शनिवार, 28 मार्च 2020

पूर्व फौजी ने बर्तमान दौर को एक शीत युद्ध बताया, दिया पूर्ण कर्फ्यू लगाने का सुझाव

बर्तमान दौर एक शीत युद्ध के रूप में :  नवीनकांत सिंह
लॉक डाउन से नही पूर्ण कर्फ्यू से होगी समस्या समाधान

गिरिडीह :  भूतपूर्व सैनिक सह वर्तमान में भारत स्वाभिमान का एक सिपाही नवीन कान्त सिंह ने कहा कि दिनोदिन देश की जो भयावह स्थिति बन रही है इसका समाधान केवल लॉक डाउन नहीं है। क्योंकि कितना भी लोगों को समझा लिया जाए, कुछ लोग अभी भी ऐसे हैं जो मॉर्निंग वॉक से बाज नहीं आ रहे हैं।  जरूरी सामान की खरीदारी के नाम पर 5-10 रुपए का भी सामान खरीदने के लिए रोड पर आते रहते हैं।  ऐसे लोग जो पहले रोज ताजा सब्जी नहीं खाते होंगे लेकिन आज सुबह शाम एक पाव सब्जी लेने सड़क पर दिखते हैं। इतना ही नहीं दवा का पुराना चिट्ठा लेकर दारू का पाउच ला रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि इन सब चीजों का एक ही इलाज ही केवल और केवल कम से कम 15 दिनों की पूरी तरीके से कर्फ्यू। पूर्ण कर्फ्यू लगने से उठने वाली समस्या जो सबसे जरूरी है कुछ लोगों को भूखे रहने की नौबत आने लगेगी। उनके लिए लोकल स्तर पर मतलब वार्ड, पंचायत स्तर पर कंट्रोल रूम बनाया जाए 2-3 हेल्प लाइन नम्बर जारी किये जायें। जिसपर ऐसे लोग सूचना दे जिनके पास खाने का कोई सामान नहीं हो या कोई जरूरी दवा की जरूरत हो।  कंट्रोल रूम की सूचना के बाद एक टीम उनके घर के सदस्यों के हिसाब से खाने की कोई न कोई खाद्य पदार्थ उपलब्ध कराए।  अगर उस घर में खाना पकाने के लिए किसी प्रकार का ईंधन उपलब्ध है तो उन्हें कच्चा राशन उपलब्ध कराया जाए और पकाने का ईंधन ना हो तो ब्रेड, सतु, चूड़ा, निमकी, sakarparaa, बिस्कुट, कोई ज्यादा दिन चलने वाला फल जो भी टीम के पास उपलब्ध हो उसे उपलब्ध करा दें।  साथ में उनके घर को भी चेक करें कि कहीं लाभुक झूठ तो नहीं बोल रहे हैं। अगर झूठ हो तो उनके ऊपर  एफआईआर दर्ज करें।  बेसक समस्या निदान के बाद ही सजा का प्रावधान हो। 

श्री सिंह कहते हैं कि ऐसा होने से तत्काल ये फालतू के भीड़ वाला मामला सुलझ जाएगा। क्योंकि आज ऐसी भी समस्या आ रही है बाजार में आटा की किल्लत हो गई है।  लोग खामखा रोड पर आटा-आटा करते चल रहे हैं।  फैक्टरियों को अनुमति के बाद भी लेबर के अभाव में आटा तैयार नहीं कर पा रही है।  इन सब से निपटने के लिए भूतपूर्व सैनिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक ,एनसीसी, स्काउट गाइड , नेहरू युवा केन्द्र के युवा गन का सहयोग लिया जा सकता है।

 साथ में जो लोग घर से बेघर होकर दूर दराज से जो लोग पैदल ही यात्रा कर रहे हैं। जिस राज्य में हैं उन्हें वहीं की सरकार रोक ले। उनका मेडिकल टेस्ट कर अच्छे लोगों को ऐसे सेवा कार्य में लें और जिन्हें समस्या हो उनका सही इलाज की व्यवस्था करवाएं। आटा के लिए बड़ी फैक्टरी में लेबर की कमी हो तो छोटे छोटे चक्की वालों को गेहूं, मडुआ, ज्वार, बाजरा, जो भी हो उपलब्ध कराकर वापस उनसे आटा कलेक्ट कर लिया जाए।  इन सब कामों में महिला समूह का भी मदद ली जा सकती है। 

पन्द्रह दिन बिल्कुल उस फौजी के जैसा प्रत्येक व्यक्ति को जीना होगा जैसे युद्ध में एक फौजी जीता है।   समझा जाए तो बर्तमान दौर एक शीत युद्ध के रूप में ही है।

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