मंगलवार, 24 मार्च 2015

नजरिया



           नजरिया

समाज मे रहता जो प्राणी,
वो सामाजिक कहलाता है।
तर्क करने की शिक्षा दे जो,
वो लाॅजिक कहलाता है।

विज्ञान की बातें बतलाता जो,
वो वैज्ञानिक कहलाता है।
नये दौर के साथ चले जो,
वो आधुनिक कहलाता है।

ताजा -ताजा समाचार ही -
दूर-दर्शन पर आता है।
दूसरों पर सम्मोहित होना ही -
आकर्षण कहलाता है।

सिगरेट जो हरदम पीता,
वो स्मोकर कहलाता है।
सर्कस मे जो हरदम हंसाता,
वो जोकर कहलाता है।

न्याय सबों की करता है जो,
वही न्यायाधीश कहलाता है।
दूसरों को जलाये खुद जलकर, जो
वही माचिस कहलाता है।

हानि लाभ न सोंचे जो ,
वही सच्चा यार कहलाता है।
नजर -नजर से मिले नजर तो,
वहीं प्यार हो जाता है।

हस्ताक्षर



      हस्ताक्षर

शहद युक्त कटोरे में,
जब कोई मक्खी -
गिर जाती है।
फडफडाना छोड,
शिथिल पड जाती है।
मुंह बिचकाकर घृणा से -
लोग बाहर फैंक देत हैं।
मैं स्वयं -
उस मक्खी के समान,
शहद भरे कटोरे में,
जा गिरा हूं।
तिस्कृत होता हूं,
घृणित दूष्टि से -
देखा भी जाता हूं।
पर शहद के कटोरे से,
फैंका नहीं जाता हूं।
क्योंकि- मेरी धमनियां-
रक्तों से लैश है ।
उसमें स्वांस भी -
अभी शेष है।
काश!
मैं अधमरा न हो,
पूरा मर जाता ।
फडफडाना छोड
शिथिल पड जाता।
घृणा और तिरस्कार से
विमुख तो रहता।
देख कर मुझको, मुंह -
किसी का तो न बिचकता।
या खुदा, तु मुझे-
अधमरा न छोड,
पूरा मार दे।
जिल्लत की जिन्दगी से -
मुझको उबार दे।
मेरी इस आरजू को ,
तू पूरा कर दे ।
मेरी इस आरजू पर तू-
अपनी: हस्ताक्षर: दे।

सफर



       सफर 

जानकर कांटो को
सफर तय करती है।
न चाह कर भी
दामन थाम लेती है।
ढेस लगती है , छलनी होती है
पर पतीत बन, फिर सफर करती है।
बनकर कहर जब-
टूटती है राह।
अश्कों से नैन
तर हो जाती है।
अतीत की याद तब -
बर्तमान में आती है,
अश्क ही अश्क पा
और अश्क बहाती है।
विवादों के घेरे मे,
फंस कर तिलमिलाती है।
थक-हार कर तब-
वापस लौट आती है।
ठेस लगती है, छलनी होती है।
पर पतीत बन,
फिर सफर तय करती है।

अरमानों का चिराग



   अरमानों का चिराग

मैं अजब बाती था,
एक चिराग का
जलना चाहता था,
पर मजबूर था।
चिराग दूर थी बाती से,
सूख सा गया था बाती,
रीत की बंधन,
जमाने की जलन,
व्याप्त थी, साथ में-
समाज की कुढन।
इन बंधनों को ,
क्या तोड पाता मैं ?
इच्छा तेज थी -
अवश्य जल जाता मैं।
पर विवश था सोंचकर, 
क्या चिराग साथ दे पायेगी ?
या, वक्त से पूर्व ही -
साथ छोड जायेगी।
वक्त ने हकीकत बतला ही दी,
चिराग ने दूसरी बाती थाम ही ली,
वादाओं से विमुख हो,
वफाओं का साथ छोड
जा पहुंची है दूर,
कर मेरी अरमानों को -
चकानाचूर।