आलेख:
!! लिया जो दहेज, नहीं मिलेगी सरकारी नौकरी !!
हमने अपने लम्बे
जीवन की अवधि मे कई संकटों और मुसिबतों का सामना किया है। ये सारे संकट हमारे
सामाजिक जीवन की विसंगतियों के कारण उत्पन्न हुए होते हैं। इन विसंगतियों का लगाव
गलत रीति-रिवाज,
प्रथा और नितियों से है। इसके मूल मे एक बडा कारण यह है कि
हमारा समाज विविध कुरितियों , कुसंस्कारों और कुप्रथाओं से ग्रसित रहा है।
हम आज भी समाज की
कुप्रथाओं के शिकार हैं। इन कुप्रथाओं मे सबसे चर्चित कुप्रथा है - : दहेज प्रथा:
।
इस दहेज प्रथा का
कोढ हमारे समाज में एक रोग के समान फैल गया है। जिससे समाज का कोई वर्ग अछुता नहीं
रहा है। खास कर मध्यमवर्गीय समाज मे तो लोग दहेज को गौरव और प्रतिष्ठा की बात
मानते हैं। जो जितना अधिक दहेज देता या लेता है , समाज मे उसकी इज्जत और
प्रतिष्ठा उतनी ही बढती है। इसलिये शनैः शनैः इस रोग का प्रचार बहुत तीव्रता से बढ
रहा है। आज सरकार द्वारा दहेज विरोधी कानून लागू किया गया है। इसमे सरकार यह कहती
है जो व्यक्ति दहेज लेता या देता है वो दोनो ही दण्ड के भागीदार हैं। उसे उचित दण्ड
दिया जाये। परन्तु इतना सब कुछ होने के बाबजूद भी लोग कानून की आंखों मे धुल झांेक
कर इस कुप्रथा को जोर-शोर से पनपा रहे हैं। क्योंकि आज कानून का रक्षक न्यायाधीश, खुद कानून की नजर बचा कर दहेज दे और ले रहा है। अब जब स्वयं रक्षक ही भक्षक बन
गया है और कानून की तमाम नियमों को ताख पर रख दिया है तो आम जनता कौन सा गुनाह किया
है। जो वो दहेज न दे और न लें।
आज दहेज प्रथा की
पृष्ठभूमि के रूप में इसके समर्थक इसे प्राचीन काल से चली आ रही प्रथा बताते हैं।
वो राजा दशरथ द्वारा राजा जनक से ली गयी दहेज की बातें करते है और इस दहेज प्रथा
की सार्थकता को प्रमाणित करते है। इस विषय पर वे ये भी तर्क देते हैं कि बेटी की
शादी में, बेटी का पिता,
बेटी से स्नेह के कारण ही कुछ देते हैं। वे अपनी बेटी के
भावी जीवन को उज्जवल बनाये रखने के लिये अपने दामाद को नगदी, कपडे, फर्नीचर समेत अनेकानेक उपयोगी सामग्रियां देते हैं, और, फिर देना भी चाहिए , क्योंकि वह पिता अपनी बेटी से स्नेह करता है। तो इसमें
बुराई क्या है?
बुराई तो इस बात
में है कि शादी के पूर्व दहेज के रूप में एक मोटी रकम वसूल कर लिया जाता है। लेकिन
यदि कोई पिता जो दुर्भाग्य से लडकी का पिता है और उसके पास दहेज में देने को एक
फुटी कौडी भी नहीं है। उस वक्त वह लडके के पिता के सामने हाथ जोड गिडगिडाता रहता
है लेकिन दहेज के लोभ मे अंधा हो चुका लडके के पिता , जो अपने बेटे को एक ऐसा कच्चा माल समझाता है जो कभी खराब न होने वाला है और
बाजार मे उसके हजारों-लाखों खरीददार हैं। बिना कुछ कुछ सोंचे समझे उस गरीब पिता के
घर के बनने वाले रिश्ते को तोड देता है, और दूसरी जगह मोल भाव कर
अपने बेटे को बेच देता है।
आज इस दहेज प्रथा
के कारण कितनी लडकियां कुंवारी ही बैठी है। कितनों ने शादी के उम्र पार कर कोठे की
शोभा बढा रही है। क्योंकि आज के इस युग मे लडकी की मांग मे सिन्दुर भरने के लिये
लडके वाले एक टैक्स वसूल करता है। जिस टैक्स की अदायगी करने मे लडकी का गरीब पिता
अपने को असमर्थ समझता है, और वह अपनी बेटी का रिश्ता नहीं कर पता है।
परिणामतः दुखित
होकर कितनी लडकियां आत्महत्या कर लेती है। कितनों के पिता स्वयं आत्महत्या कर लेते
हैं या फिर बहसी दरिन्दा बन स्वयं ही अपने ही हाथों अपनी फूल सी लाडली बिटिया का
गला घोंट देता है।
ये कितनी दुःखद
घटना होती है कि एक पिता जो अपार लाड प्यार देकर अपनी बेटी को जवान करता है, परन्तु समाज के लोगों के कारण, दहेज वसूलने वाले पिशाचों के कारण अपनी बेटी का
हाथ पिला न कर, अपना ही हाथ रक्त रंजीत कर लेता है। अपनी लाडली बिटिया की हत्या कर देता है।
आज तो कई लोग अपने को बेटी का पिता तक नहंी कहलाना चाहते हैं। परिणामतः बेटी के
जन्म होते ही उसे मारने की बातें सोंचने लगता है। कितने पिता तो आज गर्भ मे पल रही
बेटी को मां के कोख मे ही दफन कर देते हैं। कितनों को उनके जन्म के बाद मार दिया
जाता है। आखिर क्यों ? सिर्फ और सिर्फ इस पिशाच रूपी दहेज प्रथा के कारण।
इसलिये आज के
नौजवानों को आगे आना होगा और उन्हें यह सौगन्ध लेनी होगी कि हम युवापीढि के लोग इस
कुप्रथा को जड से मिटा देंगे। ताकि आये दिन कोई बेटी का पिता स्वयं ही बेटी का
हत्यारा न घोषित किया जा सके। इसलिये हम जब भी शादी करेंगे - बगैर तिलक दहेज के
आदर्श विवाह करेंगे। और, इस नारे को बुलंद करेंगे:-
1- लडका, लडकी जब एक समान!
फिर दहेज की कैसी मांग!!
2- तिलक नहीं , दहेज नहीं,
शादी कोई व्यापार नहीं!
खरीदा हुआ जीवन साथी,
अब हमें स्वीकार नहीं!!
साथ ही साथ
प्रशासन को भी चाहिये कि वो दहेज विरोधी कानून को पूरी मुस्तैदी के साथ लागू करे, और जो इस पर अमल न करता पाया जाये उसे उचित से उचित और कठोर कठोर दंड दिया
जाये। तथा जो व्यक्ति दहेज लेकर विवाह करता है- उसे सरकारी नौकरी कभी भी किसी कीमत
पर न मिले। और, समाज के लोग वैसे दहेज के पक्षधरों का वैसे लोगों को सामाजिक बहिष्कार कर दें।
तभी यह कुप्रथा यह सामाजिक कोढ दहेज प्रथा हमारे से समाज से मिट सकेगा- अन्यथा
नहीं।
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सम्पर्क सूत्र: राजेश कुमार, पत्रकार, राजेन्द्र नगर, बरवाडीह, गिरिडीह 815301 झारखंड
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