सोमवार, 13 जनवरी 2025

लंगटा बाबा के समाधि पर्व पर उमड़ा आस्था का जन सैलाब



हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है समाधि पर्व


गिरिडीह (Giridih)। लंगटा बाबा के समाधि पर्व पर जमुआ के खरग़डीहा स्थित लंग़टा बाबा के समाधि स्थल पर आस्था का जनसैलाब उमड़ा रहा। अहले सुबह तीन बजे जमुआ थाना के थाना प्रभारी मणिकांत कुमार द्वारा बाबा की समाधि पर पूरी शिद्दत और आस्था के साथ पहली चादर पोशी की गई। इसके बाद बाबा के समाधि पर आम श्रद्धालुओं द्वारा चादरपोशी शुरू हुई, जो जारी है। 

पौष पूर्णिमा के मौके पर हर वर्ष बाबा की समाधि पर समाधि पर्व मनाया जाता है। जिसमे आस्था का जन सैलाब उमड़ता है। यहां सभी जाति धर्म के लोग चादरपोशी करने पहुँचते हैं। न केवल गिरिडीह जिले के विभिन्न प्रखंडों के लोग बल्कि पूरे झारखण्ड प्रदेश के अलावे विभिन्न प्रदेशों के श्रद्धालु यहां पहुंच चादर पोशी करते हैं। 


कौन हैं लंगटा बाबा

1870 में देवघर जाने के क्रम में नागा साधुओं का एक दल विश्राम के लिए खरगडीहा थाना परिसर में रुक था। शेष साधु दुसरे दिन अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गए पर एक साधु नग्न धड़ंग अवस्था में थाना परिसर में ही धुनी रमाये बैठे रहे। कालांतर में यही साधु लंगटा बाबा के रूप में विख्यात हुए।


उस जमाने में खरगडीहा में अंग्रेज पुलिस का थाना था और परगना कार्यालय था। यहां अंग्रेज अधिकारियों का आना जाना लगा रहता था। एक बार एक अंग्रेज अधिकारी ने बाबा को थाना से अन्यत्र जाने का फरमान सुना दिया। तब बाबा ने उस अंग्रेज अधिकारी से कहा कि जा महाराज आकाश निर्मल है। जब वह अंग्रेज अधिकारी वापस लौट रहा था तो उसे रास्ते मे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अंग्रेज अधिकारी लौट कर खरगडीहा आया और बाबा से माफी मांगी। जानकारों की माने तो खरगडीहा प्रवास के दौरान बाबा ने अनेक लीलाएं की और पीड़ितों के कष्टों का निवारण भी किया। बाबा वर्ष 1910 के पुष पूर्णिमा को देह त्याग कर महासमाधि में प्रवेश कर गये। तब से प्रत्येक वर्ष पुष पूर्णिमा के मौके पर बाबा के समाधि पर चादरपोशी के लिए न केवल झरखण्ड और बिहार के अपितु अन्य प्रान्तों के भक्तों का खरगडीहा में सैलाब उमड़ता है। बाबा के समाधि पर पहला चादरपोशी जमुआ के थानेदार द्वारा किया जाता है। वंही पहले पहर हिन्दू और दूसरे पहर मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा चादर पोशी की जाती है। 


मानवता के उद्धारक संत थे लंगटा बाबा

कहते हैं कि पीड़ित मानवता के उद्धारक संत थे जगतगुरु वामदेव, लंगेश्वरी बाबा उर्फ लंगटा बाबा। बाबा के भक्तों में अमीर, गरीब, ऊंच नीच, हिन्दु मुसलमान, सिख सभी शामिल थे। बाबा अपने सभी भक्तों एक समान मानते थे। जहां अमीर की खीर पुड़ी सामने के कुएं में यह कहकर डलवा देते थे कि ठंबी करो महाराज, वहीं गरीब की सत्तु को भी बड़े चाव से ग्रहण कर लेते थे। यही वजह है कि बाबा के समाधि पर सभी धर्म और वर्ग के भक्त मत्था टेकते हैं, चादरपोशी करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। कहते हैं कि पीड़ितों और फरियादियों के लिए बाबा हमेशा एक उच्च कोटि के संत और साधक की भूमिका अदा करते थे। बाबा के सानिध्य में जाते ही भक्तों की सभी समस्याएं दूर हो जाती थी।


हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है समाधि पर्व

लंगटा बाबा का समाधि पर्व हिंदू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक है। परंपरानुसार यहां पहले पहर हिंदू समुदाय के भक्तों ने चादरपोशी की, जबकि दोपहर बाद मुस्लिम समुदाय ने अपनी श्रद्धा अर्पित की। मेले में भक्तों की सुविधा के लिए प्रबंधन समिति द्वारा विशेष व्यवस्था की गई थी, लेकिन विशाल भीड़ के कारण व्यवस्थाएं नाकाफी रहीं, जिससे समाधिस्थल तक पहुंचने के लिए लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ा। सुरक्षा के लिए पुलिस बल तैनात किया गया था, और जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी समाधिस्थल पर चादरपोशी की। उनकी समाधि पर अटूट आस्था और भाईचारे की मिसाल हर वर्ष इस मेले में देखने को मिलती है।


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