गिरिडीह (GIRIDIH)। अकदोनी कला पंचयात भवन और स्टडी पॉइंट बगोदर में जस्ट टू राइट्स फॉर चिल्ड्रेन की सहयोगी संस्था बनवासी विकास आश्रम द्वारा 26 दिसम्बर को वीर बाल दिवस मनाया जायेगा। जिसमें स्थानीय जनप्रतिनिधि सहित वीर बालक बालिकायें भाग लेंगे। इस दौरान वीर गोबिंद सिंह के पुत्रों- साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह की शहादत की कहानी बच्चो को बताया जायेगा। बच्चे उनकी कहानी को जानकर सहसी बनेगें। यह जानकारी बनवासी विकास आश्रम क़े सचिव सह बाल अधिकार एक्टिविस्ट सुरेश कुमार शक्ति ने दी।
बता दें कि पिछले साल 9 जनवरी को गुरु गोबिंद सिंह जी के प्रकाश पर्व के दिन प्रधानमंत्री ने यह घोषणा किया थ कि 26 दिसंबर को गुरु गोबिंद सिंह के पुत्रों- साहिबजादे बाबा जोरावर सिंह जी और बाबा फतेह सिंह जी की शहादत की स्मृति में ‘वीर बाल दिवस’मनाया जाएगा। उसी के तहत यह कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है।
वीर बाल दिवस का इतिहास और महत्व
इतिहास
इसके पीछे एक कहानी है. मुगल शासनकाल के दौरान पंजाब में सिखों के नेता गुरु गोबिंद सिंह के चार बेटे थे. उन्हें चार साहिबजादे खालसा कहा जाता था. 1699 में गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की. धार्मिक उत्पीड़न से सिख समुदाय के लोगों की रक्षा करने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की गई थी. तीन पत्नियों से गुरु गोबिंद सिंह चार बेटे: अजीत, जुझार, जोरावर और फतेह, सभी खालसा का हिस्सा थे. उन चारों को 19 वर्ष की आयु से पहले मुगल सेना द्वारा मार डाला गया था. उनकी शहादत का सम्मान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल घोषणा की थी कि 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
महत्व
वीर बाल दिवस खालसा के चार साहिबजादों के बलिदान को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है. अंतिम सिख गुरु गोबिंद सिंह के छोटे बच्चों ने अपने आस्था की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे. यह उनकी कहानियों को याद करने का भी दिन और यह जानने का भी दिन है कि कैसे उनकी निर्मम हत्या की गई- खासकर जोरावर और फतेह सिंह की. सरसा नदी के तट पर एक लड़ाई के दौरान दोनों साहिबजादे को मुगल सेना ने बंदी बना लिया था. इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर उन्हें क्रमशः 8 और 5 साल की उम्र में कथित तौर पर जिंदा दफन कर दिया गया था।
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