स के बैनर तले बनी भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" एक पारिवारिक फ़िल्म है। इस फ़िल्म में नवोदित अभिनेता राहुल सिंह और नवोदित अभिनेत्री रेशमा शेख की कैमेस्ट्री दर्शकों को काफी पसंद आएगी। फ़िल्म में इन दोनों के बीच का रोमांस और तकरार दर्शकों को पूरी तरह बांधे रखने में सफल होगी। इन दोनों नवोदित कलाकारों की जोड़ी इसके पूर्व कई शार्ट फिल्मों में काफी धूम मचाया है। जिसे लाखों दर्शकों ने सराहा है। "प्लेटफार्म नम्बर-टू" के जरिये इन दोनों की धमाकेदार इंट्री भोजपुरी फिल्मों की दुनियां में होने वाली है। जंहा निश्चित ही दर्शकों को इनकी जोड़ी पसंद आएगी। इस फ़िल्म में दर्शकों को जंहा राहुल और रेशमा के बीच का प्यार देखने को मिलेगा वंही आईटम क्वीन सीमा सिंह की बलखाती और लचकती कमर के ठुमके दर्शकों को झूमने पर विवस कर देगा  

रेशमा शेख


झारखंड प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों सहित अन्य प्रदेशों के कई आकर्षक लोकेसनों पर फिल्माये गये इस भोजपुरी फ़िल्म में थियेटर जगत से लम्बे समय तक जुड़े रहे कलाकारों की एक टोली शामिल है। जो दर्शकों को बांधे रखने में कोई कोर कसर नही उठा रखेंगे।


राहुल सिंह व रेशमा शेख





डॉ राबिन्स सिन्हा के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म "प्लेटफ़ार्म नम्बर-टू" की प्रोड्यूसर डॉ नजमा शेख हैं। फ़िल्म की कथा,पटकथा और संवाद राहुल सिंह की है जबकि सिनेमोटोग्राफी/कैमरा अधीर राज ने किया है। फ़िल्म के गानो को सिने जगत के जाने माने गायक कलाकारों के साथ बिहार एवं झारखण्ड के स्थानीय उभरते कलाकारों ने गाये हैं ,जो काफी कर्णप्रिय हैं। 
समाज की एक बहुत ही ज्वलन्त समस्या पर आधारित बनी इस फ़िल्म में एक्शन भी है तो रोमान्स भी। थ्रील भी है तो तो सस्पेंस भी। मार-धाड़,एक्शन,थ्रील,सस्पेंस और रोमांस के समायोजन के साथ बनी यह भोजपुरी फ़िल्म पूरी तरह सामाजिक है। जिसे माँ -बहन-बहु-बेटी समेत परिवार के अन्य सभी छोटे बड़े सदस्यों के साथ मिल-बैठकर देखा जा सकता है। 
इस फ़िल्म में फूहड़ता का दूर-दूर तक नामोनिशान नही है।

"प्लेटफार्म नम्बर -टू"


फ़िल्म के अन्य कलाकारों में सिने जगत के जाने माने हास्य कलाकार केके गोस्वामी,  थियेटर जगत से लम्बे समय तक जुड़े रहे राजेश "अभागा" , डॉ राबिन्स सिन्हा, डॉ जयन्त जलद, मुन्ना बिहारी, अखिलेश चौरसिया, ललित भंडारी, बिरेन्द्रराम, महेश अमन, छोटेलाल,नागेश्वर राम ,श्रवण कुमार,राकेश राज ,हसन, मुस्कान शास्त्री, कंचन वर्मा, रूबी राज, स्नेहा अमृत, स्वाति स्नेहा, आदि शामिल है।

गुरुवार, 14 जनवरी 2016

प्रेरक कहानी :- "बुराई का फल"

कहानी :-


"बुराई का फल"



एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ....
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था .... उसी समय एक
चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ....
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने
फन से ज़हर निकाला .... तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था
उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बुंदे खाने में गिर गई ....
किसी को कुछ पता नहीं चला .... फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने
आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते हीं मौत हो गयी .. अब जब राजा
को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला .... तो ब्रम्ह-हत्या होने से उसे
बहुत दुख हुआ .... ....
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया ..
कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय ....
वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए ....
और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ....
तो उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया .... पर रास्ता बताने के
साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि देखो भाई ....
" जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में
जहर देकर मार देता है ...."
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे .... उसी समय यमराज ने
फैसला (decision) ले लिया .... कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल ....
इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ....
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों .... ?? जब कि उन मृत ब्राह्मणों
की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नही थी ....
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो .... जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं ....
तब उसे बड़ा आनंद मिलता हैं .... पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना
तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला ....
ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ....
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस
महिला को जरूर आनंद मिला .... इसलिये राजा के उस अनजाने
पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ....
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति ....
जब किसी दुसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं ....
तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा .... उस बुराई करने वाले के खाते
में भी डाल दिया जाता हैं ....
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं .... कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप
नही किया .... फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नही .... बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण ....
उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं .... जिनको यमराज बुराई करते ही
हमारे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लो .... " कि किसी के भी पाप-कर्मों का
बखान बुरे भाव से कभी नही करना " .... " यानी किसी की भी बुराई या
चुगली कभी नही करनी हैं " .... लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं ....
" तो हमें ही इसका फल जरूर भुगतना पड़ेगा !

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

प्रेरक प्रसंग:- " घटना "

प्रेरक प्रसंग:-

" घटना "


श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा -

सिय राम मय सब जग जानी ;
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी !

अर्थात

 सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये !

यह लिखने के उपरांत
 तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे

तो

 किसी बच्चे ने आवाज़
दी -महात्मा जी उधर से मत जाओ

बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है !

तुलसीदास जी ने विचार किया हू !
कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है !
अभी तो लिखा था कि
सबमे राम हैं ;उस बैल को प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा !

पर

जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा  और वे गिर पड़े !

किसी तरह से वे वापिस वहा जा पहुचे जहा श्री रामचरितमानस लिख रहे थे

सीधा चौपाई पकड़ी
और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि

 श्री हनुमान जी ने प्रगट हो कर कहा -तुलसीदास जी ये
क्या कर रहे हो ?

तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा -यह चौपाई गलत है !
और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह
सुनाया !

हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा -
चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को
देखा पर बच्चे में क्यों नहीं ?

आखिर उसमे भी तो भगवान थे ;वे तो आपको रोक रहे थे पर आप
ही नहीं माने !

ऐसे ही छोटी-2 घटनाये हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले
कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते !

प्रसंग: " Happy New Year....आखिर कब ?"

प्रसंग :-


" Happy New Year  आखिर कब....?"



HAPPY NEW YEAR  आखिर कब.. ..?

ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..

जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..

सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..

नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे
December बन गया ..

ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..

जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..

इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..

साल को 365 के बजाय 305 दिन
का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..

लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..

भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।

इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
अपना तारीख या दिन 12 बजे
रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??

तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।

चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..

इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..

जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..

कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेशब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..

हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है  .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं?

जय हिन्द!! जय भारत!!

कविता : "नव वर्ष का आगाज"

कविता :-

" नव वर्ष का आगाज"



जनवरी मे आगाज होता है
नववर्ष का,
पति-पत्नी के बीच बिगुल
बज जाता है संघर्ष का!
मकर संक्रांति पर पत्नी
तिल का ताड बनाकर
लताडती है,
छब्बीस जनवरी को
पति की छाती पर
अपना झंडा गाड़ती है!
इसी बीच फ़रवरी आती है..
महाशिवरात्रि महापर्व
पर पत्नी अपने ब्रत
का असर मांगती है,
पति के सामने ही
भगवान से दूसरा वर
मांगती है!
मार्च मे होली..
रंगों की ठिठोली,
तब तो भगवान ही
रखवाला होता है,
पत्नी लाल पीली..
पति का मुह काला होता है!
अप्रैल मे अप्रैल फूल..
मई मे मजदूर दिवस..
जून मे जून ख़राब होती है..
जुलाई के सावन भादो खलते है,
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस..
पति के मन में आज़ाद
है पति!!
सारे गम भूल जाता है..
फिर से हैप्पी न्यू इअर के
झूले में झूल जाता है!
ये भारतीय पति पत्नी के
प्यार का बवंडर है!
हर वर्ष का
शाश्वत दाम्पत्य कलेंडर है!!

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

"पत्रकारिता का धर्म"

"पत्रकारिता का धर्म"


पत्रकारिता का धर्म और धेय :-

"" न स्याही के दुश्मन, न सफेदी के दोस्त।
हमको आइना दिखाना है ,दिखा देते हैं।""