गुरुवार, 15 नवंबर 2018

अपना कोई नहीं

एक कविता :
              "अपना कोई नहीं"


"अपना कोई नहीं"

जो लेख लिखे हमारे कर्मों ने
उस लेख के आगे कोई नहीं।

केवल कर्म ही अपना संगी है
मुसीबत में अपना कोई नहीं।

सीता के रखवाले राम थे
जब हरण हुआ तब कोई नहीं।

द्रौपदी के पाँच पाण्डव थे
जब चीर हरा तब कोई नहीं।

दशरथ के चार दुलारे थे
जब प्राण तजे तब कोई नहीं।

रावण भी शक्तिशाली थे
जब लंका जली तब कोई नहीं।

श्री कृष्ण सुदर्शनधारी थे
जब तीर लगा तब कोई नही।

लक्ष्मण भी भारी योद्धा थे
जब शक्ति लगी तब कोई नहीं।

शरशैय्या पर पड़े पितामह
पीड़ा का सांझी कोई नहीं।

अभिमन्यु राजदुलारे थे
पर चक्रव्यूह में कोई नहीं।

सच यही है दुनिया वालो
सँसार में अपना कोई नहीं।

कुलदेवता और कुलदेवी की पुजा जरूरी क्यों ? जानिये।

कुलदेवता, कुलदेवी की पुजा करना क्यों जरूरी है ?


भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता / कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया। 

विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं। जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है।

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों - ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें।

कुलदेवी - देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है।

 इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी - माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है। खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।

ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी - देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे।

यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता - देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला - मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां) कहा होता है। हर गोत्र - धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी / कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है।

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता / देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता / देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।

कुल देवता / देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक - टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं, ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।


 ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।

कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी - विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा - उन्नति होती रहे।

अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है। जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है।

किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुलदेवी - देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है।

ऐसे अनेक परिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम। एक और बात ध्यान देने योग्य है - किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।

कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की सरल विधि :-

1. जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री। पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये - ४ पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, 10 सुपारिया, 8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये, पान के 10 पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार की मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा।

2. ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं। जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं।

3. बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी - रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए।

4. पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें। साथ ही घर में बनी पूरी - हलवा - खीर इन्हें अर्पित करें।

5. ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें।

6. इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें।

7, सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता / कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता। इसलिए उन्हें इससे अलग ही रखना चाहिये।

विशेष दिन और त्यौहार पर शुद्ध लाल कपड़े के आसान पर कुलदेवी / कुलदेवता का चित्र स्थापित करके घी या तेल का दीपक लगाकर गूगल की धुप देकर घी या तेल से हवन करकर चूरमा बाटी का भोग लगाना चाहिए, अगरबत्ती, नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर-फूल आदि श्रद्धानुसार।

नवरात्री में पूजा अठवाई के साथ परम्परानुसार करनी चाहिए।

पितृ देवता के पूजन की सरल विधि :-

शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके, घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, घी से हवन करकर चावल की सेनक या चावल की खीर - पूड़ी का भोग लगाना चाहिए। अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर - फूल आदि श्रद्धानुसार।

* चावल की सेनक : चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले।

* अठवाई : दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा, इस प्रकार दो जोड़े कुल मिलाकर ४ पूड़ी ; २ मीठा पुआ और थोड़ा सूजी का हलवा ।

कुलदेवी / कुलदेवता को नहीं पूजने, नही मानने के दुष्प्रभाव, परिणाम :- कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है, इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। यही वो देव या देवी है जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है।

आपकी पूजा पाठ, व्रत कथा जो भी आप धार्मिक कार्य करते है उनको वो आपके इष्ट तक पहुँचाते है। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है। लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को ये ही नहीं पता की हमारे कुलदेव या देवी कौन है। जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।

आज हमें यह पता ही नहीं चल रहा की हम सब पर इतनी मुसीबते आ क्यों रहे है ? बहुत से ऐसे लोग भी है जो बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नहीं है।

बेटा बेरोजगार होता है बहुत पढने - लिखने के बाद भी पिता पुत्र में लड़ाई होती रहती है, जो धन आता है घर मे पता ही नहीं चलता कौन से रास्ते निकल जाता है। पहले बेटे - बेटी की शादी नहीं होती, शादी किसी तरह हो भी गई तो संतान नहीं होती। ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है।

आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है, जिसके कारण नकारात्मक शक्तियां आप पर हावी हो जाती है। फिर चाहे आप कितना पूजा - पाठ करवा लो कोइ लाभ नहीं होगा।

लेकिन आधुनिक लोग इन बातो को नहीं मानते। आँखे बन्द कर लेने से रात नहीं हो जाती। सत्य तो सत्य ही रहेगा। जो हमारे बुजुर्ग लोग कह गए वो सत्य है, भले ही वो आप सबकी तरह अंग्रेजी स्कूल में ना पढ़े हो लेकिन समझ उनमे आपसे ज्यादा थी। उनके जैसे संस्कार आज के बच्चों में नहीं मिलेंगे।

आपसे निवेदन है की अपने कुलदेव या कुलदेवी का पता लगाऐ और उनकी शरण में जाये। अपनी भूल की क्षमा माँगे और नित्य कुलदेवता / कुलदेवी की भी पूजा करे।


बुधवार, 14 नवंबर 2018

झारखण्ड स्थापना के पूर्ण हुए 19 साल

एक कविता :  "जय झारखण्ड बोलो"



स्थापना के हो गये 19 साल
फैला चहुंओर है भव्य जंजाल
मिटाओ माया, मोह जाल ।
दुर करो हर जंजाल -
सबको खुशहाल बनाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

यहाँ सुख के हैं सभी साधन 
फिर भी क्यों है क्रन्दन ।
क्यों भ्रष्टाचार और शोषण है, 
इन्हे अब मिटाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

बन गया है झारखंड राज्य, 
करना है विकास आज ।
मिले हर हाथ को कार्य ।।
यह संकल्प लेकर चलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

बन जाए यह स्वर्ग जैसे, 
लाभ मिले हर वर्ग को कैसे? 
हर चीज है मिले सुलभ वैसे, 
हर प्रयास लेकर चलो ।
जय झारखंड बोलो ।।

झारखण्डीयों को जगी थी आश 
अब भागेंगे दुख, था विश्वास 
दुखी वर्ग हो रहे है निराश 
अब तो आश जगाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो ।

आपस में न कोई दंगा हो, 
ऐसा कोई न फण्दा हो ।
धन्धा किसी का न मन्दा हो, 
सबको साथ मिलाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो ।

सोमवार, 12 नवंबर 2018

लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू, खरना आज

लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू ,खरना आज

दीपोत्सव के बाद घर से घाट तक छठ महापर्व का माहौल बन रहा है। “पहिले-पहिल हम कइली छठ मइया बरत तोहार, करिह क्षमा छठी मइया भूल-चूक गलती हमार..” जैसे पारंपरिक गीत गुनगुनाते हुए घर की महिलाएं छठ मइया का प्रसाद तैयार करने में जुट गई हैं। प्रसाद की सामग्री को धुलकर सुखाने और साफ-सुथरा करने का कार्य शुरू हो गया है। रविवार से यह पर्व शुरू हो गया।

नहाय-खाय से हुई शुरुआत

महापर्व की शुरूआत 11 नंवबर (रविवार) को नहाय-खाय से हो गयी। इसे ‘कद्दू भात’ भी कहते हैं। इस दिन बिना मसाले के कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाएगा। माना जाता है कि कद्दू में 96 प्रतिशत पानी होता है। इसलिए तन-मन निर्मल रहता है। पहले दिन महिलाएं सिर धोकर स्नान करती है। इससे पूर्व नाखून काटकर शरीर को पूरी तरह से स्वच्छ बनाएंगी। भोजन भी इतना हल्का रहेगा कि शरीर पूरी तरह से शुद्ध रहे।

दूसरे दिन 12 नवंबर (सोमवार) को खरना होगा। इस दिन व्रती निर्जला व्रत उपवास रहेंगी। इसे ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। शाम को सूखी रोटी और गुड़ की खीर व केला अर्पित कर छठ मइया की पूजा प्रारंभ होगी। तीन दिन तक व्रती कठिन साधना करेंगे। बिस्तर के बजाय चटाई पर सोएंगे। व्रती महिलाएं उसी कमरे में सोएंगी जहां अर्घ्य के पकवान बनाए जाते हैं। खास कर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

13 नवंबर को तीसरे दिन सायं कालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। व्रत करने वाले सूर्य डूबने से पहले घाट पर पहुंच जाएंगे। शुभ मुहूर्त में जल में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। माना जाता है कि डूबते सूर्य की लाल किरणें अर्घ्य के जल से छनकर तन-मन और बुद्धि को तेज कर देती हैं।

14 नवंबर को व्रती महिलाएं व पुरुष उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भोर में उसी जगह एकत्र होंगे जहां डूबते सूर्य के लिए पूजन किया था। महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देने से पूर्व गंगा जल का आचमन करेंगी। पुरे विधि विधान से अर्घ्य देकर सूर्यदेव से सुख-समृद्धि का आशीष मांगेगी। पूजन के बाद घाट पर प्रसाद बांटकर पारण किया जाएगा।


पूजन मुहूर्त

जानकारों के अनुसार 11 नवंबर को नहाय खाय के दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। 13 नवंबर को सांयकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन त्रय पुष्कर योग रहेगा। इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी।

पूजा विधि

यह पर्व चार दिनों तक चलता है

1. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है।

2. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को “नहाये-खाए” के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन से स्वच्छता का खासा ध्यान रखा जाता है। इस दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है।

3. दूसरे दिन को “लोहंडा/खरना” कहा जाता है। इस दिन उपवास रखकर शाम को मीठे खीर का सेवन किया जाता है। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता।

4. तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल आदि अस्त होते सूर्य देव को को चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है।

5. चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।

6. इस बार पहला अर्घ्य 13 नवंबर को संध्या काल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 14 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा।


छठ महापर्व की तिथि

नहाय खाय – रविवार 11 नवंबर

खरना – दिन सोमवार 12 नवंबर

सायं कालीन अर्घ्य – दिन मंगलवार 13 नवंबर (सूर्यास्त : 5:26 बजे)

प्रात:कालीन अर्घ्य – बुधवार 14 नवंबर (सूर्योदय : 6:32 बजे)

यह है मान्यता

छठ पूजा के बारे में कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के कहने पर इस दंपत्ती ने यज्ञ किया। जिससे पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से नवजात मरा हुआ पैदा हुआ। राजा-रानी प्राण ज्याग्ने के लिए आतुर हुए तो ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं। इसलिए षष्ठी कहलाती हूं। उनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होगी। राजा-रानी ने षष्ठी व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।


द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा

मान्यता है कि पांडव जुए में जब राजपाठ हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था, जिससे राजपाठ वापस मिला था। माना जाता है कि महाभारत काल में छठ पूजा की शुरूआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। सूर्य की कृपा से वह महान योद्धा बने।

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

पांच पर्वों का पर्व है दीपावली

"पाँच पर्वों का पर्व है दीपावली"



दीप और अवली से मिलकर बना है शब्द दीपावली, जिसका अर्थ है दीपकों की पंक्ति । संपूर्ण भारतवर्ष में कार्तिक मास में कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को दीपावली का त्‍यौहार मनाया जाता है ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सनातन धर्म को मानने वालों द्वारा दीपावली मनाने के कारण-

पहला तो यह कि देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थी। दूसरा यह कि चौदह वर्षो के वनवास के दौरान भगवान श्री राम, लंका के अत्‍याचारी राजा रावण का वध करके इसी दिन पुन: अयोध्‍या को लौटे और उनके आने की खुशी में पूरे अयोध्‍या में घी के दीए जलाये गए | सम्‍पूर्ण अयोध्‍या को जगमगा दिया गया । उसी दिन से कार्तिक मास की अमावस्‍या को दीवाली के रूप में मनाया जाने लगा।

तीसरी कथा भक्त प्रहलाद से सम्बंधित है | मान्यता है कि दीपावली के ही दिन नृसिंह रूप में विष्‍णु भगवान ने प्रकट होकर हिरणकशिपु को महल के प्रवेश द्वार पर जो न तो घर के भीतर था और न हीं घर के बाहर, गोधूलि बेला में जो न तो दिन था और ना ही रात, नरसिंह रूप में जो आधा मनुष्‍य था और आधा पशु, अर्थात जो न तो पूरी तरह से मनुष्‍य था और न ही पशु हिरणककिशपु को अपनी जंघा पर लिटाकर, जो न तो धरती में था और न ही आसमान में, अपने तीखे लंबे तेज नाखूनों से मारा था जो न तो अस्‍त्र था, न ही कोई शस्‍त्र ।

जिस दिन भगवान विष्‍णु ने हिरणकशिपु का वध किया था, उस दिन को दीवाली के त्‍यौहार के रूप में मनाया जाता है।

इसी प्रकार सिक्ख धर्म के अनुयाई दीपावली इस कारण मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन उनके छठवें गुरू हरगोबिन्‍द सिंह जी जेल से रिहा हुए थे। इसी तरह से जैन धर्म के लोग इस त्‍यौहार को इसलिए मनाते हैं क्‍योंकि इसी दिन जैन संप्रदाय के चौबीसवें तीर्थकार महावीर स्‍वामी का निर्वाण हुआ था। इस दिन मंदिरों में निर्वाण लाडू चढाया जाता है | स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस होने से आर्यसमाजियों के लिए भी दीपावली महत्व पूर्ण है |

हिन्‍दु धर्म में दीपावली को पंच पर्वो का त्‍योहार कहा जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्‍त होते हैं। यानी पंच पर्वों के अन्‍तर्गत धनतेरस, नरक चतुर्थी, दिपावली, राम-श्‍याम अथवा गोवर्धन पूजन और भैया दूज सम्मिलित हैं। पूरे भारत सहित सम्‍पूर्ण दुनियां में जहां कहीं भी हिन्‍दू, जैन, सिख, आर्य समाज और प्रवासी भारतीय हैं, वे सभी इस दिपावली के त्‍यौहार को पूर्ण उत्‍साह के साथ मनाते हैं क्‍योकि इस त्‍यौहार का न केवल धार्मि‍क महत्‍व है बल्कि व्‍यापारिक महत्‍व भी है।

वस्तुतः दीपावली एक दिन का नहीं बल्कि पांच दिन का पर्व है |

पंच पर्व -
धनतेरस~
इस पर्व पर लोग अपने घरों में यथासम्‍भव सोने का सामान खरीदकर लाते हैं और मान्‍यता ये होती है कि इस दिन सोना खरीदने से उसमें काफी वृद्धि होती है। लेकिन आज के दिन का अपना अलग ही महत्‍व है क्‍योंकि आज के दिन ही भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है।

इस दिन तुलसी के पौधों के पास व घर के द्वार पर दीपक जलाया जाना शुरू करते हैं, और ये दिया अगले 5 दिनों तक हर रोज जलाया जाता है।

नरक चतुर्दशी~
नरक चतुर्दशी को कहीं-कहीं छोटी दिपावली भी कहा जाता है क्‍योंकि ये दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन मूल रूप से यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं, जिसे दीप दान कहा जाता है।

मान्‍यता ये है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। इस दिन को यम पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जो कि घर से अकाल मृत्‍यु की सम्‍भावना को समाप्‍त करता है। यम पूजा के रूप में अपने घर कि चौखट पर चावल के ढेरी बना कर उस पर सरसो के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से अकाल मृत्‍यु नही होती है। साथ ही इस दिन गायों के सींग को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।

दीपावली~
भारतीय नव वर्ष की शुरूआत इसी दिन से मानी जाती है इसलिए व्यापारी बन्‍धु अपने नए लेखाशास्‍त्र यानी नये बही-खाते इसी दिन से प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री, दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं

साथ ही इसी नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही गलियों में नमक बिकने आता है, जिसे “बरकत” के नाम से पुकारते हैं और वह नमक सभी लोग खरीदा करते हैं क्‍योंकि मान्‍यता ये है कि ये नमक खरीदने से सम्‍पूर्ण वर्ष पर्यन्‍त धन-समृद्धि की वृद्धि होती रहती है।

दीपावली के दिन सभी घरों में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है और हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की इस रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं तथा लोगों को वैभव की आशीष देती है।

भगवान गणपति प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए सर्वप्रथम पंच विधि से उनकी पूजा-आराधना करने के बाद माता लक्ष्‍मी जी की षोड़श विधि से पूजा-अर्चना करने से घर में कभी धन-धान्‍य की कमी नहीं होती।

वृषभ लग्‍न व सिंह लग्‍न के मुहूर्त में ही लक्ष्‍मी पूजन किया जाना चाहिए क्‍योंकि ये दोनों लग्‍न, भारतीय ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार स्थिर लग्‍न माने जाते हैं इसलिए स्थिर लग्‍न में लक्ष्‍मी पूजन करने से घर में स्थिर लक्ष्‍मी का वास होता है।

दीपावली हमेंशा अमावश्‍या की रात्रि को ही मनाई जाती है, अतः यह दिन तंत्र-मंत्र सिद्धि की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है । नवरात्रि के ही समान दीपावली की रात्रि को भी लोग सिद्धि प्राप्त करने हेतु पूजापाठ करते हैं ।

ये भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दिपावली मनाई थी।

गोवर्धन पूजा~
दीपावली के अगले दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर भगवान इन्द्र को पराजित कर उनके गर्व का नाश किया था तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना कर गायों का पूजन किया था। इसलिए दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा-अर्चना करते हुए भगवान कृष्‍ण को याद किया जाता है।

इसी दिन भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद उनके दर्शन के लिए अयोध्‍यावासी उनसे मिलने आये थे और अपने प्रभु को पुन: अयोध्‍या आने के संदर्भ में एक-दुसरे को बधाई दी थी, इस कारण से इस दिन को रामा-श्‍यामा का दिन भी कहा जाता है और इस दिन सभी लोग अपने परिचित लोगों से मिलने उनके घर जाते हैं व पुराने पड़ चुके रिश्‍तों में फिर से जान डालते हैं।

भाईदूज/ चित्रगुप्त पूजा-

दिपावली के तीसरे दिन “भाईदूज”/"चित्रगुप्त पूजा "  का त्यौहार मनाया जाता है और इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उसकी सलामती की प्रार्थना करती हैं। यह त्यौहार उत्तर भारत में भी बड़ी आस्था से मनाया जाता है तथा इस त्यौहार को “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है।

कहा जाता है कि यम की बहन यमुना देवी ने इसी दिन यम को तिलक लगा कर यम का पूजन किया था। इसीलिए इस दिन को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है।

इसी दिन सम्पूर्ण जगत के कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त ब्रम्हा जी के हज़ारों वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उनकी ही काया से हाथों में कलम,दवात,कागज और कृपाण लेकर एक दिव्य पुरुष के रूप में अवतरित हुये थे। जिन्होंने यमपुरी में अपना धाम बनाया और सभी मानवों के कर्मो का आंकलन शुरू किया। उन्हीं के द्वारा की गयी गणना के आलोक में मरणोंपरान्त मानवों को स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है।इसलिये इस दिन भगवान "श्री चित्रगुप्त की "पुजा अर्चना की जाती है। ताकि मानव के पापों का प्रायश्चित हो और उनके सतकर्मों की ही गणना हो सके।

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

कविता : "मिट्टी के दीये"

"मिट्टी के दीये"




कुम्हारन बैठी रोड किनारे,लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी,करती मन में विचार।।

याद करके आँख भर आई,पिछली दीवाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान,चढ गया सर पर उधार।।

सोंच रही है अबकी बार,दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।

पास से गुजरते लोगों को देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीवाली जैसा पिछली बार।।

नम्र निवेदन मित्र जनों से,करता "राजेश" बारम्बार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ,दीवाली पर अबकी बार।

सोमवार, 29 अक्टूबर 2018

बालमुकुंद स्पंज में मजदूर की मौत, फैक्ट्री प्रबन्धन की लापरवाही उजागर

लौह फैक्टरी बालमुकुंद स्पंज में एक मजदूर की मौत, मृतक की पत्नी ने लगाया लापरवाही का आरोप


गिरिडीह| रविवार की रात मुफ्फसिल थाना क्षेत्र के चतरो स्थित बालमुकुंद फैक्टरी में जयप्रकाश सिंह नामक एक मजदूर की मौत हो गई। मृतक मजदूर जयप्रकाश सिंह देवघर जिला के मरगोमुंडा के अंबाटाड़ गांव का रहने वाले था। वह पिछले 10 वर्षों से बालमुकुंद फैक्ट्री में मजदूर के रूप में काम कर रहा था। बीती रात फैक्टरी के अंदर हुई एक दुर्घटना में उसकी मौत हो गई।


मृतक की पत्नी नीलम देवी ने बताया कि कंपनी के द्वारा उसे फोन कर यह सूचना दी गई कि उसका पति अस्पताल में भर्ती है। लेकिन देवघर से गिरिडीह पहुंचने पर उसने सदर अस्पताल में अपने पति की लाश देखी। पत्नी ने आरोप लगाया कि उसके पति की मौत पहले ही फैक्ट्री के अंदर हुई दुर्घटना में हो चुकी थी। लेकिन मामले को छुपाने के लिए फैक्ट्री प्रबन्धक की ओर से उससे झूठ बोला गया।

घटना की जानकारी मिलते ही भाकपा माले की टीम सदर अस्पताल पहुंच वस्तु स्थिति से अवगत हुई और मृतक के परिजनों को ढाढ़स बंधाया। बाद में माले नेता राजेश यादव की अगुवाई में मृतक के परिजनों और फैक्ट्री संचालक के साथ मुआवजा को लेकर वार्ता हुई। जिसमे मृतक के परिजन को 6लाख 50 हज़ार बतौर मुआवजा देने पर फैक्ट्री संचालक ने सहमति जतायी। जिसके आलोक में तत्काल 50 हज़ार रूपये मृतक की पत्नी नीलम देवी को फैक्ट्री प्रबन्धन की ओर से दी गयी। शेष राशि आगामी 16 नवम्बर को भुगतान करने का लिखित समझौता हुआ। ततपश्चात परिजन मृतक की लाश लेकर अपने घर लौट गए।


गौरतलब है कि गिरिडीह में संचालित लौह फैक्ट्रियों में दुर्घटनाएं आम बात है। क्योंकि यँहा संचालित लौह फैक्ट्रियों के संचालक अपनी मनमानी पर आमादा हैं।
 दो माह पूर्व गिरिडीह की पूर्व एसडीएम विजया जाधव ने बालमुकुंद फैक्ट्री में ही छापा मारकर प्रदूषण और सुरक्षा मानकों पर हो रही लापरवाही पर फैक्ट्री प्रबंधन को कड़ी फटकार लगायी थी और सभी जरूरी उपाय करने का निर्देश दिया था। लेकिन इस घटना ने फैक्ट्री संचालकों की कलई खोल कर रख दी। फैक्ट्री में मजदूर जयप्रकाश की मौत की घटना से फैक्ट्री प्रबंधन की लापरवाही फिर से उजागर हो गई। हालांकि फैक्ट्री प्रबंधन ने इस पूरे मामले को सामान्य हादसा बताकर अपना पल्लू झाड़ने को तैयार दिखे। 

शनिवार, 27 अक्टूबर 2018

सगा भाई ही निकला हत्यारा, बिजय वर्मा हत्याकाण्ड की पुलिस ने सुलझायी गुत्थी




पुलिस ने सुलझायी विजय वर्मा हत्याकांड की गुत्थी, सगा भाई ही निकला हत्यारा


 हत्याकांड में शामिल तीन अभियुक्त गिरफ्तार 


गिरिडीह: विजय वर्मा हत्याकांड की गुत्थी बेंगाबाद पुलिस ने उद्भेदन कर लिया है। पुलिस नें उस निर्मम हत्याकांड में शामिल तीन अभियुक्तों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।  सदर एसडीपीओ जीतवाहन उरांव ने प्रेसवार्ता कर इस हत्याकांड से पर्दा उठाते हुए बताया विजय वर्मा की हत्या उसके अपने ही भाइयों ने अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर की थी।
 आपसी रंजिश के कारण विजय की हुईं हत्या 
 एसडीपीओ ने बताया  कि आरोपियों द्वारा विजय वर्मा के परिवार पर डायन भूत का आरोप लगाकर मारपीट की घटना को अंजाम दिया गया था। जिसके बाद विजय वर्मा ने आरोपियों के विरुद्ध बेंगाबाद थाने में मुकदमा दर्ज कराया था।
आरोपियों द्वारा बार- बार विजय वर्मा से केस उठा लेने की धमकी दी जा रही थी। साथ ही भाइयों के बीच संपति बंटवारे को लेकर भी विवाद चल रहा था। इन्ही सब कारणों से आरोपियों ने षड्यंत्र रचा और विजय वर्मा की हत्या कर दी।
बताया कि इस हत्याकांड में शामिल तीन आरोपी मंगर महतो, रामबिलास वर्मा, और प्रयाग महतो सभी मोतीलेदा निवासी को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा रहा है। एसडीपीओ ने बताया की मृतक के आंखों में लाल मिर्च का पाउडर डालकर हथौड़ा और सब्बल से वार कर घटना को अंजाम दिया गया था। हत्याकांड में शामिल शेष बचे अभियुक्तों को भी जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
उन्होंने बताया कि बेंगाबाद थाना प्रभारी फ़ैज़ रब्बानी के नेतृत्व में पुलिस टीम ने इस हत्या कांड मे शामिल सभी हत्यारों को दबोचने में कामयाबी पायी।

नक्सली एजेन्ट मनोज चौधरी की रेस्टोरेंट समेत 11 सम्पत्ति सील

सावन बहार रेस्टोरेन्ट को पुलिस ने किया सील




गिरिडीह।  हार्डकोर नक्सली मनोज चौधरी पर गिरिडीह पुलिस ने शिकंजा कस दिया है। इस कड़ी में पुलिस ने गम्भीर कार्रवाई करते हुए शनिवार को शहर के स्टेशन रोड स्थित उसके सावन बहार स्टोरेंट समेत कुल 11 प्रॉपटी पर क़ानूनी कार्रवाई कर सील कर दिया।


एसपी सुरेन्द्र कुमार झा के निर्देश पर दंडाधिकारी गिरिडीह सीओ धीरज ठाकुर और डुमरी एसडीपीओ नीरज सिंह के नेतृत्व में कार्रवाई की गई। इसके साथ ही अरगाघाट में उसके भवन और जमीन को भी पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया है। पुलिस ने मनोज चौधरी द्वारा अर्जित भवन और घरों में रहने वाले किराएदारों और अन्य लोगों को तुरंत घर खाली करने का नोटिस दिया है।


बताया गया कि सावन बहार रेस्टोरेंट समेत कुल 11 प्रॉपर्टी को पुलिस ने गिरिडीह और पीरटांड़ में चिन्हित किया है जो गिरफ्तार नक्सली मनोज चैधरी द्वारा अर्जित संपत्ति की गई है।



पिछले दिनों पुलिस को जानकारी मिली थी कि मनोज चौधरी और झरी लाल महतो नक्सलीयों के इन्वेस्टमेंट मैनेजर के तौर पर इलाके में सक्रिय होकर नक्सली लेवी के पैसों को विभिन्न जगहों में इन्वेस्ट कर रहे थे। उनके द्वारा नक्सली लेवी से करोड़ों की अचल संपत्ति अर्जित करने की जानकारी पुलिस के हाथ लगी थी। इसके बाद ही गिरिडीह से लेकर रांची तक पुलिस हरकत में आ गई। अब इस तरह के सभी संपत्तियों को पुलिस ने अपने कब्जे में लेने की कार्रवाई शुरू की है। मनोज चौधरी ने नक्सली लेवी के पैसे से गिरिडीह और पीरटांड़ के दर्जनों जगह जमीनें और अन्य संपत्तियां अर्जित की है। रांची के पुलिस मुख्यालय के निर्देश के बाद जिला पुलिस ने इस मामले में तेज कार्रवाई करते हुए उक्त संपत्तियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इस मामले में जैसे जैसे जांच आगे बढ़ रही है वैसे वैसे कई चौकाने वाले खुलासे हो रहें हैं।


प्रॉपटी सील करने के दौरान गिरिडीह पुलिस जैसे ही अरगाघाट स्थित मकान में प्रवेश किया तो देखा कि 4 युवक और 2 युवती आपत्तिजनक स्थिति में है. पुलिस ने मौके पर से मनोज चौधरी के बेटा समेत सभी को गिरफ्तार कर नगर थाना ले गयी.



शनिवार, 13 अक्टूबर 2018

केंद्रीय कोयला मंत्री के उदासीन रवैये से बीसीसीएल मजदूरों में रोष, एम्पा ने की निन्दा

केंद्रीय कोयला मंत्री ने किया धनबाद का दौरा, किया एनटीएससी परियोजना का निरीक्षण

   
धनबाद । कोयला मंत्री पियूष गोयल ने शनिवार को बीसीसीएल के लोदना क्षेत्र का दौरा किया। दौरा के क्रम में उन्होंने एनटीएसटी परियोजना का निरिक्षण किया और आउटसोर्सिंग परियोजना में जलते कोयला को देखा।

मौके पर उन्होंने गोकुल पार्क स्थित काली मंदिर  प्रांगण में पौधा रोपण भी किया।इसके बाद उनका काफिला बलियापुर हवाई पट्टी के लिए निकल गया।

इस दौरे में मंत्री के साथ धनबाद सांसद पशुपति नाथ  सिंह, विधायक राज सिंहा व फुलचंद मंडल, मेयर चंद्रशेखर अग्रवाल, पुर्व विधायक कुंती देवी, 20 सूत्री उपाध्यक्ष इंदर जीत महतो , सतेंद्र सिंह, सीएमडी बीसीसीएल ए के सिंह, इसीएल के सीएमडी गोपाल सिंह के अलावा सीआईएसएफ, पुलिस एवं जिला प्रशासन के अधिकारी मौजूद थे।


मजदूरों से नही मिले मंत्री, मजदूर हुए निराश

गौरतलब हो कि कोयला मंत्री के दौरे को लेकर बीसीसीएल प्रबंधन बीस दिनों से तैयारियों में जुटा था। पूर्व में दो बार दौरा निर्धारित होकर भी रद्द हो गया था। आज के दौरे को लेकर प्रबंधन ने काफी तैयारी की थी। भारी संख्या में कोयला मजदुरो के अलावा पुर्व एवं वर्तमान अधीकारी भी मौजूद थे। जो कोयला मंत्री के समक्ष अपनी समस्या रखना चाहते थे। प्रबंधन द्वारा उन्हें बताया भी गया था कि कोयला मंत्री उनसे संबाद करेंगे।


घंटों प्रतीक्षा कर रहे कोयला मजदूर, कोयला मंत्री से संबाद करने को लेकर काफी उत्साहित भी थे। लेकिन इनका उत्साह एन वक़्त पर फिका पड़ गया। जब कोयला मंत्री इन लोगों से बिना मिलें वापस लौट गये। घंटों  इन्तज़ार कर रहे अपने ही कोयला मजदुरो से मिलना कोयला मंत्री ने मुनासिब नहीं समझा। कोयला मंत्री के इस रवैए पर कई मजदुरो ने हैरानी जताते हुए कहा कि अगर कोयला मंत्री को हमसे इतना ही नफरत था तो हमें घंटों क्यों बैठा कर रखा गया। मजदुरो ने कहा कि भाजपा सरकार के कोयला मंत्री का मजदुरो के प्रति यह रवैया उचित नहीं है।


एम्पा ने मंत्री के रवैये पर जताया क्षोभ

एम्पा के बीसीसीएल जोन के उपाध्यक्ष बी पी सिंह ने कोयला मंत्री के इस रवैए पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोयला मंत्री ने श्रमिकों एवं अधिकारियों से ना मिल कर गलत किया। वह कोयला मंत्री को मांग पत्र सौंपने पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि एम्पा मंत्री के इस हरकत कि निंदा करतीं हैं।

उन्होंने कहा कि बि सी सी एल के सीएमडी एवं डी पी निचे के अधिकारियों की सुनते ही नहीं और कोयला मंत्री भी नहीं सुनें तो आखिर हमारी कौन सुनेगा। मौके पर एम्पा के सचिव जे के सिंह एवं संगठन सचिव ए के शर्मा भी उपस्थित थे। मौके पर आरएस के तहत नियोजन से वंचीत आश्रीतो को भी निराशा हाथ लगी।


पत्रकारों से भी कन्नी काट गये मंत्री

हद तो इस बात की रही कोयला मंत्री के कार्यक्रम में मंत्री से पत्रकारों को मिलने नहीं दिया गये। पुरे कार्यक्रम में पत्रकारों को मंत्री से नहीं मिलने देने के लिए सीआईएसएफ ने एंडी चोटी एक किये रहे।

साम्प्रदायिक सौहार्द का मिशाल है पोबी का दुर्गा पूजा

साम्प्रदायिक सद्भाव का संदेश देता है पोबी का दुर्गोत्सव


जमुआ :  गिरिडीह जिले के जमुआ प्रखण्ड अंतर्गत ऐतिहासिक ग्राम पंचायत पोबी में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान वर्ष 1830 में वास्तुकला का जीवंत प्राचीन पंचमन्दिर में स्थापित माँ दुर्गा की पाषाण प्रतिमा की पूजा अर्चना अब तक विधिवत जारी है। वर्ष 2007 से इस मंदिर परिसर के कृतिम मण्डप में कलश स्थापना के दिन से ही माँ दुर्गा , लक्ष्मी, सरस्वती, श्रीगणेश, कार्तिक आदि देवी देवताओं की भी प्रतिमा स्थापित कर सामुदायिक सहभागिता से पुरे भक्ति भाव के साथ आस्था पूर्वक पूजन अर्चना किया जाता हैं। 

 गौरतलब है कि यह पोबी गांव एकीकृत बिहार सरकार में तीन बार मंत्री रहे जमुआ प्रखंड के एकमात्र भूतपूर्व स्वतंत्रता सेनानी स्व सदानंद प्रसाद की जन्म व कर्मस्थली रही है। इस गांव में होने वाली दुर्गा महोत्सव में हिन्दूओं के अलावे मुस्लिम समुदाय के लोग भी बढ-चढ़ कर भाग लेते हैं और क्षेत्र की अमन, चैन, शांति तरक्की के लिए दुआ करते है। 

मन्दिर के मुख्य पुजारी संपूर्णानंद प्रसाद, युवा समाजसेवी सह मीडिया प्रभारी योगेश कुमार पाण्डेय व पोबी के मुखिया नकुल कुमार पासवान ने बताया कि इस मन्दिर परिसर में अष्टमी से दशमी तक तीन दिवसीय मेला का आयोजन होता हैं। इस दौरान दिन भर वैदिक मंत्रोच्चारण से वातावरण गुंजायमान रहता है। वही भक्ति संध्या कार्यक्रम में प्रतिदिन प्रोजेक्टर के माध्यम से पर्दा पर रामायण, दुर्गा सप्तशती पर आधारित भक्ति सीरियल, चलचित्र दिखाया जाता है। जिससे माहौल पूर्णरूपेण भक्तिमय हो गया है। जिसे देखने प्रतिदिन महिलाओं का हुजूम उमड़ पड़ता है।  
दुर्गा पूजा आयोजन समिति के अधिकारी, सदस्यगण के अलावे ग्रामीण पूरी सिद्दत के साथ जुड़े हुए हैं।

विदित हो कि चित्रांश परिवार से जुड़े इस पोबी गांव के  दर्जनाधिक आई एस, आई पी एस अधिकारी, सहित विदेशो में उच्चस्थ पदों पर आसीन व राजनीति के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखने वाले चित्रांश भाई बन्धु दुर्गा पूजा के अवसर पर अपने पैतृक गांव निश्चित तौर पर पहुंचते हैं। जिससे गाँव का वातावरण न केवल पूरी तरह से गुलजार हो जाता हैं बल्कि गांव में काफी चहल पहल हो जाती है। उन सभी चित्रांशों का माँ दुर्गा के पूजन में भी काफी उल्लेखनीय सहयोग रहता है। 

शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018

स्वास्थ्य सलाह : अपना डॉक्टर स्वयं बनें

करें घरेलू चीजों का प्रयोग, बने रहेंगे निरोग

*अपना डॉक्टर स्वयं बने*


*1 =  केवल सेंधा नमक प्रयोग करें, थायराईड, बी पी और पेट ठीक होगा।*

*2 = केवल स्टील का कुकर ही प्रयोग करें, अल्युमिनियम में मिले हुए लेड से होने वाले नुकसानों से बचेंगे*

*3 = कोई भी रिफाइंड तेल ना खाकर केवल तिल, मूंगफली, सरसों और नारियल का प्रयोग करें। रिफाइंड में बहुत केमिकल होते हैं जो शरीर में कई तरह की बीमारियाँ पैदा करते हैं ।*

*4 = सोयाबीन बड़ी को 2 घण्टे भिगो कर, मसल कर ज़हरीली झाग निकल कर ही प्रयोग करें।*

*5 = रसोई में एग्जास्ट फैन जरूरी है, प्रदूषित हवा बाहर करें।*

*6 = काम करते समय स्वयं को अच्छा लगने वाला संगीत चलाएं। खाने में भी अच्छा प्रभाव आएगा और थकान कम होगी।*

*7 = देसी गाय के घी का प्रयोग बढ़ाएं। अनेक रोग दूर होंगे, वजन नहीं बढ़ता।*

*8 = ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य ठीक करेगा।*

*9 = ज्यादा से ज्यादा चीजें लोहे की कढ़ाई में ही बनाएं। आयरन की कमी किसी को नहीं होगी।*

*10 = भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा। भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा।*

*11 = नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें। पोषक विटामिन और फाइबर मिलेंगें।*

*12 = सुबह के खाने के साथ देशी गाय के दूध का बना ताजा दही लें, पेट ठीक रहेगा।*

*13 = चीनी कम से कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में हड्डियां ठीक रहेंगी।*

*14 = चीनी की जगह बिना मसले का गुड़ या देशी शक्कर लें।*

*15 = छौंक में राई के साथ कलौंजी का भी प्रयोग करें, फायदे इतने कि लिख ही नहीं सकते।*

*16 = चाय के समय, आयुर्वेदिक पेय की आदत बनाएं व निरोग रहेंगे।*

*17 = एक डस्टबिन रसोई में और एक बाहर रखें, सोने से पहले रसोई का कचरा बाहर के डस्ट बिन में डालें।*

*18 = रसोई में घुसते ही नाक में घी या सरसों का तेल लगाएं, सर और फेफड़े स्वस्थ रहेंगें।*

*19 = करेले, मैथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएँ, रक्त शुद्ध रहेगा।*

*20 = पानी मटके वाले से ज्यादा ठंडा न पिएं, पाचन व दांत ठीक रहेंगे।*

*21 = प्लास्टिक और अल्युमिनियम रसोई से हटाएं, दोनों केन्सर कारक हैं।*

*22‌ = माइक्रोवेव ओवन का प्रयोग कैंसर कारक है।*

*23 = खाने की ठंडी चीजें कम से कम खाएँ, पेट और दांत को खराब करती हैं।*

*24 = बाहर का खाना बहुत हानिकारक है, खाने से सम्बंधित ग्रुप से जुड़कर सब घर पर ही बनाएं।*

*25 = तली चीजें छोड़ें, वजन, पेट, एसिडिटी ठीक रहेंगी।*

*26 = मैदा, बेसन, छौले, राजमां और उड़द कम खाएँ, गैस की समस्या से बचेंगे।*

*27 = अदरक, अजवायन का प्रयोग बढ़ाएं, गैस और शरीर के दर्द कम होंगे।*

*28 = बिना कलौंजी वाला अचार हानिकारक होता है।*

*29 = पानी का फिल्टर R O वाला हानिकारक है। U V वाला ही प्रयोग करें, सस्ता भी और बढ़िया भी।*

*30 = रसोई में ही बहुत से कॉस्मेटिक्स हैं, इस प्रकार के ग्रुप से जानकारी लें।*

*31 = रात को आधा चम्मच त्रिफला एक कप पानी में डाल कर रखें, सुबह कपड़े से छान कर इस जल से आंखें धोएं, चश्मा उतर जाएगा। छानने के बाद जो पाउडर बचे उसे फिर एक गिलास पानी में डाल कर रख दें। रात को पी जाएं। पेट साफ होगा, कोई रोग एक साल में नहीं रहेगा।*

*32 = सुबह रसोई में चप्पल न पहनें, शुद्धता भी, एक्यू प्रेशर भी।*

*33 = रात का भिगोया आधा चम्मच कच्चा जीरा सुबह खाली पेट चबा कर वही पानी पिएं, एसिडिटी खतम।*

*34 = एक्यूप्रेशर वाले पिरामिड प्लेटफार्म पर खड़े होकर खाना बनाने की आदत बना लें तो भी सब बीमारियां शरीर से निकल जायेंगी।*

*35 = चौथाई चम्मच दालचीनी का कुल उपयोग दिन भर में किसी भी रूप में करने पर निरोगता अवश्य होगी।*

*36 = रसोई के मसालों से बनी चाय मसाला स्वास्थ्यवर्धक है।*

*37 = सर्दियों में नाखून के बराबर जावित्री कभी चूसने से सर्दी के असर से बचाव होगा।*

*38 = सर्दी में बाहर जाते समय 2 चुटकी अजवायन मुहं में रखकर निकलिए, सर्दी से नुकसान नहीं होगा।*

*39 = रस निकले नीबू के चौथाई टुकड़े में जरा सी हल्दी, नमक, फिटकरी रख कर दांत मलने से दांतों का कोई भी रोग नहीं रहेगा।*

*40 = कभी - कभी नमक - हल्दी में 2 बून्द सरसों का तेल डाल कर दांतों को उंगली से साफ करें, दांतों का कोई रोग टिक नहीं सकता।*

*41 = बुखार में 1 लीटर पानी उबाल कर 250 ml कर लें, साधारण ताप पर आ जाने पर रोगी को थोड़ा थोड़ा दें, दवा का काम करेगा।*

*42 = सुबह के खाने के साथ घर का जमाया देशी गाय का ताजा दही जरूर शामिल करें, प्रोबायोटिक का काम करेगा।*


*हृदय की बीमारी के आयुर्वेदिक इलाज*

*हमारे देश भारत मे 3000 साल पहले एक बहुत बड़े ऋषि हुये थे, उनका नाम था महाऋषि वागवट जी !!*

*उन्होने एक पुस्तक लिखी थी, जिसका नाम है अष्टांग हृदयम!! (Astang Hridayam)*

*इस पुस्तक मे उन्होने बीमारियो को ठीक करने के लिए 7000 सूत्र लिखे थे !*

यह उनमे से ही एक सूत्र है !!

*वागवट जी लिखते है कि कभी भी हृदय को घात हो रहा है ! मतलब दिल की नलियों मे Blockage होना शुरू हो रहा है तो इसका मतलब है कि रक्त (Blood) मे Acidity (अम्लता) बढ़ी हुई है !*

*अम्लता आप समझते है, जिसको अँग्रेजी में Acidity भी कहते हैं और यह अम्लता दो तरह की होती है !*

*एक होती है पेट कि अम्लता !*
*और*
*एक होती है रक्त (Blood) की अम्लता !*

*आपके पेट मे अम्लता जब बढ़ती है तो आप कहेंगे पेट मे जलन सी हो रही है, खट्टी खट्टी डकार आ रही है, मुंह से पानी निकल रहा है और अगर ये अम्लता (Acidity) और बढ़ जाये तो इसे Hyperacidity कहते हैं !*

*फिर यही पेट की अम्लता बढ़ते - बढ़ते जब रक्त मे आती है तो रक्त अम्लता  (Blood Acidity) होती है और जब Blood मे Acidity बढ़ती है तो ये अम्लीय रक्त दिल की नलियों में से निकल नहीं पाता और नलियों में Blockage कर देता है और तभी Heart Attack होता है ! इसके बिना Heart Attack नहीं होता और ये आयुर्वेद का सबसे बढ़ा सच है जिसको कोई डाक्टर आपको बताता नहीं ! क्योंकि इसका इलाज सबसे सरल है !!*

*एसीडिटी का इलाज क्या है*??

*वागबट जी आगे लिखते है कि जब रक्त (Blood) में अम्लता (Acidity) बढ़ गई है ! तो आप ऐसी चीजों का उपयोग करें जो क्षारीय है !*

*आप जानते है दो तरह की चीजे होती है !*

*अम्लीय (Acidic)*
*और*
*क्षारीय (Alkaline)*

*अब अम्ल और क्षार (Acid and Alkaline) को मिला दें तो क्या होता है ?*

*हम सब जानते हैं Neutral होता है !!*

*तो वागबट जी लिखते हैं कि रक्त की अम्लता बढ़ी हुई है तो क्षारीय (Alkaline) चीजे खाओ ! तो रक्त की अम्लता (Acidity) Neutral हो जाएगी, और जब रक्त मे अम्लता Neutral हो गई तो Heart Attack की जिंदगी मे कभी संभावना ही नहीं होगी ।*

*ये है सारी कहानी !!*

*अब आप पूछोगे जी ऐसे कौन सी चीजे है जो क्षारीय है और हम खाये ??*

*आपके रसोई घर मे ऐसी बहुत सी चीजे है जो क्षारीय है ! जिन्हें अगर आप खायें तो कभी Heart Attack न आयेगा और अगर आ गया तो दुबारा नहीं आएगा !*

*आपके घर में जो सबसे ज्यादा क्षारीय चीज है वह है लौकी, जिसे हम दुधी भी कहते है और English मे इसे Bottle Gourd भी कहते हैं जिसे आप सब्जी के रूप मे खाते है !*

*इससे ज्यादा कोई क्षारीय चीज ही नहीं है इसलिये आप हर रोज़ लौकी का रस निकाल कर पियें या अगर खा सकते है तो कच्ची लौकी खायें ।*

*वागवतट जी के अनुसार रक्त की अम्लता कम करने की सबसे ज्यादा ताकत लौकी में ही है, इसलिए आप लौकी के रस का सेवन करें !*

*कितना मात्रा में सेवन करें*

*रोज 200 से 300 ग्राम लौकी का रस ग्राम पियें !*

कब पिये ?

*सुबह खाली पेट (Toilet) शौच जाने के बाद पी सकते है. या फिर नाश्ते के आधे घंटे के बाद पी सकते हैं!*

*इस लौकी के रस को आप और ज्यादा क्षारीय भी बना सकते हैं ! जिसके लिए इसमें 7 से 10 पत्ते के तुलसी के डाल लें क्योंकि तुलसी बहुत क्षारीय है !*

*इसके साथ आप पुदीने के 7 से 10 पत्ते भी मिला सकते है, क्योंकि पुदीना भी बहुत क्षारीय होता है।*

*इसके साथ आप इसमें काला नमक या सेंधा नमक भी जरूर डाले ! ये भी बहुत क्षारीय है। याद रखे नमक काला या सेंधा ही डालें, दूसरा आयोडीन युक्त नमक कभी न डालें !*

*ये आओडीन युक्त नमक अम्लीय है।*

*तो मित्रों आप इस लौकी के जूस का सेवन जरूर करे 2 से 3 महीने आपकी सारी Heart की Blockage ठीक कर देगा। 21 वे दिन ही आपको बहुत ज्यादा असर दिखना शुरू हो जाएगा और फिर आपको कोई आपरेशन की जरूरत नहीं पड़ेगी !*

*घर मे ही हमारे भारत के आयुर्वेद से इसका इलाज हो जाएगा और आपका अनमोल शरीर और लाखों रुपए आपरेशन के बच जाएँगे और जो पैसे बच जायें उसे अगर इच्छा हो किसी गौशाला मे दान कर दें क्योंकि डाक्टर को देने से अच्छा है किसी गौशाला दान दे !*

*हमारी गौ माता बचेगी तो भारत बचेगा !!*



*हल्दी का पानी*
     
*पानी में हल्दी मिलाकर पीने से यह 7 फायदें होते है ....*

*1. गुनगुना हल्दी वाला पानी पीने से दिमाग तेज होता है। सुबह के समय हल्दी का गुनगुना पानी पीने से दिमाग तेज और उर्जावान बनता है।*

*2.‌ आप यदि रोज़ हल्दी का पानी पीते हैं तो इससे खून में होने वाली गंदगी साफ होती है और खून जमता भी नहीं है, यह खून साफ करता है और दिल को बीमारियों से भी बचाता है।*

*3. लीवर की समस्या से परेशान लोगों के लिए हल्दी का पानी किसी औषधि से कम नही है क्योंकि हल्दी का पानी टाॅक्सिस लीवर के सेल्स को फिर से ठीक करता है। इसके अलावा हल्दी और पानी के मिले हुए गुण लीवर को संक्रमण से भी बचाते हैं।*

*4. हार्ट की समस्या से परेशान लोगों को हल्दी वाला पानी पीना चाहिए क्योंकि हल्दी खून को गाढ़ा होने से बचाती है जिससे हार्ट अटैक की संभावना कम हो जाती है.*

*5. जब हल्दी के पानी में शहद और नींबू मिलाया जाता है तब यह शरीर के अंदर जमे हुए विषैले पदार्थों को निकाल देता है, जिसे पीने से शरीर पर बढ़ती हुई उम्र का असर नहीं पड़ता है। हल्दी में फ्री रेडिकल्स होते हैं जो सेहत और सौंदर्य को बढ़ाते हैं.*

*6. शरीर में किसी भी तरह की सूजन हो और वह किसी दवाई से ना ठीक हो रही हो तो आप हल्दी वाला पानी का सेवन करें। हल्दी में करक्यूमिन तत्व होता है जो सूजन और जोड़ों में होने वाले असहय दर्द को ठीक कर देता है। सूजन की अचूक दवा है हल्दी का पानी।*

*7. कैंसर खत्म करती है हल्दी। हल्दी कैंसर से लड़ती है और उसे बढ़ने से भी रोक देती है क्योंकि हल्दी एंटी - कैंसर युक्त होती है और यदि आप सप्ताह में तीन दिन हल्दी वाला पानी पीएगें तो आपको भविष्य में कैंसर से हमेशा बचे रहेगें।*


*हमारे वेदों के अनुसार स्वस्थ रहने के १५ नियम हैं.....*

*१ - खाना खाने के १.३० घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए।*

*२ - पानी घूँट घूँट करके पीना है जिससे अपनी मुँह की लार पानी के साथ मिलकर पेट में जा सके, पेट में Acid बनता है और मुँह में छार, दोनो पेट में बराबर मिल जाए तो कोई रोग पास नहीं आएगा।*

*३ - पानी कभी भी ठंडा (फ़्रिज़ का) नहीं पीना है।*

*४ - सुबह उठते ही बिना क़ुल्ला किए २ ग्लास पानी पीना चाहिए, रात भर जो अपने मुँह में लार है वो अमूल्य है उसको पेट में ही जाना ही  चाहिए ।*

*५ - खाना, जितने आपके मुँह में दाँत है उतनी बार ही चबाना  है ।*

*६ - खाना ज़मीन में पलोथी मुद्रा में बैठकर या उखड़ूँ बैठकर ही खाना चाहिए।*

*७ - खाने के मेन्यू में एक दूसरे के विरोधी भोजन एक साथ ना करे जैसे दूध के साथ दही, प्याज़ के साथ दूध, दही के साथ उड़द की दlल ।*

*८ - समुद्री नमक की जगह सेंधl नमक या काला नमक खाना चाहिए।*

*९ - रीफ़ाइन तेल, डालडा ज़हर है, इसकी जगह अपने इलाक़े के अनुसार सरसों, तिल, मूँगफली या नारियल का तेल उपयोग में लाए । सोयाबीन के कोई भी प्रोडक्ट खाने में ना ले इसके प्रोडक्ट को केवल सुअर पचा सकते है। आदमी में इसके पचाने के एंज़िम नहीं बनते हैं ।*

*१० - दोपहर के भोजन के बाद कम से कम ३० मिनट आराम करना चाहिए और शाम के भोजन बाद ५०० क़दम पैदल चलना चाहिए।*

*११ - घर में चीनी (शुगर) का उपयोग नहीं होना चाहिए क्योंकि चीनी को सफ़ेद करने में १७ तरह के ज़हर (केमिकल ) मिलाने पड़ते है इसकी जगह गुड़ का उपयोग करना चाहिए और आज कल गुड़ बनाने में कॉस्टिक सोडा (ज़हर) मिलाकर गुड को सफ़ेद किया जाता है इसलिए सफ़ेद गुड़ ना खाए। प्राकृतिक गुड़ ही खाये। प्राकृतिक गुड़ चाकलेट कलर का होता है।*

*१२ - सोते समय आपका सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ़ होना चाहिए।*

*१३ - घर में कोई भी अलूमिनियम के बर्तन या कुकर नहीं होना चाहिए। हमारे बर्तन मिट्टी, पीतल लोहा और काँसा के होने चाहिए।*

*१४ - दोपहर का भोजन ११ बजे तक अवश्य और शाम का भोजन सूर्यास्त तक हो जाना चाहिए ।*

*१५ - सुबह भोर के समय तक आपको देशी गाय के दूध से बनी छाछ (सेंधl नमक और ज़ीरा बिना भुना हुआ मिलाकर) पीना चाहिए ।*

*यदि आपने ये नियम अपने जीवन में लागू कर लिए तो आपको डॉक्टर के पास जाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी और देश के ८ लाख करोड़ की बचत होगी । यदि आप बीमार है तो ये नियमों का पालन करने से आपके शरीर के सभी रोग (BP, शुगर ) अगले ३ माह से लेकर १२ माह में ख़त्म हो जाएँगे।*



*सर्दियों में उठायें मेथी दानों से भरपूर लाभ*

*➡ मेथीदाना उष्ण, वात व कफनाशक, पित्तवर्धक, पाचनशक्ति व बलवर्धक एवं ह्रदय के लिए हितकर है | यह पुष्टिकारक, शक्ति,  स्फूर्तिदायक टॉनिक की तरह कार्य करता है | सुबह–शाम इसे पानी के साथ निगलने से पेट को निरोग बनाता है, कब्ज व गैस को दूर करता है | इसकी मूँग के साथ सब्जी बनाकर भी खा सकते हैं | यह मधुमेह के रोगियों के लिए खूब लाभदायी हैं |*

*➡ अपनी आयु के जितने वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, उतनी संख्या में मेथीदाने रोज धीरे – धीरे चबाना या चूसने से वृद्धावस्था में पैदा होने वाली व्याधियों, जैसे घुटनों व जोड़ों का दर्द, भूख न लगना, हाथों का सुन्न पड़ जाना, सायटिका, मांसपेशियों का खिंचाव, बार - बार मूत्र आना, चक्कर आना आदि में लाभ होता है | गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं को भुने मेथी दानों का चूर्ण आटे के साथ मिला के लड्डू बना के खाना लाभकारी है |*

*मेथी दाने से शक्तिवर्धक पेय*

*दो चम्मच मेथीदाने एक गिलास पानी में ४ – ५ घंटे भिगोकर रखें फिर इतना उबालें कि पानी चौथाई रह जाय, इसे छानकर २ चम्मच शहद मिला के पियें ।*

*औषधीय प्रयोग*

*1. कब्ज : २० ग्राम मेथीदाने को २०० ग्राम ताजे पानी में भिगो दें. ५-६ घंटे बाद मसल के पीने से मल साफ़ आने लगता है. भूख अच्छी लगने लगती है और पाचन भी ठीक होने लगता है |*

*2. जोड़ों का दर्द : १०० ग्राम मेथीदाने अधकच्चे भून के दरदरा कूट लें | इसमें २५ ग्राम काला नमक मिलाकर रख लें | २ चम्मच यह मिश्रण सुबह- शाम गुनगुने पानी से फाँकने से जोड़ों, कमर व घुटनों का दर्द, आमवात (गठिया) का दर्द आदि में लाभ होता है | इससे पेट में गैस भी नहीं बनेगी |*

*3. पेट के रोगों में : १ से ३ ग्राम मेथी दानों का चूर्ण सुबह, दोपहर व शाम को पानी के साथ लेने से अपच, दस्त, भूख न लगना, अफरा, दर्द आदि तकलीफों में बहुत लाभ होता है |*

*4. दुर्बलता : १ चम्मच मेथीदानों को घी में भून के सुबह - शाम लेने से रोगजन्य शारीरिक एवं तंत्रिका दुर्बलता दूर होती है |*

*5. मासिक धर्म में रुकावट : ४ चम्मच मेथीदाने १ गिलास पानी में उबालें | आधा पानी रह जाने पर छानकर गर्म–गर्म ही लेने से मासिक धर्म खुल के होने लगता है |*

*6. अंगों की जकड़न : भुनी मेथी के आटे में गुड़ की चाशनी मिला के लड्डू बना लें | १–१ लड्डू रोज सुबह खाने से वायु के कारण जकड़े हुए अंग १ सप्ताह में ठीक हो जाते हैं तथा हाथ–पैरों में होने वाला दर्द भी दूर होता है |*

*7. विशेष : सर्दियों में मेथीपाक, मेथी के लड्डू, मेथीदानों व मूँग–दाल की सब्जी आदि के रूप में इसका सेवन खूब लाभदायी हैं |*

*IMPORTANT*

*HEART ATTACK और गर्म पानी पीना!*

*यह भोजन के बाद गर्म पानी पीने के बारे में ही नहीं Heart Attack के बारे में भी एक अच्छा लेख है।*

*चीनी और जापानी अपने भोजन के बाद गर्म चाय पीते हैं, ठंडा पानी नहीं। अब हमें भी उनकी यह आदत अपना लेनी चाहिए। जो लोग भोजन के बाद ठंडा पानी पीना पसन्द करते हैं यह लेख उनके लिए ही है।*

*भोजन के साथ कोई ठंडा पेय या पानी पीना बहुत हानिकारक है क्योंकि ठंडा पानी आपके भोजन के तैलीय पदार्थों को जो आपने अभी अभी खाये हैं ठोस रूप में बदल देता है।*

*इससे पाचन बहुत धीमा हो जाता है। जब यह अम्ल के साथ क्रिया करता है तो यह टूट जाता है और जल्दी ही यह ठोस भोजन से भी अधिक तेज़ी से आँतों द्वारा सोख लिया जाता है। यह आँतों में एकत्र हो जाता है। फिर जल्दी ही यह चरबी में बदल जाता है और कैंसर के पैदा होने का कारण बनता है।*

*इसलिए सबसे अच्छा यह है कि भोजन के बाद गर्म सूप या गुनगुना पानी पिया जाये। एक गिलास गुनगुना पानी सोने से ठीक पहले पीना चाहिए। इससे खून के थक्के नहीं बनेंगे और आप हृदयाघात से बचे रहेंगे।*