[राजेश कुमार]
News update News desk : 1 मई को पूरी दुनिया "मई दिवस", "मजदूर दिवस" अथवा “अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस” के रूप में मनाती है। क्या आप जानते हैं, मजदूरों और श्रमिकों के समर्पण, अधिकारों और संघर्षों को समर्पित है यह दिन। इस दिन मजदूरों के अधिकारों के लिए लोगों को और मजदूरों को भी जागरूक करने की कोशिश की जाती है। अब सवाल यह उठता है कि हक और अधिकारों की आवाज बुलंद करने के लिये आखिर इस एक मई के दिन को मनाने की जरूरत क्यों पड़ी और इसके लिए एक मई का दिन ही क्यों चुना गया....? दरअसल इस दिन को मनाने के पीछे एक ऐतिहासिक और बेहद अहम घटना छिपी है, जिसने दुनिया भर के मजदूरों के जीवन को बदल दिया। आइए, जानते है मजदूर दिवस मनाने की कहानी।
क्यों मनाया जाता है मजदूर दिवस?
एक मई को मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 19वीं शताब्दी में हुई थी। उससे पहले अमेरिका और यूरोप के कारखानों में मजदूरों से 15-16 घंटे की कड़ी मेहनत करवाई जाती थी, लेकिन उस काम के बदले, उन्हें बहुत कम मजदूरी दी जाती थी। मजदूरों के पास न तो कोई अधिकार नहीं थे और न ही उन्हें छुट्टी मिलती थी। ऐसा समझ लीजिए कि उनकी स्थिति बेहद दयनीय थी।
8 घण्टे काम के लिये मजदूरों ने किया था प्रदर्शन
इसी से परेशान होकर, एक मई 1886 को अमेरिका के शिकागो शहर में हजारों मजदूरों ने 8 घंटे के वर्किंग आवर्स की मांग को लेकर एक बड़ा प्रदर्शन किया। यह आंदोलन शांतिपूर्ण था, लेकिन अपने अधिकारों की मांग के लिए मजदूर कारखाने छोड़कर सड़कों पर उतर आए थे। मजदूरों के इस आंदोलन को कुचलने के लिए पुलिस ने गोलियां भी चलाई, जिसमें कई मजदूरों की मौत हो गई थी और कई घायल हो गए थे।
समाजवादी सम्मेलन में लिया गया फैसला
इस घटना ने पूरी दुनिया के मजदूरों को झकझोर दिया। इसके बाद 1889 में पेरिस में हुए अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में यह फैसला लिया गया कि 1 मई को “अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस” के रूप में मनाया जाएगा, ताकि मजदूरों के संघर्ष और बलिदान को याद किया जा सके।
भारत में 1923 से शुरू हुई मजदूर दिवस
भारत में मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत 1 मई 1923 में चेन्नई में हुई थी। इस दिन मद्रास हाई कोर्ट के सामने मजदूरों की सभा आयोजित की गई और श्रमिकों के अधिकारों को लेकर आवाज उठाई गई।
मजदूर दिवस सिर्फ एक छुट्टी का दिन नहीं है, बल्कि यह मजदूरों के योगदान को सम्मान देने का दिन है। आज भी दुनिया भर में मजदूरों को उनके हक की मजदूरी, सेफ वर्क एनवायरनमेंट और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इस दिन को मनाकर हम उनके संघर्ष को याद करते हैं और उनके अधिकारों के लिए आम जनता और मजदूरों में जागरूकता फैलाते हैं।
बातें बड़ी बड़ी, लेकिन स्थिति शिफर
हम हर वर्ष मजदूर दिवस तो अवश्य मनाते हैं। यह संकल्प भी लेते हैं कि मजदूरों को उनके हक और अधिकार को दिलाएंगे। इसे लेकर बड़ी बड़ी बातें होती हैं, लेकिन धरातल पर गौर करें तो इस दिन के सारे संकल्प और वादे महज सब्जबाग बनकर ही धरे रह जाते हैं। धरातल पर स्थिति शिफर ही दिखती है।
आज जितने भी कल कारखाने हैं वहां मजदूरों का जमकर शोषण होता है। उनसे 08 घण्टे के बाजय 12 घण्टे काम लिया जाता है। लेकिन कोई भी इन मजदूरों के पक्ष में खड़ा होना तो दूर इनके लिये आवाज तक नहीं उठाता। सभी इनके कांधे पर बंदूक रख अपनी रोटी सेंकने और अपना उल्लू सीधा करने में जुटे हैं।
बेचारा मजदूर कल भी मजबूर था .... आज भी अकेला, कमजोर और मजबूर है।
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