◆सरकारी अस्पतालों का हाल-बेहाल, अधिकतर एंबुलेंस खास्ताहाल
राजेश कुमार
गिरिडीह। स्वास्थ्य सुविधा और स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने की झारखण्ड सरकार कितना भी दंभ क्यों न भरे। लेकिन धरातल पर स्थिति आज भी काफी लचर बनी हुई है। झारखण्ड अलग राज्य गठन के 24 वां वर्ष बीतने को है, लेकिन मौलिक अधिकारों में शामिल स्वास्थ्य सुविधा भी दुरुस्त कर पाने में यहां की सरकारें अब तक विफल रही है।
हालांकि सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो हर वर्ष राज्य की सरकार स्वास्थ्य विभाग को बेहतर बनाने के लिए लाखों रुपये खर्च करती है। मरीजों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सरलता से पहुंचने के लिए सभी स्वास्थ्य केंद्रों व सदर अस्पतालों में एंबुलेंस उपलब्ध करायी है। ताकि बिना विलम्ब मरीज अस्पताल व स्वस्थ्य केन्द्र पहुंच सकें और उनका समय रहते समुचित इलाज हो सके। लेकिन स्वाथ्य केंद्रों व सदर अस्पतालों को उपलब्ध कराई गई अधिकतर एंबुलेंस खराब और खस्ताहाल स्थिति में हैं। कई कई एंबुलेंस तो बगैर धक्का मारे स्टार्ट तक नहीं होती है। लेकिन उन्हें दुरुस्त करने की दिशा में स्वास्थ्य महकमा द्वारा कोई ठोस कदम तक नहीं उठाया जाता है।
ऐसा ही एक मामला गिरिडीह के सदर अस्पताल में उस वक्त देखने को मिला। जब देवरी स्वास्थ्य केंद्र से रेफर हुए मरीज को लेकर एक 108 एंबुलेंस ज़िला मुख्यालय स्थित सदर अस्पताल पहुंचा। मरीज के अस्पताल पहुंचने पर स्वास्थ्य कर्मी व अन्य लोगों ने मिलकर मरीज को नीचे उतारकर ड्रेसिंग रूम में पहुंचाया। और, एंबुलेंस को वापस जाने को कहा गया। लेकिन काफी मशक्कत के बाद भी एम्बुलेंस स्टार्ट नहीं हुआ।
काफी मशक्कत के बाद भी एम्बुलेंस स्टार्ट नहीं पर एंबुलेंस चालक ने सदर अस्पताल में मौजूद लोगों को एम्बुलेंस को धक्का मारने को कहा। लोगों ने मिलकर काफी देर तक लोग धक्का मारा, बावजूद इसके एम्बुलेंस स्टार्ट नहीं हुआ। धक्का मार-मार कर परेशान हो चुके लोगों ने अंत मे धक्का मारना छोड़ अपने अपने काम करने वापस चले गये। इसके बाद भी एम्बुलेंस चालक ने अपने स्तर से काफी कोशिश किया लेकिन उसकी सारी कोशिशें विफल और अंत मे एम्बुलेंस चालक ने एम्बुलेंस को सदर अस्पताल परिसर में ही छोड़कर चला गया।
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