शुक्रवार, 12 जून 2020

महानगरों से लौट गांव में चला रहा कुदाल, आखिर गांव की मिट्टी ही काम आयी

महानगरों से लौट गांव में चला रहा कुदाल, आखिर गांव की मिट्टी ही काम आयी
गिरिडीह : गांव की मिट्टी में खेलकूद कर बड़े हुए युवाओं ने रोटी की तलाश में महानगरों और बड़े शहरों की राह पकड़ ली थी। वे बाहर में नौकरी कर परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। गृहस्थी की गाड़ी आराम से चल रही थी। 

गांववालों के लिए वे मोहन, श्याम, रामू, दीपू ..से परदेसी बाबू बन गए थे। महानगरों और बड़े शहरों में रहकर दो वक्त की रोटी के लिए इस कदर पसीना बहाने में मशगूल हुए कि गांव की मिट्टी और अपनों से दूर होते चले गए थे, लेकिन एक झटके में वे फिर गांव की मिट्टी से जुड़ गए हैं। अपनों के करीब भी आ गए हैं। हम बात कर रहे हैं उन प्रवासी मजदूरों की जो लॉकडाउन और कोरोना संक्रमण को लेकर वापस अपने-अपने गांव लौट आए हैं। कोरोना के खौफ के बीच अब वे गांव में ही रोजी-रोजगार में जुट गए हैं। 

इनमें वैसे लोग भी हैं जो महानगरों में बड़ी-बड़ी कंपनियों में एसी रूम में बैठक कर काम करते थे, लेकिन गांव में वे भीषण गर्मी और तेज धूप के बीच मिट्टी काटने में भी कोई गुरेज नहीं कर रहे हैं। सदर प्रखंड के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र बजटो पंचायत में वापस लौटे प्रवासी मजदूर भी अब गांव में ही मजदूरी करने लगे हैं। मनरेगा की योजनाओं में वे काम कर परिवार के लिए अर्थोपार्जन करने में जुटे हैं।

मनरेगा ने दिया सहारा : बजटो में मनरेगा के तहत हो रहे कूप निर्माण कार्य में कई मजदूर काम कर रहे थे, जिनमें दूसरे प्रदेशों से वापस लौटे युवक भी शामिल थे। कोरोना संकट के कारण बाहर से काम धंधा छोड़कर बाहर आने के बाद हताश और निराश होकर घर में बैठ गए थे। उन्हें परिवार के भरण-पोषण की चिता सताने लगी थी, लेकिन इन परदेसी बाबुओं की चिता और परेशानी को दूर करने में मनरेगा ने अहम भूमिका निभाई है। परदेसी बाबू जॉब कार्ड बनवाकर मनरेगा की योजनाओं में काम करने लगे हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें