रविवार, 29 मार्च 2015

आलेख:- !! दहेज विनाशी - ईलू- ईलू !!



आलेख:-
                                              !!  दहेज विनाशी - ईलू- ईलू  !!
                                    
प्रचीन काल मे लडके व लडकियों की शादी मां -बाप की मर्जी के अनुकूल ही हुआ करती थी।  क्योंकि उस जमाने की लडकियां व लडके इतने तेज तर्रार नहीं थी जितने के आज कल के।
ज्यों- ज्यों युग परिवर्तित होता गया, त्यों - त्यों शादियों के रीति -रिवाजों में भी परिवर्तन आता गया। आज शादी के पूर्व लडके - लडकियों की परीक्षण की जाती है। उस परीक्षण मे यदि वह पास हुए तो समझो मामला फीट अन्यथा रफा - दफा।
एक लडकी की शादी लगभग तय हो चुकी थी। लडकी को लडका और लडके के परिजनो को लडकी पसंद आ चुकी थी। ऐन मौके पर लडके ने लडकी की परीक्षण का शर्त रख दिया , कहा बगैर जांचे परखें मे किसी को अपना जीवन संगिनी नहीं बना सकता। लडकी के परिजनों को पहले तो यह प्रस्ताव काफी अटपटा लगा, लेकिन लडके के परिवार वालों ने जब जोर दिया तो उन्हे यह शर्त मानने को विवश होना पडा। तय समय पर लडकी को परीक्षण हेतु एक होटल मे बुलाया गया। जहां लडके के कई मित्र वहां पूर्व से ही मौजूद थे। लडकी सकुचाती हुई अपनी एक खास सहेली के साथ उक्त होटल मे पहुंच गयी। लडकी के पहुंचते ही लडके के एक दोस्त ने होटल के बैयरे को ढोसा लाने का आॅडर दिया। इस बीच लडके के दोस्तों ने लडकी से काफी कुछ पुछ ताछ किया। लडकी डरी सहमी उनके सारे सवालों को जबाब देती गयी। इसी बीच बैयरे ने ढोसा लाकर उनके टेबल पर रखा और चला गया। सभी लडके ढोसे पर कूद पडे। लडकी चूंकि देहात की थी उसने कभी कांटा चम्मच का उपयोग किया नहीं था इस कारण उसे कांटा चम्मच का उपयोग करना ठीक तरीके से नहीं आ रहा था। जिसे देख लडके ने दोस्त आपस मे खुशुर - फुसुर करने लगे, लडके ने इस घटना को अपने दोस्तों के बीच अपनी बेइज्जती महसूस किया। नतीजतन उसने अपने परिजनों से दो टूक कह दिया उसे लडकी पसंद नहीं और उसने सम्बन्ध विच्छेद कर दिया।
ठीक ऐसी ही घटना तब घटी जब एक तेज तर्रार लडकी की मंगनी एक अच्छे - भले ,सुशील, मृदुभाषी, छरहरे बदन  के बादशाह कामगार लडके से हुई। मंगनी के पश्चात लडकी अपने होने वाले पति के साथ सैर करने लडके के दुपहिया पर सवार हो निकली। लडका गाडी मध्यम रफ्तार से चला रहा था, क्योंकि ट्रैफिक कुछ अधिक थी। लडकी को यह कतई पसंद नहीं आयी। उसने लडके से गाडी की रफ्तार तेज करने को कहा। लडका रफ्तार मे थोडी सी तेजी लाया। परन्तु अब भी लडकी को पसन्द नहीं आया। उसने उसे और तेज गाडी चलाने को कहा पर लडका और अधिक तेज नहीं किया। लडकी को उसकी रफ्तार नागवार गुजरी, क्योंकि उसे गाडी के रफ्तार से मजा नहीं आ रहा था, इसलिये उसने मुंह फुला ली। वापसी पर लडकी ने अपने परिवार वालों से यह शिकायत की कि -  ’’ जो सडक पर गाडी तेज नहीं चला सकता वो भला जिन्दगी की गाडी क्या खाक चला पायेगा ’’ । इसलिये मुझे यह रिश्ता मंजूर नहीं है। नतीजतन मां बाप के न चाहने पर भी वह सम्बन्ध बनने के पूर्व ही सम्बन्ध विच्छेद हो गया।
आखिर यह परीक्षण की क्रिया हमारे समाज मे आई कहां से ? क्या आपने कभी इसे जानने की कोशिश की है ? यह पश्चिमी सभ्यता का हमारे जीवन पर पडता प्रकोप और सिनेमा का कुप्रभाव है।
वैसे सिनेमा देखना कोई बुरी बात नहीं परन्तु उससे अच्छी शिक्षा न ग्रहण कर बुरी शिक्षा ग्रहण करना बुरी बात है। आज हमारे यहां कुछ ऐसी फिल्मंे बनती है जिस पर  ’’ 18 वर्ष से कम उम्र वालों को देखना सख्त मना है ’’ ,  ’’ सिर्फ व्यस्कों के लिये ’’ का लेबल चिपका होता रहता है। परन्तु आप खास कर उन सिनेमा घरों के बुकिंग काउन्टर पर ध्यान दें जिन सिनेमा घरों  ’’ ये ’’ लेबल वाले सिनेमा लगे हों,  तो आप पायेंगे कि बुकिंग काउन्टर पर भीड सिर्फ 18 वर्ष से कम उम्र वालों की ही है। इसमे दोष उन बच्चों अव्यस्कों को नहीं है, बल्कि दोष उस लेबल का है जो इन बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
आज सिनेमा हमारे समाज का अभिन्न अंग बन गया है।  सिनेमा देखने के बाद लोग आम जीवन मे उसका अनुकरण  करते हैं। वैसा ही हाव भाव व्यक्तिगत जीवन मे ढालने पर तुल जाते हैं।
आज से कुछ वर्ष पूर्व एक फिल्म बनी थी  ’’ जंगली ’’ उसमे एक शब्द था  ’’याहू -हू-हू-हू ’’ । जबतक उस फिल्म का दौर चला , तब तक यह शब्द ’’ याहू ’’  हर गली -कूचे , शहर -देहात , गांव -कस्बे में सुबह- शाम,  दोपहर -रात सनने को मिलती थी। धीरे -धीरे लोग  ’’ ओ-ये ओ-ये ’’ के आदी बनते गये। फिर एक दौर चला कबुतर जा-जा-जा ’’ , ’’ अभी मुड नहीं है ’’
फिर बीते कुछ दिनो तक हर गली-कूचे, शहर -देहात मे एक ही शब्द विराजमान हो गया ईलू-ईलू                                      
ये ईलू -ईलू क्या है ? भले इसे गाने वाला अनपढ ही क्यों न हो परन्तु वह भी इसका अर्थ बखुबी जानता है। स्वयं तो समझता ही है दूसरों को भी समझाता है।
यह ईलू - ईलू का भूत खास कर युवा पीढी के सिर तो चढ कर बोलने लगा था। चाहे वह युवक हो या युवती। सभी इस शब्द के अर्थ को समझ कर इसे अपने जीवन के हित मे इस्तेमाल करने लगे। साथ ही इसका उपयोग आप जीवन मे भी करने लगे।  इस शब्द का इस्तेमाल उनके जीवन के लिये कितना उचित और कितना अनुचित है वो तो वह ही जाने। वैसे आज के इस युग मे आज की युवा पीढी इस शब्द की मदद से ही एक दूसरे को हो जायें  तो हमारे समाज के लिये यह शब्द ईलू - इ्र्रलू बडा ही गुणकारी  साबित होगा। क्योंकि इस शब्द के मदद से ही जब युवक युवती एक दूसरे को हो जायेंगे तो समाज मे व्याप्त दहेज रूपी कोढ का समूल सफाया हो जायेगा। जिसे समाप्त करने के लिये सरकार द्वारा अनेक ढोस व कारकर कदम उठाये गये हैं। लेकिन दहेज समाप्ति के सारे उपाय पर  ’’ ढाक के तीन पात ’’ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अर्थात यह कोढ समाज मे और गहराता जा रहा है। परन्तु यदि ये शब्द ईलू ईलू से इस कोढ का विनाश संभव है तो युवा पीढी युवक युवतियां खुल कर ईलू ईलू करें। उन्हें इस काम के लिये समाज के हर वर्ग के लोग प्रोत्साहित, व उत्साहित करेंगे। अन्य तबके के मां बाप के साथ साथ खास कर गरीब तबके के मां बाप बहुत ही दुहाईयां देंगे। बलाईयां लेंगे।
परन्तु आज के नौजवानों मे ईलू ईलू के साथ ही अपने अपने जीवन साथी का चुनाव करने की हिम्मत नहीं है तो उन नौजवानों को ईलू -ईलू करना निर्रथक है, बेकार है एक अभिशाप है।
                                                              :- समाप्त:-

सम्पर्क सूत्र :- राजेश कुमार , पत्रकार, राजेन्द्र नगर , बरवाडीह ,गिरिडीह, झारखंड।
मो - 9308097830 /9431366404
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