एक कविता :
"अपना कोई नहीं"
"अपना कोई नहीं"
जो लेख लिखे हमारे कर्मों ने
उस लेख के आगे कोई नहीं।
केवल कर्म ही अपना संगी है
मुसीबत में अपना कोई नहीं।
सीता के रखवाले राम थे
जब हरण हुआ तब कोई नहीं।
द्रौपदी के पाँच पाण्डव थे
जब चीर हरा तब कोई नहीं।
दशरथ के चार दुलारे थे
जब प्राण तजे तब कोई नहीं।
रावण भी शक्तिशाली थे
जब लंका जली तब कोई नहीं।
श्री कृष्ण सुदर्शनधारी थे
जब तीर लगा तब कोई नही।
लक्ष्मण भी भारी योद्धा थे
जब शक्ति लगी तब कोई नहीं।
शरशैय्या पर पड़े पितामह
पीड़ा का सांझी कोई नहीं।
अभिमन्यु राजदुलारे थे
पर चक्रव्यूह में कोई नहीं।
सच यही है दुनिया वालो
सँसार में अपना कोई नहीं।
"अपना कोई नहीं"
"अपना कोई नहीं"
जो लेख लिखे हमारे कर्मों ने
उस लेख के आगे कोई नहीं।
केवल कर्म ही अपना संगी है
मुसीबत में अपना कोई नहीं।
सीता के रखवाले राम थे
जब हरण हुआ तब कोई नहीं।
द्रौपदी के पाँच पाण्डव थे
जब चीर हरा तब कोई नहीं।
दशरथ के चार दुलारे थे
जब प्राण तजे तब कोई नहीं।
रावण भी शक्तिशाली थे
जब लंका जली तब कोई नहीं।
श्री कृष्ण सुदर्शनधारी थे
जब तीर लगा तब कोई नही।
लक्ष्मण भी भारी योद्धा थे
जब शक्ति लगी तब कोई नहीं।
शरशैय्या पर पड़े पितामह
पीड़ा का सांझी कोई नहीं।
अभिमन्यु राजदुलारे थे
पर चक्रव्यूह में कोई नहीं।
सच यही है दुनिया वालो
सँसार में अपना कोई नहीं।
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