लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू ,खरना आज
दीपोत्सव के बाद घर से घाट तक छठ महापर्व का माहौल बन रहा है। “पहिले-पहिल हम कइली छठ मइया बरत तोहार, करिह क्षमा छठी मइया भूल-चूक गलती हमार..” जैसे पारंपरिक गीत गुनगुनाते हुए घर की महिलाएं छठ मइया का प्रसाद तैयार करने में जुट गई हैं। प्रसाद की सामग्री को धुलकर सुखाने और साफ-सुथरा करने का कार्य शुरू हो गया है। रविवार से यह पर्व शुरू हो गया।
नहाय-खाय से हुई शुरुआत
महापर्व की शुरूआत 11 नंवबर (रविवार) को नहाय-खाय से हो गयी। इसे ‘कद्दू भात’ भी कहते हैं। इस दिन बिना मसाले के कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाएगा। माना जाता है कि कद्दू में 96 प्रतिशत पानी होता है। इसलिए तन-मन निर्मल रहता है। पहले दिन महिलाएं सिर धोकर स्नान करती है। इससे पूर्व नाखून काटकर शरीर को पूरी तरह से स्वच्छ बनाएंगी। भोजन भी इतना हल्का रहेगा कि शरीर पूरी तरह से शुद्ध रहे।
दूसरे दिन 12 नवंबर (सोमवार) को खरना होगा। इस दिन व्रती निर्जला व्रत उपवास रहेंगी। इसे ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। शाम को सूखी रोटी और गुड़ की खीर व केला अर्पित कर छठ मइया की पूजा प्रारंभ होगी। तीन दिन तक व्रती कठिन साधना करेंगे। बिस्तर के बजाय चटाई पर सोएंगे। व्रती महिलाएं उसी कमरे में सोएंगी जहां अर्घ्य के पकवान बनाए जाते हैं। खास कर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
13 नवंबर को तीसरे दिन सायं कालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। व्रत करने वाले सूर्य डूबने से पहले घाट पर पहुंच जाएंगे। शुभ मुहूर्त में जल में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। माना जाता है कि डूबते सूर्य की लाल किरणें अर्घ्य के जल से छनकर तन-मन और बुद्धि को तेज कर देती हैं।
14 नवंबर को व्रती महिलाएं व पुरुष उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भोर में उसी जगह एकत्र होंगे जहां डूबते सूर्य के लिए पूजन किया था। महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देने से पूर्व गंगा जल का आचमन करेंगी। पुरे विधि विधान से अर्घ्य देकर सूर्यदेव से सुख-समृद्धि का आशीष मांगेगी। पूजन के बाद घाट पर प्रसाद बांटकर पारण किया जाएगा।
पूजन मुहूर्त
जानकारों के अनुसार 11 नवंबर को नहाय खाय के दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। 13 नवंबर को सांयकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन त्रय पुष्कर योग रहेगा। इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी।
पूजा विधि
यह पर्व चार दिनों तक चलता है
1. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है।
2. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को “नहाये-खाए” के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन से स्वच्छता का खासा ध्यान रखा जाता है। इस दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है।
3. दूसरे दिन को “लोहंडा/खरना” कहा जाता है। इस दिन उपवास रखकर शाम को मीठे खीर का सेवन किया जाता है। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता।
4. तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल आदि अस्त होते सूर्य देव को को चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है।
5. चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।
6. इस बार पहला अर्घ्य 13 नवंबर को संध्या काल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 14 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा।
छठ महापर्व की तिथि
नहाय खाय – रविवार 11 नवंबर
खरना – दिन सोमवार 12 नवंबर
सायं कालीन अर्घ्य – दिन मंगलवार 13 नवंबर (सूर्यास्त : 5:26 बजे)
प्रात:कालीन अर्घ्य – बुधवार 14 नवंबर (सूर्योदय : 6:32 बजे)
यह है मान्यता
छठ पूजा के बारे में कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के कहने पर इस दंपत्ती ने यज्ञ किया। जिससे पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से नवजात मरा हुआ पैदा हुआ। राजा-रानी प्राण ज्याग्ने के लिए आतुर हुए तो ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं। इसलिए षष्ठी कहलाती हूं। उनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होगी। राजा-रानी ने षष्ठी व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।
द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा
मान्यता है कि पांडव जुए में जब राजपाठ हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था, जिससे राजपाठ वापस मिला था। माना जाता है कि महाभारत काल में छठ पूजा की शुरूआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। सूर्य की कृपा से वह महान योद्धा बने।
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