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रविवार, 17 मई 2020
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गुरुवार, 14 मई 2020
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सेंदरा आदिवासी समाज के अनुसार पुरुषार्थ की है अग्नि परीक्षा
सेंदरा आदिवासी समाज के अनुसार पुरुषार्थ की है अग्नि परीक्षा
पारसनाथ पहाड़ की तराइयों में मनायी गयी सेंदरा पर्व
[अनिलेश गौरव ]
पीरटांड़/ गिरिडीह : कहते हैं कि आदिवासी समाज के परंपरा के अनुसार मरांग बुरु पर्वत यानि पारसनाथ पर्वत का 8 बार सेंदरा किया जाता है । यह सेंदरा आदिवासी परंपरा के अनुसार एक-एक सप्ताह के अंतराल में किया जाता है।
सबसे पहले पारसनाथ मरांग बुरु सेंदरा, दूसरा झरहा बुरु सेंदरा,मटियारो सेंदरा,भोजेदहा सेंदरा, पारसनाथ पर्वत के उस पार गणेशपुर सेंदरा एवं दो सेंदरा टुंडी क्षेत्र में आ जाता है। कुल मिलाकर पीरटांड़ में 6 एवं टुंडी में दो कुल 8 सेंदरा पारसनाथ पर्वत का किया जाता है।
कहते हैं कि सेंदरा पर्व आदिवासियों के लिए पुरुषार्थ की अग्नि परीक्षा होती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार साल भर जो आदिवासी समाज के पुरुष कर्म करते हैं उसका फल सेंधरा में देखा जाता है। कहते हैं कि यदि लोग पाप करेंगे तो सेंदरा के समय जंगली जानवर उन्हें नोच कर काट कर खा जाएंगे। साथ ही साथ यह भी मान्यता है की सेंदरा के क्रम में यदि कोई व्यक्ति मर जाता है तो उन्हें आदिवासी समाज शहीद का दर्जा देता है। प्रत्येक वर्ष सेंदरा के दिन उनकी याद में उनकी पूजा अर्चना की जाएगी। समाज में यह भी प्रथा प्रचलित है कि 3 दिनों के लिए जब पुरुष सेंदरा पर्व मनाने जंगलों में जाते हैं तो उनकी पत्नियां 3 दिनों तक सिंदूर नहीं करती हैं। किसी भी प्रकार का श्रृंगार नहीं करती हैं। चूड़ी उतार के रख देती हैं। यहां तक की लोहे की चूड़ी भी खोल कर रख दिया जाता है।
जब तक पति घर नहीं आ जाएंगे तब तक उसको नहीं पहनेंगे। कहते हैं कि असम आज भी प्रकृति का पूजक है। प्रकृति पर अटूट विश्वास रखता है। इसलिए मान्यता है कि यदि साल भर कुछ पाप कर्म हो गया तो वह व्यक्ति सेंदरा में मर जाता है। मरने के बाद उसे पुनः घर नहीं लाया जाता है सीधे उसे घाट में ले जाकर अंतिम संस्कार कर जला दिया जाता है। घर परिवार के लोगों को गांव के अंतिम छोर में एक बार केवल दर्शन करा दिया जाता है और उन्हें शहीद का दर्जा प्राप्त हो जाता है।
3 दिनों के सेंदरा में संथाल के जज जिसे डिहरी कहा जाता है को सर्वप्रथम पूजा पाठ कर आते हैं अंतिम दिन झगड़ा झंझट का निपटारा करवाया जाता है यह इनका अंतिम जजमेंट होता है। इसको नहीं मानने वाले लोगों को समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता है। इस तरह प्रत्येक वर्ष आदिवासी समाज के लोग पारसनाथ के इर्द-गिर्द जंगलों में सेंदरा पर्व को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं।

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