रविवार, 29 नवंबर 2015

क्षणिकाएँ : अपना बना ले मुझे

क्षणिकाएँ:

  " अपना बना ले मुझे "



छोटी सी बात पर
नाराज मत होना
भूल हो गयी हो तो
 माफ़ कर देना।
नाराज तब होना
मेरे दोस्त .....
जब रिश्ता तोड़ देंगे-
और यह तो तब ही होगा
जब हम दुनिया छोड़ देंगें।

गुस्से को थूक कर
फिर से अपना ले मुझे
छोटी सी जिंदगी है...
मेरे दोस्त .....
एक बार फिर से
अपने गले लगा ले मुझे।

क्षणिकाएँ : किस्मत

क्षणिकाएँ :

"किस्मत"

किस्मत पे एतबार किसको है
मिल जाये खुशी इनकार किसको हैं
कुछ तो मजबूरियां रही होंगी  मेरे दोस्त -
वरना जुदाई से प्यार किसको है।

बुधवार, 25 नवंबर 2015

क्षणिकाएँ :- ऊंचाई किस काम की

क्षणिकाएँ :-

ऊंचाई किस काम की

जंहा याद न आये तेरी
वो तन्हाई किस काम की
बिगड़े रिश्तों को बना न पाये जो
वो खुदाई किस काम की
बेशक ऊँची मंजिल की तलाश में
दूर तलक जाना हो हमें
लेकिन जंहा से अपने न दिखे
वो ऊंचाई किस काम की।


क्षणिकाएं :- हादसा

क्षणिकाएं :-

हादसा

हादसा बन के बाजार में आ जायेगा
जो घटित हुआ न हो-
वह भी अखबार में आ जायेगा।
चोर उचक्कों की करो कद्र,
न जाने कब कौन -
किस सरकार में आ जायेगा।

कविता :- हाय रे आमीर

कविता:-

हाय रे आमीर !

हाय रे आमीर !
 तूने यह क्या कह डाला
कहने को तो  कह डाला, अब-
छीन जायेगा तेरा -निवाला ।
किरण के पल्लू में छिप कर
तब  तुम रोना दिन वो रात
नही आएगा कोई उस वक्त
अपना तुझको देने साथ
अश्रुधार बहा बहा कर -भिंगोते
रहना फिर किरण का दुशाला
नही आएगा फिर भी
 कोई आँशु पोछने वाला।
हाय रे आमीर!
यह तूने क्या कह डाला।।

रविवार, 29 मार्च 2015

आलेख:- !! दहेज विनाशी - ईलू- ईलू !!



आलेख:-
                                              !!  दहेज विनाशी - ईलू- ईलू  !!
                                    
प्रचीन काल मे लडके व लडकियों की शादी मां -बाप की मर्जी के अनुकूल ही हुआ करती थी।  क्योंकि उस जमाने की लडकियां व लडके इतने तेज तर्रार नहीं थी जितने के आज कल के।
ज्यों- ज्यों युग परिवर्तित होता गया, त्यों - त्यों शादियों के रीति -रिवाजों में भी परिवर्तन आता गया। आज शादी के पूर्व लडके - लडकियों की परीक्षण की जाती है। उस परीक्षण मे यदि वह पास हुए तो समझो मामला फीट अन्यथा रफा - दफा।
एक लडकी की शादी लगभग तय हो चुकी थी। लडकी को लडका और लडके के परिजनो को लडकी पसंद आ चुकी थी। ऐन मौके पर लडके ने लडकी की परीक्षण का शर्त रख दिया , कहा बगैर जांचे परखें मे किसी को अपना जीवन संगिनी नहीं बना सकता। लडकी के परिजनों को पहले तो यह प्रस्ताव काफी अटपटा लगा, लेकिन लडके के परिवार वालों ने जब जोर दिया तो उन्हे यह शर्त मानने को विवश होना पडा। तय समय पर लडकी को परीक्षण हेतु एक होटल मे बुलाया गया। जहां लडके के कई मित्र वहां पूर्व से ही मौजूद थे। लडकी सकुचाती हुई अपनी एक खास सहेली के साथ उक्त होटल मे पहुंच गयी। लडकी के पहुंचते ही लडके के एक दोस्त ने होटल के बैयरे को ढोसा लाने का आॅडर दिया। इस बीच लडके के दोस्तों ने लडकी से काफी कुछ पुछ ताछ किया। लडकी डरी सहमी उनके सारे सवालों को जबाब देती गयी। इसी बीच बैयरे ने ढोसा लाकर उनके टेबल पर रखा और चला गया। सभी लडके ढोसे पर कूद पडे। लडकी चूंकि देहात की थी उसने कभी कांटा चम्मच का उपयोग किया नहीं था इस कारण उसे कांटा चम्मच का उपयोग करना ठीक तरीके से नहीं आ रहा था। जिसे देख लडके ने दोस्त आपस मे खुशुर - फुसुर करने लगे, लडके ने इस घटना को अपने दोस्तों के बीच अपनी बेइज्जती महसूस किया। नतीजतन उसने अपने परिजनों से दो टूक कह दिया उसे लडकी पसंद नहीं और उसने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।
ठीक ऐसी ही घटना तब घटी जब एक तेज तर्रार लडकी की मंगनी एक अच्छे - भले ,सुशील, मृदुभाषी, छरहरे बदन  के बादशाह कामगार लडके से हुई। मंगनी के पश्चात लडकी अपने होने वाले पति के साथ सैर करने लडके के दुपहिया पर सवार हो निकली। लडका गाडी मध्यम रफ्तार से चला रहा था, क्योंकि ट्रैफिक कुछ अधिक थी। लडकी को यह कतई पसंद नहीं आयी। उसने लडके से गाडी की रफ्तार तेज करने को कहा। लडका रफ्तार मे थोडी सी तेजी लाया। परन्तु अब भी लडकी को पसन्द नहीं आया। उसने उसे और तेज गाडी चलाने को कहा पर लडका और अधिक तेज नहीं किया। लडकी को उसकी रफ्तार नागवार गुजरी, क्योंकि उसे गाडी के रफ्तार से मजा नहीं आ रहा था, इसलिये उसने मुंह फुला ली। वापसी पर लडकी ने अपने परिवार वालों से यह शिकायत की कि -  ’’ जो सडक पर गाडी तेज नहीं चला सकता वो भला जिन्दगी की गाडी क्या खाक चला पायेगा ’’ । इसलिये मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है। नतीजतन मां बाप के न चाहने पर भी वह सम्बन्ध बनने के पूर्व ही सम्बन्ध विच्छेद हो गया।
आखिर यह परीक्षण की क्रिया हमारे समाज मे आई कहां से ? क्या आपने कभी इसे जानने की कोशिश की है ? यह पश्चिमी सभ्यता का हमारे जीवन पर पडता प्रकोप और सिनेमा का कुप्रभाव है।
वैसे सिनेमा देखना कोई बुरी बात नहीं परन्तु उससे अच्छी शिक्षा न ग्रहण कर बुरी शिक्षा ग्रहण करना बुरी बात है। आज हमारे यहां कुछ ऐसी फिल्मंे बनती है जिस पर  ’’ 18 वर्ष से कम उम्र वालों को देखना सख्त मना है ’’ ,  ’’ सिर्फ व्यस्कों के लिये ’’ का लेबल चिपका होता रहता है। परन्तु आप खास कर उन सिनेमा घरों के बुकिंग काउन्टर पर ध्यान दें जिन सिनेमा घरों  ’’ ये ’’ लेबल वाले सिनेमा लगे हों,  तो आप पायेंगे कि बुकिंग काउन्टर पर भीड सिर्फ 18 वर्ष से कम उम्र वालों की ही है। इसमे दोष उन बच्चों अव्यस्कों को नहीं है, बल्कि दोष उस लेबल का है जो इन बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
आज सिनेमा हमारे समाज का अभिन्न अंग बन गया है।  सिनेमा देखने के बाद लोग आम जीवन मे उसका अनुकरण  करते हैं। वैसा ही हाव भाव व्यक्तिगत जीवन मे ढालने पर तुल जाते हैं।
आज से कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म बनी थी  ’’ जंगली ’’ उसमे एक शब्द था  ’’याहू -हू-हू-हू ’’ । जबतक उस फिल्म का दौर चला , तब तक यह शब्द ’’ याहू ’’  हर गली -कूचे , शहर -देहात , गांव -कस्बे में सुबह- शाम,  दोपहर -रात सनने को मिलती थी। धीरे -धीरे लोग  ’’ ओ-ये ओ-ये ’’ के आदी बनते गये। फिर एक दौर चला कबुतर जा-जा-जा ’’ , ’’ अभी मुड नहीं है ’’
फिर बीते कुछ दिनो तक हर गली-कूचे, शहर -देहात मे एक ही शब्द विराजमान हो गया ईलू-ईलू                                      
ये ईलू -ईलू क्या है ? भले इसे गाने वाला अनपढ ही क्यों न हो परन्तु वह भी इसका अर्थ बखुबी जानता है। स्वयं तो समझता ही है दूसरों को भी समझाता है।
यह ईलू - ईलू का भूत खास कर युवा पीढी के सिर तो चढ कर बोलने लगा था। चाहे वह युवक हो या युवती। सभी इस शब्द के अर्थ को समझ कर इसे अपने जीवन के हित मे इस्तेमाल करने लगे। साथ ही इसका उपयोग आप जीवन मे भी करने लगे।  इस शब्द का इस्तेमाल उनके जीवन के लिये कितना उचित और कितना अनुचित है वो तो वह ही जाने। वैसे आज के इस युग मे आज की युवा पीढी इस शब्द की मदद से ही एक दूसरे को हो जायें  तो हमारे समाज के लिये यह शब्द ईलू - इ्र्रलू बडा ही गुणकारी  साबित होगा। क्योंकि इस शब्द के मदद से ही जब युवक युवती एक दूसरे को हो जायेंगे तो समाज मे व्याप्त दहेज रूपी कोढ का समूल सफाया हो जायेगा। जिसे समाप्त करने के लिये सरकार द्वारा अनेक ढोस व कारकर कदम उठाये गये हैं। लेकिन दहेज समाप्ति के सारे उपाय पर  ’’ ढाक के तीन पात ’’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अर्थात यह कोढ समाज मे और गहराता जा रहा है। परन्तु यदि ये शब्द ईलू ईलू से इस कोढ का विनाश संभव है तो युवा पीढी युवक युवतियां खुल कर ईलू ईलू करें। उन्हें इस काम के लिये समाज के हर वर्ग के लोग प्रोत्साहित, व उत्साहित करेंगे। अन्य तबके के मां बाप के साथ साथ खास कर गरीब तबके के मां बाप बहुत ही दुहाईयां देंगे। बलाईयां लेंगे।
परन्तु आज के नौजवानों मे ईलू ईलू के साथ ही अपने अपने जीवन साथी का चुनाव करने की हिम्मत नहीं है तो उन नौजवानों को ईलू -ईलू करना निर्रथक है, बेकार है एक अभिशाप है।
                                                              :- समाप्त:-

सम्पर्क सूत्र :- राजेश कुमार , पत्रकार, राजेन्द्र नगर , बरवाडीह ,गिरिडीह, झारखंड।
मो - 9308097830 /9431366404
ईमेल –patrakarrajesh@gmail.com


गुरुवार, 26 मार्च 2015

आलेख:- लिया जो दहेज, नहीं मिलेगी सरकारी नौकरी



आलेख:


!!  लिया जो दहेज, नहीं मिलेगी सरकारी नौकरी  !!
                  

              
हमने अपने लम्बे जीवन की अवधि मे कई संकटों और मुसिबतों का सामना किया है। ये सारे संकट हमारे सामाजिक जीवन की विसंगतियों के कारण उत्पन्न हुए होते हैं। इन विसंगतियों का लगाव गलत रीति-रिवाज, प्रथा और नितियों से है। इसके मूल मे एक बडा कारण यह है कि हमारा समाज विविध कुरितियों , कुसंस्कारों और कुप्रथाओं से ग्रसित  रहा है।
हम आज भी समाज की कुप्रथाओं के शिकार हैं। इन कुप्रथाओं मे सबसे चर्चित कुप्रथा है - : दहेज प्रथा: ।
इस दहेज प्रथा का कोढ हमारे समाज में एक रोग के समान फैल गया है। जिससे समाज का कोई वर्ग अछुता नहीं रहा है। खास कर मध्यमवर्गीय समाज मे तो लोग दहेज को गौरव और प्रतिष्ठा की बात मानते हैं। जो जितना अधिक दहेज देता या लेता है , समाज मे उसकी इज्जत और प्रतिष्ठा उतनी ही बढती है। इसलिये शनैः शनैः इस रोग का प्रचार बहुत तीव्रता से बढ रहा है। आज सरकार द्वारा दहेज विरोधी कानून लागू किया गया है। इसमे सरकार यह कहती है जो व्यक्ति दहेज लेता या देता है वो दोनो ही दण्ड के भागीदार हैं। उसे उचित दण्ड दिया जाये। परन्तु इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी लोग कानून की आंखों मे धुल झांेक कर इस कुप्रथा को जोर-शोर से पनपा रहे हैं। क्योंकि आज कानून का रक्षक न्यायाधीश, खुद कानून की नजर बचा कर दहेज दे और ले रहा है। अब जब स्वयं रक्षक ही भक्षक बन गया है और कानून की तमाम नियमों को ताख पर रख दिया है तो आम जनता कौन सा गुनाह किया है। जो वो दहेज न दे और न लें।
आज दहेज प्रथा की पृष्ठभूमि के रूप में इसके समर्थक इसे प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा बताते हैं। वो राजा दशरथ द्वारा राजा जनक से ली गयी दहेज की बातें करते है और इस दहेज प्रथा की सार्थकता को प्रमाणित करते है। इस विषय पर वे ये भी तर्क देते हैं कि बेटी की शादी में, बेटी का पिता, बेटी से स्नेह के कारण ही कुछ देते हैं। वे अपनी बेटी के भावी जीवन को उज्जवल बनाये रखने के लिये अपने दामाद को नगदी, कपडे, फर्नीचर समेत अनेकानेक उपयोगी सामग्रियां देते हैं, और, फिर देना भी चाहिए , क्योंकि वह पिता अपनी बेटी से स्नेह करता है। तो इसमें बुराई क्या है?
बुराई तो इस बात में है कि शादी के पूर्व दहेज के रूप में एक मोटी रकम वसूल कर लिया जाता है। लेकिन यदि कोई पिता जो दुर्भाग्य से लडकी का पिता है और उसके पास दहेज में देने को एक फुटी कौडी भी नहीं है। उस वक्त वह लडके के पिता के सामने हाथ जोड गिडगिडाता रहता है लेकिन दहेज के लोभ मे अंधा हो चुका लडके के पिता , जो अपने बेटे को एक ऐसा कच्चा माल समझाता है जो कभी खराब न होने वाला है और बाजार मे उसके हजारों-लाखों खरीददार हैं। बिना कुछ कुछ सोंचे समझे उस गरीब पिता के घर के बनने वाले रिश्ते को तोड देता है, और दूसरी जगह मोल भाव कर अपने बेटे को बेच देता है।
आज इस दहेज प्रथा के कारण कितनी लडकियां कुंवारी ही बैठी है। कितनों ने शादी के उम्र पार कर कोठे की शोभा बढा रही है। क्योंकि आज के इस युग मे लडकी की मांग मे सिन्दुर भरने के लिये लडके वाले एक टैक्स वसूल करता है। जिस टैक्स की अदायगी करने मे लडकी का गरीब पिता अपने को असमर्थ समझता है, और वह अपनी बेटी का रिश्ता नहीं कर पता है।
परिणामतः दुखित होकर कितनी लडकियां आत्महत्या कर लेती है। कितनों के पिता स्वयं आत्महत्या कर लेते हैं या फिर बहसी दरिन्दा बन स्वयं ही अपने ही हाथों अपनी फूल सी लाडली बिटिया का गला घोंट देता है।
ये कितनी दुःखद घटना होती है कि एक पिता जो अपार लाड प्यार देकर अपनी बेटी को जवान करता है, परन्तु समाज के लोगों के कारण, दहेज वसूलने वाले पिशाचों के कारण अपनी बेटी का हाथ पिला न कर, अपना ही हाथ रक्त रंजीत कर लेता है। अपनी लाडली बिटिया की हत्या कर देता है। आज तो कई लोग अपने को बेटी का पिता तक नहंी कहलाना चाहते हैं। परिणामतः बेटी के जन्म होते ही उसे मारने की बातें सोंचने लगता है। कितने पिता तो आज गर्भ मे पल रही बेटी को मां के कोख मे ही दफन कर देते हैं। कितनों को उनके जन्म के बाद मार दिया जाता है। आखिर क्यों ? सिर्फ और सिर्फ इस पिशाच रूपी दहेज प्रथा के कारण।
इसलिये आज के नौजवानों को आगे आना होगा और उन्हें यह सौगन्ध लेनी होगी कि हम युवापीढि के लोग इस कुप्रथा को जड से मिटा देंगे। ताकि आये दिन कोई बेटी का पिता स्वयं ही बेटी का हत्यारा न घोषित किया जा सके। इसलिये हम जब भी शादी करेंगे - बगैर तिलक दहेज के आदर्श विवाह करेंगे। और, इस नारे को बुलंद करेंगे:-
1- लडका, लडकी जब एक समान!
  फिर दहेज की कैसी मांग!!
2- तिलक नहीं , दहेज नहीं,
  शादी कोई व्यापार नहीं!
  खरीदा हुआ जीवन साथी,
  अब हमें स्वीकार नहीं!!
साथ ही साथ प्रशासन को भी चाहिये कि वो दहेज विरोधी कानून को पूरी मुस्तैदी के साथ लागू करे, और जो इस पर अमल न करता पाया जाये उसे उचित से उचित और कठोर कठोर दंड दिया जाये। तथा जो व्यक्ति दहेज लेकर विवाह करता है- उसे सरकारी नौकरी कभी भी किसी कीमत पर न मिले। और, समाज के लोग वैसे दहेज के पक्षधरों का वैसे लोगों को सामाजिक बहिष्कार कर दें। तभी यह कुप्रथा यह सामाजिक कोढ दहेज प्रथा हमारे से समाज से मिट सकेगा- अन्यथा नहीं।
                                                            :- समाप्त:-


सम्पर्क सूत्र:  राजेश कुमार, पत्रकार, राजेन्द्र नगर, बरवाडीह, गिरिडीह 815301 झारखंड
मो- 9308097830 /9431366404
ई-मेल – patrakarrajesh@gmail.com

आलेख - ’’ शिक्षित नारी, देश की प्यारी ’’



आलेख -        
                              ’’ शिक्षित नारी, देश की प्यारी ’’
                                  
आज से कुछ वर्ष पूर्व एक ऐसा समय था, जब स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराना लोग पसंद नहीं करते थे। लेकिन आज हम यह महसूस कर रहे हैं कि स्त्रियों को तालिम दिलाना अति आवश्यक है। क्येांकि आज का युग नारी जागृति का युग है। आज की नारियां जीवन के सभी क्षेत्रों मे पुरूषों से प्रतिद्वन्दिता करने को प्रत्यन कर रही है। आज भी बहुत से नारी शिक्षा का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि स्त्रियों को उचित क्षेत्र घर की दहलीज है न कि पाठशाला मे जाकिर तालिम लेना। इसिलिये वे इस बात पर तर्क भी प्रस्तुत करते हैं कि स़्त्री शिक्षा पर रूपये खर्च करना रूपये की बर्बादी है।
लेकिन मेरा मानना है कि वैसे लोग प्रकृति की जडता, रूढता, और पुरतनता पर विश्वास रख कर स्त्री शिक्षा पर रोक लगाते हैं, वो सरासर गलत करते हैं क्योंकि आज समाज मे यदि कोई शांतिपूर्ण क्रांति ला सकती है तो वो है स्त्री! और, इसके लिये उन्हें शिक्षित होना अनिवार्य है।
स्त्री शिक्षा के अनेकानेक लाभ हैः-
1-शिक्षित स्त्रियां अपने देश के विकास मे महत्वपूर्ण सहयोग दे सकती हैं।
2-वे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों मे पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उन्हे हर कामों मे हाथ बंटा सकती है।
3-वे शिक्षिका, अधिवक्ता, चिकित्सिका, लेखिका, वैज्ञानिक ,प्रशासक के रूप मे समाज की सेवा की सेवा कर सकती है। सही ही-
4- वह युद्ध के समय मे महत्वपूर्ण कार्य भी कर सकती है।
अर्थिक कठिनाईयों वाले इस युग मे स्त्री शिक्षा एक वरदान है। प्रचुरता और उन्नति के दिन बीत चुक है। आज कल मध्यमवर्गीय परिवार के लिये अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिये प्रर्याप्त पैसे कमाना कठिन है। शिक्षित स्त्रियां अपने पतियों की आमदनी को स्वयं अर्थोपार्जन कर बढा सकती है। यदि कोई स्त्री शिक्षित है तो अपने पति के मरणोपरान्त अपने परिवार के भरण-पोषण के लिये पैसे कमा सकती है। परन्तु वह स्त्री यदि अक्षिक्षित है तो दर दर की ठोकरें खाती फिरेगी, लेकिन कहीं भी उन्हें दो जून खाना भी नसीब होगा या नहीं पता नहीं।
आज के इस दौर मे हर इंसान चाहता है कि उसके घर मे हमेशा खुशियां छायी रहे तो इसके लिये स्त्री शिक्षा की आवश्यकता है। जिस घर में पत्नियां, और माताएं सुशिक्षित है उनका घरेलू जीवन काफी सुव्यवस्थित और सुन्दर है। कभी भी आपस मे द्वेष की संभावनाएं वहां नहीं रहती।  आज लडाई झगडे उन्हीं घरों मे हाती है जिस घर की महिलाएं शिक्षित न हों सभी अशिक्षित ही हों। परन्तु जहां सभी शिक्षित होते है वहां ऐसी बातें नहीं पायी जाती हैं। आज यदि महिलाएं शिक्षित रहे तो अपने बच्चों का पालन पोषण ठीक ढंग से कर सकती है और, साथ ही अपने देश का भविष्य भी उज्जवल कर सकती हैं। शिक्षा महिलाओं के विचारों की स्वतंत्रता प्रदान करती है। यह उनका दृष्टिकोण उदार बनाता है और उनके कर्तव्यों और दायित्वों को ज्ञान कराती है।
’’ स्त्रियों को डिग्रियां प्राप्त करने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। ’’ आज भी बहुत से लोग ऐसा कहते फिरते हैं। लेकिन उनका यह कथन सरासर गलत है- क्योंकि महिलाओं ने जीवन के सभी क्षेत्रों मे अपना महत्व प्रदर्शित कर दिया है। कोई कारण नहीं है कि महिलाओं को वैसी शिक्षा नहीं मिलनी चाहिये जो पुरूषों को मिलती है। लेकिन साथ साथ महिलाओं को अपने घर की भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये। इसिलिये आज की नारी के लिये अनेक प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। जसै - गृह विज्ञान और बाल मनोविज्ञान। गृह विज्ञान मे घर कीउन तमाम बातों की जानकारी दी जाती है जो एक गृहणी के लिये आवश्यक है और बाल मनोविज्ञान मे, यह बताया जाता है कि स्त्री जो मां बनती है तो उनका क्या क्या कर्तव्य होता है।  अपने लिये, अपने परिवार के लिये और अपने बच्चो के लिये। अतः स्त्रीको इसका ज्ञान होना आवश्यक है।
किसी भी देश की प्रगति आज स्त्री शिक्षा पर ही निर्भर है, क्योंकि पढी लिखी स्त्री यह समझ सकती है कि स्त्री का सही रूप क्या है। वह कभी न कहेगी या मानेगी कि ’’ स्त्री सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन मात्र है ’’ बल्कि और भी बहुत सारी समस्याओं का समाधान कर सकती है। परन्तु यदि स्त्री पढी लिखी न होगी तो वह कुछ भी नहीं कर सकती है और वह सिर्फ बच्चा पैदा करने वाली मशीन बन कर घर मे बैठी रहेगी ओर अपने पति देव के इशारे पर नाचती रहेगी।
आज तमाम स्त्रियों को शिक्षित होना इसीलिय आवश्यक है तथा इसके लिये सबों को चाहिये कि वह स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित करें। ताकि स्त्री, शिक्षा प्राप्ति की ओर अग्रसर रहें। 
                                                     :-  समाप्त :-

सम्पर्क सूत्र:-राजेश कुमार, पत्रकार, राजेन्द्र नगर, बरवाडीह, गिरिडीह 815301 झारखंड
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