शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

आज है गिरिडीह जिले के घटित हुई भेलवाघाटी सामूहिक नरसंहार की बरसी

आज है गिरिडीह जिले के घटित हुई भेलवाघाटी सामूहिक नरसंहार की बरसी

गिरिडीह : आज है भेलवाघाटी में घटित हुई सामूहिक नरसंहार की बरसी। पन्द्रह साल पूर्व आज ही के दिन अर्थात 11 सितम्बर 2005 को प्रतिबंधित नक्सली भाकपा माओवादी के हथियार बंद दस्ते ने 17 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। 

उस जघन्य सामूहिक नरसंहार की घटना में भेलवाघाटी निवासी मजीद अंसारी, मकसूद अंसारी, मंसूर अंसारी, रज्जाक अंसारी, सिराज अंसारी, रामचन्द्र हाजरा, गणेश साव, अशोक हाजरा, जेनस मुर्मू, मुंशी मियां और उनके बेटे जमाल अंसारी, कलीम मियां, हमीद मियां, चेतन सिंह, दिलमुहम्मद अंसारी, युसूफ अंसारी आदि की माओवादियों ने नृशंस हत्या कर दी थी। उस नरसंहार कांड में मारे गए सभी 17 लोग ग्रामरक्षा दल के सदस्य थे। 

माओवादियों के हथियार बन्द दस्ते ने उस सबों की हत्या जनअदालत लगा कर किया था। माओवादियों के दस्ता 11 सितबंर 2005 की रात भेलवाघाटी गांव पर धावा बोला था और पूरे गांव को अपने कब्जे में कर लिया था। इस दौरान माओवादियों ने गांव के मस्जिद पर लगे लाउडस्पीकर से पूरे गांव में जनअदालत लगाने का एलान किया था। और सभी ग्रामीणों को जनअदालत में पहुंचने को कहा था। माओवादियों के उस एलान के बाद गांव के ग्रामीणों के साथ ग्राम रक्षादल के कुछ सदस्य जनअदालत स्थल पर पहुंचे लेकिन कई लोग नहीं पहुंचे। ग्रामरक्षा दल के जो सदस्य जनअदालत में शरीक नहीं हुये माओवादियों उन एक-एक सदस्य को खोज कर जनअदालत पर लाया और और सभी की पहले पिटाई की फिर उनके हाथ-पांव बांधकर उनकी नृशंस हत्या कर दी थी।

15 साल पुरानी उस खूनी रात को भेलवाघाटी गांव के ग्रामीण आज भी याद कर काफी ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं। उनके सामने वह मंजर किसी चलचित्र की तरह घुमने लगती है। उस घटना में माओवादियों ने कई ग्रामीणों के घरों को भी विस्फोट कर उड़ा दिया था।


गौरतलब है कि भेलवाघाटी इलाके में माओवादियों को बढ़ते जनाधार को देख गांव के ग्रामीणों ने माओवादियों से लोहा लेने के लिए ग्राम रक्षा दल का गठन किया था। ग्राम रक्षा दल के इन सदस्यों को माओवादियों से लोहा लेने के लिए पुलिस प्रशासन द्वारा टार्च, लाठी समेत कई हथियार भी उपलब्ध कराये गये थे। ग्राम रक्षा दल के सदस्य रतजग्गा कर गांव में पहरा देना शुरू कर दिया था। जिससे गांव में माओवादियों की इंट्री पर रोक लग गयी थी। ग्रामरक्षा दल के सदस्यों के इस पहरा से बौखलाए माओवादियों  ने 11 सितबंर 2005 की रात भेलवाघाटी गांव पर धावा बोला और पूरे गांव को अपने कब्जे में कर सामूहिक नरसंहार की नृशंस घटना को अंजाम दिया था।

हालांकि उक्त सामूहिक नरसंहार की घटना के 15 साल बीत चुके हैं। लेकिन इन 15 सालों के दौरान उक्त नरसंहार में मारे गये ग्राम रक्षा दल के सदस्यों के परिजनों की सुध लेने वाला कोई नही है। सरकारी स्तर पर भी उन मृतकों के परिजनों को कोई सरकारी लाभ अब तक नहीं मिल पाया है।

जबकि घटना के दूसरे दिन सूबे के तत्कालीन मुख्यमंत्री के अलावे राज्य के कई बड़े मंत्री, विपक्षी दलों के नेता और अधिकारियों का काफिला भेलवाघाटी गांव पहुंचा था जहां कई बड़ी घोषनाएं हुईं थीं। जिसमें मृतक के आश्रितों को नौकरी, पांच लाख का मुआवजा, मृतक के वृद्ध परिजनों को पेंशन, बच्चों को मुफ्त शिक्षा, पूरे गांव को एक आदर्श गांव बनाने जैसी घोषणाएं शामिल थीं।

इन 15 सालों के दौरान सिर्फ भेलवाघाटी में थाना खुल पाया है और आवागमन को सुगम बनाने हेतु फतेहपुर मोड़ से लेकर भेलवाघाटी तक सड़क का निर्माण कार्य जारी है। गांव के बच्चों की शिक्षा के लिए आश्रम का भवन बन रहा है। लेकिन मृतक के आश्रितों को नौकरी, मृतक के परिजनों को मुआवजा और पेंशन की घोषणाएं आज भी अधूरी पड़ी हुई है।

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