सोमवार, 7 जनवरी 2019

महज़ जुमलेबाजी बनकर ना रह जाये सवर्ण आरक्षण बिल

सवर्ण आरक्षण बिल को पारित करने के लिए मोदी सरकार के पास है सिर्फ एक दिन

महज़ जुमलेबाजी बनकर ना रह जाये सवर्ण आरक्षण बिल। क्योंकि मोदी सरकार के पास सवर्णों को आरक्षण देने का विधेयक पारित करने के लिए सिर्फ एक दिन का समय है। कल यानी आठ जनवरी को संसद के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है। सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के कैबिनेट में लिए गए फैसले को कानूनी जामा पहनाने के लिए कल का ही वक्त सरकार के पास है। ऐसे में संसद खुलते ही सरकार को लोकसभा में आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग को आरक्षण देने के लिए संशोधन विधेयक पेश करना होगा।

लोकसभा में बहुमत है तो सरकार कुछ ही समय में विधेयक पास करा ले जाएगी। फिर क्या यह विधेयक राज्यसभा में भी उसी दिन पास हो पाएगा? वह भी तब, जबकि सरकार के पास उच्च सदन में बहुमत नहीं है। इस प्रस्ताव को संविधान सभा को भेजने की विपक्ष मांग उठा सकता है। जिससे देरी लग सकती है। हालांकि सियासी जानकार बताते हैं कि कांग्रेस सहित कई दल चुनावी सीजन में इसका सपोर्ट भी कर सकते हैं, क्योंकि अगड़ी जातियों को वे भी नाराज नहीं कर सकते।

फिर भी संसद के एक ही कार्यदिवस में इतने बड़े प्रस्ताव के पास होने की उम्मीद कम है। इसके लिए या तो कल चर्चा के दौरान संसद को देर शाम तक गतिशील किया जा सकता है या फिर 11 दिसंबर से आठ जनवरी के शीतकालीन सत्र को दो से तीन दिन बढ़ाने का फैसला हो सकता है। इसके अलावा सरकार के पास कोई चारा नहीं है।


लोकसभा चुनाव के ठीक पहले सरकार को याद आये सवर्ण

सरकार ने लिया बड़ा फैसला, आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को मिलेगा 10 फीसदी आरक्षण

केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले मास्टर स्ट्रोक खेला है! मोदी सरकार ने फैसला लिया है कि वह सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देगी। सोमवार को मोदी कैबिनेट की हुई बैठक में सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगाई गई। कैबिनेट ने फैसला लिया है कि यह आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को दिया जाएगा. सूत्रों का कहना है कि लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने संबंधी बिल पेश कर सकती है। सूत्रों का यह भी कहना है कि सरकार संविधान में संशोधन के लिए बिल ला सकती है।

सरकार के इस बड़े फैसले का भारतीय जनता पार्टी ने स्वागत किया है। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि गरीब सवर्णों को आरक्षण मिलना चाहिए. पीएम मोदी की नीति है कि सबका साथ सबका विकास। सरकार ने सवर्णों को उनका हक दिया है। पीएम मोदी देश की जनता के लिए काम कर रहे हैं।

मालूम हो कि करीब दो महीने बाद लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला बीजेपी के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है। हाल ही में संपन्न हुए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार हुई थी। इस हार के पीछे सवर्णों की नाराजगी को अहम वजह बताया जा रहा है।

रविवार, 16 दिसंबर 2018

पूंजीपतियों की पक्षधर है मोदी सरकार

मोदी सरकार गरीबों की नहीं पूंजीतियों की है पक्षधर  

 गरीब कर रहे हैं त्राहि-त्राहि 


यह मोदी सरकार पूंजीपतियों का पालक और पोषक है।इसके कई उदाहरण है।मेरी यह बात अंधभक्तों को नागवार गुजरेगी।कोई बात नहीं
अंधभक्तों जरा मेरे इस तथ्य पर गौर जरूर करेंगे। उसके बाद ही अपनी प्रतिक्रिया देंगे।

यह सरकार पूंजीपतियों का पोषक है ? कैसे।
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पूर्व की सभी सरकारों ने गरीब के हित को ध्यान में रखा। कभी भी उसे फजीहत में नही डाला। यँहा तक की अटल_बिहारी_बाजपेयी_की_सरकार_ने_भी।
                 लेकिन मोदी सरकार ने कभी भी गरीबों का ध्यान नहीं रखा। यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से पूंजीपतियों को फायदा पहुंचा रही है। बीते साढ़े चार वर्षों में गरीबों पर पहाड़ तोड़ कर रख दिया है।

              सुदूर ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरी क्षेत्र में जितनी भी मोबाइल कम्पनियां कार्यरत है उसका नेटवर्क भगवान भरोसे चल रहा है। उन सभी मोबाइल कम्पनियो के मालिक पूंजीपति है।
BSNL (सरकारी) की स्थिति भी ठीक नहीं है।
नतीजतन उपभोक्ता एक या दो कम्पनियो का ग्राहक बन गया है। ताकि एक कम्पनी के नेटवर्क की खराबी के बाद भी उनका सम्पर्क देश दुनियां से बना रहे।
     पूर्व की सरकारों के कार्यकाल में इसके लिए उपभोक्ताओं को इसके लिए कोई अत्यधिक बोझ उठाना नही पड़ता था।

लेकिन मोदी_राज में स्थिति काफी विपरीत हो गयी है।

1. मोबाइल कम्पनियों ने 30 दिनों के बदले 28 दिन का महीना बना दिया।
2. अब हर अलग-अलग नेटवर्क कम्पनियों के नम्बर की वेलिडिटी मात्र 28 दिनों की हो गयी है। जबकि पूर्व में ऐसा नहीं था।
3. हर नेटवर्क के नम्बर की जीवित रखने के लिए अब कम से कम 35/-₹ या उससे अधिक की राशि प्रति नम्बर हर 28 दिनों के लिए देना अनिवार्य हो गया है।
                             यदि आप यह राशि नहीं देते है। तो आपके नम्बर पर न तो कोई आउटगोइंग की और न ही इनकमिंग की सुविधा रहेगी। जबकि पहले ऐसा नहीं था।

#अंधभक्तों_जरा_गौर_करेंगे!!!!!!
           अभी भी काफी संख्या में ऐसे मोबाइल धारक है। जो सिर्फ अपने काम से मतलब रखने के लिए मोबाइल का उपयोग करते है।
          कई ऐसे उपभोक्ता है जो सिर्फ मिस कॉल करके ही अपना काम चला लेते थे।
           कई उपभोक्ता अब भी ऐसे है जो महीने में एक या दो बार ही मोबाइल का उपयोग करते हैं। बाकी समय वह अपने निजी कामों में व्यस्त रहते हैं। लेकिन देश-दुनियां-परिवार-समाज के सम्पर्क में बने रहने के लिए मोबाइल का प्रयोग करते है।

जिनपर #मोदी_सरकार ने अतिभार लगा दिया है।

यह तो महज एक बानगी मात्र है। और भी मुद्दे हैं।
 जिस कारण मोदी_राज_में_आम_गरीब_त्राहि_त्राहि_कर रहे हैं।
जिसके दर्द को समझने की जरूरत है।



बुधवार, 5 दिसंबर 2018

ट्रेन के हर डिब्बे पर लिखे नम्बर में छिपा है एक रहस्य


ट्रेन के हर डिब्बों पर लिखे  5 अंकों के नंबरों का मतलब क्या होता है .. आइये जाने

       हमारे देश में ट्रेनें यातायात का मुख्य साधन है। भारत में हर रोज लाखों लोग ट्रेन में सफर करने है यहां गरीब से लेकर अमिर तक बच्चों से लेकर बुड्ढों तक इस में हर वर्ग के लोग रेल के सफर का आनंद लेते हैं दरअसल रेल की यात्रा अपने आप में बहुत रोमांचक होती है।

आपने भी कभी ना कभी रेल में यात्रा की ही होगी लेकिन क्या आपने ट्रेन पर लिखी कुछ जानकारियां को नोटिस किया है, आपको बता दें कि सभी ट्रेनों पर कई सारी महत्वपूर्ण जानकारियां लिखी होती हैं जो बहुत काम की होती हैं लेकिन इन पर लोग बहुत कम ध्यान देते हैं और इन से अभी तक बहुत लोग अंजान है। ट्रेन के सफर के दौरान आपने देखा होगा कि हर रेल पर 5 नंबर लिखे होते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इन नंबरों के लिखने के पीछे क्या कारण है, दरअसल ये नंबर एक बहुत ही खास वजह से लिखे जाते हैं जिनसे हम उस ट्रेन के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। आज हम आपको ट्रेन पर लिखें जाने वाले इन्हीं नंबरों के बारे में बताने जा रहे हैं तो आईये जानते हैं।

जो ट्रेन 0 नंबर से शुरू होती है वह ट्रेन स्पेशल होती है। दरअसल यह ट्रेन किसी खास मौके या किसी बड़े त्यौहार जैसे होली या दिवाली के समय चलाई जाती है। इसके अलावा किसी पूजा स्थल पर श्रद्धालुओं को लाने ले जाने के लिए ये ट्रेन चलती हैं। जो ट्रेन 1 नंबर से शुरू होती है वह लम्बे रूट के लिए चलाई जाती है, जो की एक्सप्रेस ट्रेन होती है और इसको छोटे स्टेशनों पर नहीं रोका जाता यह सिर्फ बड़े शहरों में रूकती है।

जो ट्रेन 2 नंबर से शुरू होती है वह भी लंबी दूरी की ट्रेन को दर्शाता है। इसलिए 1 और 2 नंबर से शुरू होने वाली दोनों ही ट्रेन लंबे रूट के लिए जानी जाती है जो ट्रेन 3 नंबर से शुरू होती है वह कोलकाता सब अर्बन ट्रेन के बारे में जानकारी देती है। 4 नबंर से शुरू होने वाली ट्रेनें चेन्नई, नई दिल्ली, सिकंदराबाद सहित जो अन्य मेट्रो सिटीज है उनको दर्शाती है।

नंबर 5 से शुरू होने वाली ट्रेन कन्वेंशनल कोच वाली पैसेंजर ट्रेन होती है। नंबर 6 वाली ट्रेनें मेमू ट्रेन होती है। नंबर 7 से शुरू होने वाली ट्रेन डूएमयू और रेलकार सर्विस के लिए होती है। नंबर 8 से शुरू होने वाली ट्रेनें हमें मौजूदा समय में आरक्षित स्थिति के बारे में जानकारी देती है। नंबर 9 से शुरू होने वाली ट्रेनें मुंबई क्षेत्र की सब-अर्बन ट्रेनों के बारे में बताती है।

तो आपको अब पता लग गया होगा की ट्रेनों पर ये नंबर क्यों लिखे होते हैं अगली बार आप जब कभी अपने परिवार या मित्रों के साथ ट्रेन में सफर करने के लिए जाएं तो आप इन नंबरों को देखकर आसानी से पता लगा सकेंगे की कौन सी ट्रेन किस से संबंधित हैं और अपने दोस्तों को भी इस बारे में बताकर उनके सामने स्मार्ट बन सकते हो। आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो कमेंट करके जरूर बताएं और शेयर भी जरूर करें ताकी और लोगों को भी इस बारे में पता लग सके।

मंगलवार, 27 नवंबर 2018

रसोई गैस की सब्सिडी राशि भुगतान मामले में होगा बदलाव

     रसोई गैस की बढ़ती कीमतों को देखते हुए गैस सब्सिडी की राशि मामले में सरकार ने लिया अहम फैसला

* सब्सिडी राशि खाते में जमा करने की व्यवस्था में बदलाव करने का सरकार ने लिया फैसला 



नई दिल्ली: रसोई गैस की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सरकार ने सब्सिडी की राशि खाते में जमा करने की व्यवस्था में बदलाव करने का फैसला किया है। सरकार ने यह फैसला कई ग्राहकों को एकमुश्त राशि चुकाने में आ रही दिक्कतों को देखकर लिया है।

अब उपभोक्ताओं को सब्सिडी की कीमत में ही गैस सिलिंडर मिलेगा और सब्सिडी की राशि का भुगतान सरकार ग्राहकों को करने  के बजाय सीधे पेट्रोलिम कंपनियों को करेगी।

जानकारी के अनुसार पेट्रोलियम मंत्रालय गैस सिलिंडर की बढ़ती कीमतों को देखते हुए सब्सिडी देने के लिए जल्द नया तरीका अपनाने की तैयारी में है। इसके लिए गैस सब्सिडी का नया सॉफ्टवेर बनाया जा रहा है। इसके तहत गैस उपभोक्ताओं को सिलिंडर की सिर्फ सब्सिडी कीमत ही देनी होगी।

 वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि डीबीटी के नए तरीके में गैस बुक होने के बाद उपभोक्ता के मोबाइल पर एसएमएस के जरिए एक कोड भेजा जाएगा।  गैस सिलिंडर आने पर उपभोक्ता को वह कोड दिखाना होगा।  इसके बाद सरकार सब्सिडी की राशि सीधे कंपनी को भुगतान करेगी।  ऐसे में उपभोक्ता को सिर्फ गैस सिलिंडर के सब्सिडी के दाम ही चुकाने होंगे।

मालूम हो कि सरकार पहले ही उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को 14.2 किलो के सिलिंडर के बजाय सुविधानुसार पांच किलो के सिलिंडर बुक करने का विकल्प दिया है। इस बदलाव के कारण पहले जहां गैस उपभोक्ताओं को दिल्ली में 942.50 रूपए चुकाने होते थे। वहीं अब 507.42 रूपए चुकाने होंगे।

साथ ही डीबीटी के इस नए तरीके से गैस एजेंसियों और उपभोक्ता की मिलीभगत पर भी लगाम लगेगी। इसकी शुरुआत उज्ज्वला योजना के तहत की जाएगी।

शनिवार, 17 नवंबर 2018

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर चंद पंक्तियाँ पत्रकार के नाम

"पत्रकार" कहलाता हूँ..!! 

खबर  रोज बनाता हूँ..,
कलम और कैमरा से लोगों का हाल बताता हूँ..,,
गमगीन हूँ, हालात से लड़ता हूँ..,
दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा बनाता हूँ..,
दो लफ्ज़ लिखकर दुनिया बदलने की कोशिश करता हूँ..,,
फिर भी लोगों की नज़र में खटकता हूँ..,
शायद कुछ नही हूँ..,,
पर चार अक्षर का नाम हैं मेरा..,
"पत्रकार" कहलाता हूँ..!!

न कलम बिकती हैं न कलमकार बिकता है
खबरों के गुलदस्ते से अखबार बिकता है।।
क्यो सोंच की तंग गलियों से निकलते नही
सराफत के बाजार में हाल चाल बिकता है।।
दुनिया ने कभी पलट कर पूछा हो तो बताओ
बस कह कर रह जाते हो पत्रकार बिकता है।।
कितना जलकर देते हैं दुनिया भर की खबर
कलेजे वाला इंसान ही अखबार और टीवी चैनल में टिकता है.

राजेश कुमार
   "पत्रकार"
गिरिडीह।(झारखण्ड)

शुक्रवार, 16 नवंबर 2018

अक्षय फल देनेवाली है अक्षय नवमी

"अक्षय फल देनेवाली है अक्षय नवमी"

भारतीय सनातन पद्धति में पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महिलाओं द्वारा आँवला नवमी की पूजा को महत्वपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि यह पूजा व्यक्ति के समस्त पापों को दूर कर पुण्य फलदायी होती है। जिसके चलते कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को महिलाएं आँवले के पेड़ की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए प्रार्थना करती हैं।

आँवला नवमी को अक्षय नवमी के रूप में भी जाना जाता है। अक्षय नवमी को जप, दान, तर्पण, स्नानादि का अक्षय फल होता है | इस दिन आँवले के वृक्ष के पूजन का विशेष महत्व  है | पूजन में कर्पूर या घी के दीपक से आँवले के वृक्ष की आरती करनी चाहिए तथा निम्न मंत्र बोलते हुये इस वृक्ष की प्रदक्षिणा करने का भी विधान है ।

प्रदक्षिणा मंत्र :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च |तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ||

इसके बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पवित्र ब्राम्हणों व सच्चे साधक-भक्तों को भोजन कराके फिर स्वयं भी करना चाहिए | घर में आंवलें का वृक्ष न हो तो गमले में आँवले का पौधा लगा के अथवा किसी पवित्र, धार्मिक स्थान, आश्रम आदि में भी वृक्ष के नीचे पूजन कर सकते है | कई आश्रमों में आँवले के वृक्ष लगे हुये हैं | इस पुण्यस्थलों में जाकर भी आप भजन-पूजन का मंगलकारी लाभ ले सकते हैं |

इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। कहा जाता है कि आंवला भगवान विष्णु का पसंदीदा फल है। आंवले के वृक्ष में समस्त देवी-देवताओं का निवास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का विशेष महत्व होता है।


आँवला नवमी की कथा:-

पुत्र रत्न प्राप्ति के लिए आँवला पूजा के महत्व के विषय में प्रचलित कथा के अनुसार एक युग में किसी वैश्य की पत्नी को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी। अपनी पड़ोसन के कहे अनुसार उसने एक बच्चे की बलि भैरव देव को दे दी। इसका फल उसे उल्टा मिला। महिला कुष्ट की रोगी हो गई।

इसका वह पश्चाताप करने लगे और रोग मुक्त होने के लिए गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आँवला के वृक्ष की पूजा कर आँवले के सेवन करने की सलाह दी थी।

जिस पर महिला ने गंगा के बताए अनुसार इस तिथि को आँवला की पूजा कर आँवला ग्रहण किया था, और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे दिव्य शरीर व पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

व्रत की पूजा का विधान:-


नवमी के दिन महिलाएं सुबह से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में मुंह करके बैठती हैं।इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है।तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है।महिलाएं आँवले के वृक्ष की १०८ परिक्रमाएं करके ही भोजन करती हैं।



गुरुवार, 15 नवंबर 2018

अपना कोई नहीं

एक कविता :
              "अपना कोई नहीं"


"अपना कोई नहीं"

जो लेख लिखे हमारे कर्मों ने
उस लेख के आगे कोई नहीं।

केवल कर्म ही अपना संगी है
मुसीबत में अपना कोई नहीं।

सीता के रखवाले राम थे
जब हरण हुआ तब कोई नहीं।

द्रौपदी के पाँच पाण्डव थे
जब चीर हरा तब कोई नहीं।

दशरथ के चार दुलारे थे
जब प्राण तजे तब कोई नहीं।

रावण भी शक्तिशाली थे
जब लंका जली तब कोई नहीं।

श्री कृष्ण सुदर्शनधारी थे
जब तीर लगा तब कोई नही।

लक्ष्मण भी भारी योद्धा थे
जब शक्ति लगी तब कोई नहीं।

शरशैय्या पर पड़े पितामह
पीड़ा का सांझी कोई नहीं।

अभिमन्यु राजदुलारे थे
पर चक्रव्यूह में कोई नहीं।

सच यही है दुनिया वालो
सँसार में अपना कोई नहीं।

कुलदेवता और कुलदेवी की पुजा जरूरी क्यों ? जानिये।

कुलदेवता, कुलदेवी की पुजा करना क्यों जरूरी है ?


भारत में हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुलदेवता / कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है। प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं। जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया। 

विभिन्न कर्म करने के लिए, जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा। हर जाति वर्ग, किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य भी हैं। जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है। आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है।

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था, ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों - ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें।

कुलदेवी - देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है। सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है। अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है।

 इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी - माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोई भी आपके भले के लिये, आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी” होते है। खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना ही चाहिये।

ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी - देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते, वे अभी भी वही रहेंगे।

यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता - देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला - मुण्डन संस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है, या “जात” कहा दी जाती है, या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां) कहा होता है। हर गोत्र - धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी / कुलदेवता के सामने होते है और यही इनकी पहचान है।

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता / देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता / देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है। इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया।

कुल देवता / देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मक ऊर्जा, वायव्य बाधाओं का बेरोक - टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का क्षय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को इष्ट तक पहुचाते हैं, यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं, ऐसे में आप किसी भी इष्ट की आराधना करे वह उस इष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये, अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही इष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न इष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है।


 ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है। कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है, निर्वंशी हो रहे हों, आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।

कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है, यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है, शादी - विवाह, संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है, परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं, अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा - उन्नति होती रहे।

अक्सर कुलदेवी, देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है, इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है। जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना, विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे, क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है।

किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुलदेवी - देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश, दरिद्रता, बीमारिया, दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते हुवे भी देखा गया है।

ऐसे अनेक परिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम। एक और बात ध्यान देने योग्य है - किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी / देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।

कुलदेवी / कुलदेवता के पूजन की सरल विधि :-

1. जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री। पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये - ४ पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र, 10 सुपारिया, 8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये, पान के 10 पत्ते, घी का दीपक, कुंकुम, हल्दी, सिंदूर, मौली, पांच प्रकार की मिठाई, पूरी, हलवा, खीर, भिगोया चना, बताशा, कपूर, जनेऊ, पंचमेवा।

2. ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं। जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं।

3. बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं, हल्दी - रोली चढ़ा सकते हैं, यहाँ जनेऊ चढ़ाएं, जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए।

4. पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें। साथ ही घर में बनी पूरी - हलवा - खीर इन्हें अर्पित करें।

5. ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें, बाहरी को न दें।

6. इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं, किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें।

7, सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता / कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता। इसलिए उन्हें इससे अलग ही रखना चाहिये।

विशेष दिन और त्यौहार पर शुद्ध लाल कपड़े के आसान पर कुलदेवी / कुलदेवता का चित्र स्थापित करके घी या तेल का दीपक लगाकर गूगल की धुप देकर घी या तेल से हवन करकर चूरमा बाटी का भोग लगाना चाहिए, अगरबत्ती, नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर-फूल आदि श्रद्धानुसार।

नवरात्री में पूजा अठवाई के साथ परम्परानुसार करनी चाहिए।

पितृ देवता के पूजन की सरल विधि :-

शुद्ध सफेद कपड़े के आसान पर पितृ देवता का चित्र स्थापित करके, घी का दीपक लगाकर गूगल धुप देकर, घी से हवन करकर चावल की सेनक या चावल की खीर - पूड़ी का भोग लगाना चाहिए। अगरबत्ती , नारियल, सतबनी मिठाई, मखाने दाने, इत्र, हर - फूल आदि श्रद्धानुसार।

* चावल की सेनक : चावल को उबाल पका लेवे फिर उसमे घी और शक्कर मिला ले।

* अठवाई : दो पूड़ी के साथ एक मीठा पुआ और उस पर सूजी का हलवा, इस प्रकार दो जोड़े कुल मिलाकर ४ पूड़ी ; २ मीठा पुआ और थोड़ा सूजी का हलवा ।

कुलदेवी / कुलदेवता को नहीं पूजने, नही मानने के दुष्प्रभाव, परिणाम :- कुलदेवता या कुलदेवी का हमारे जीवन में बहुत महत्व होता है। इनकी पूजा आदिकाल से चलती आ रही है, इनके आशिर्वाद के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है। यही वो देव या देवी है जो कुल की रक्षा के लिए हमेशा सुरक्षा घेरा बनाये रखती है।

आपकी पूजा पाठ, व्रत कथा जो भी आप धार्मिक कार्य करते है उनको वो आपके इष्ट तक पहुँचाते है। इनकी कृपा से ही कुल वंश की प्रगति होती है। लेकिन आज के आधुनिक युग में लोगो को ये ही नहीं पता की हमारे कुलदेव या देवी कौन है। जिसका परिणाम हम आज भुगत रहे हैं।

आज हमें यह पता ही नहीं चल रहा की हम सब पर इतनी मुसीबते आ क्यों रहे है ? बहुत से ऐसे लोग भी है जो बहुत पूजा पाठ करते है, बहुत धार्मिक है फिर भी उसके परिवार में सुख शांति नहीं है।

बेटा बेरोजगार होता है बहुत पढने - लिखने के बाद भी पिता पुत्र में लड़ाई होती रहती है, जो धन आता है घर मे पता ही नहीं चलता कौन से रास्ते निकल जाता है। पहले बेटे - बेटी की शादी नहीं होती, शादी किसी तरह हो भी गई तो संतान नहीं होती। ये संकेत है की आपके कुलदेव या देवी आपसे रुष्ट है।

आपके ऊपर से सुरक्षा चक्र हट चूका है, जिसके कारण नकारात्मक शक्तियां आप पर हावी हो जाती है। फिर चाहे आप कितना पूजा - पाठ करवा लो कोइ लाभ नहीं होगा।

लेकिन आधुनिक लोग इन बातो को नहीं मानते। आँखे बन्द कर लेने से रात नहीं हो जाती। सत्य तो सत्य ही रहेगा। जो हमारे बुजुर्ग लोग कह गए वो सत्य है, भले ही वो आप सबकी तरह अंग्रेजी स्कूल में ना पढ़े हो लेकिन समझ उनमे आपसे ज्यादा थी। उनके जैसे संस्कार आज के बच्चों में नहीं मिलेंगे।

आपसे निवेदन है की अपने कुलदेव या कुलदेवी का पता लगाऐ और उनकी शरण में जाये। अपनी भूल की क्षमा माँगे और नित्य कुलदेवता / कुलदेवी की भी पूजा करे।


बुधवार, 14 नवंबर 2018

झारखण्ड स्थापना के पूर्ण हुए 19 साल

एक कविता :  "जय झारखण्ड बोलो"



स्थापना के हो गये 19 साल
फैला चहुंओर है भव्य जंजाल
मिटाओ माया, मोह जाल ।
दुर करो हर जंजाल -
सबको खुशहाल बनाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

यहाँ सुख के हैं सभी साधन 
फिर भी क्यों है क्रन्दन ।
क्यों भ्रष्टाचार और शोषण है, 
इन्हे अब मिटाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

बन गया है झारखंड राज्य, 
करना है विकास आज ।
मिले हर हाथ को कार्य ।।
यह संकल्प लेकर चलो, 
सबको साथ लेकर चलो ।।

बन जाए यह स्वर्ग जैसे, 
लाभ मिले हर वर्ग को कैसे? 
हर चीज है मिले सुलभ वैसे, 
हर प्रयास लेकर चलो ।
जय झारखंड बोलो ।।

झारखण्डीयों को जगी थी आश 
अब भागेंगे दुख, था विश्वास 
दुखी वर्ग हो रहे है निराश 
अब तो आश जगाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो ।

आपस में न कोई दंगा हो, 
ऐसा कोई न फण्दा हो ।
धन्धा किसी का न मन्दा हो, 
सबको साथ मिलाते चलो ।।
जय झारखंड बोलो ।

सोमवार, 12 नवंबर 2018

लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू, खरना आज

लोकआस्था का महापर्व छठ शुरू ,खरना आज

दीपोत्सव के बाद घर से घाट तक छठ महापर्व का माहौल बन रहा है। “पहिले-पहिल हम कइली छठ मइया बरत तोहार, करिह क्षमा छठी मइया भूल-चूक गलती हमार..” जैसे पारंपरिक गीत गुनगुनाते हुए घर की महिलाएं छठ मइया का प्रसाद तैयार करने में जुट गई हैं। प्रसाद की सामग्री को धुलकर सुखाने और साफ-सुथरा करने का कार्य शुरू हो गया है। रविवार से यह पर्व शुरू हो गया।

नहाय-खाय से हुई शुरुआत

महापर्व की शुरूआत 11 नंवबर (रविवार) को नहाय-खाय से हो गयी। इसे ‘कद्दू भात’ भी कहते हैं। इस दिन बिना मसाले के कद्दू की सब्जी का सेवन किया जाएगा। माना जाता है कि कद्दू में 96 प्रतिशत पानी होता है। इसलिए तन-मन निर्मल रहता है। पहले दिन महिलाएं सिर धोकर स्नान करती है। इससे पूर्व नाखून काटकर शरीर को पूरी तरह से स्वच्छ बनाएंगी। भोजन भी इतना हल्का रहेगा कि शरीर पूरी तरह से शुद्ध रहे।

दूसरे दिन 12 नवंबर (सोमवार) को खरना होगा। इस दिन व्रती निर्जला व्रत उपवास रहेंगी। इसे ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। शाम को सूखी रोटी और गुड़ की खीर व केला अर्पित कर छठ मइया की पूजा प्रारंभ होगी। तीन दिन तक व्रती कठिन साधना करेंगे। बिस्तर के बजाय चटाई पर सोएंगे। व्रती महिलाएं उसी कमरे में सोएंगी जहां अर्घ्य के पकवान बनाए जाते हैं। खास कर स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाएगा।

13 नवंबर को तीसरे दिन सायं कालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। व्रत करने वाले सूर्य डूबने से पहले घाट पर पहुंच जाएंगे। शुभ मुहूर्त में जल में खड़े होकर अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देंगे। माना जाता है कि डूबते सूर्य की लाल किरणें अर्घ्य के जल से छनकर तन-मन और बुद्धि को तेज कर देती हैं।

14 नवंबर को व्रती महिलाएं व पुरुष उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए भोर में उसी जगह एकत्र होंगे जहां डूबते सूर्य के लिए पूजन किया था। महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य देने से पूर्व गंगा जल का आचमन करेंगी। पुरे विधि विधान से अर्घ्य देकर सूर्यदेव से सुख-समृद्धि का आशीष मांगेगी। पूजन के बाद घाट पर प्रसाद बांटकर पारण किया जाएगा।


पूजन मुहूर्त

जानकारों के अनुसार 11 नवंबर को नहाय खाय के दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। 13 नवंबर को सांयकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। इस दिन त्रय पुष्कर योग रहेगा। इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी।

पूजा विधि

यह पर्व चार दिनों तक चलता है

1. इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है।

2. कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को “नहाये-खाए” के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है। इस दिन से स्वच्छता का खासा ध्यान रखा जाता है। इस दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है।

3. दूसरे दिन को “लोहंडा/खरना” कहा जाता है। इस दिन उपवास रखकर शाम को मीठे खीर का सेवन किया जाता है। खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता।

4. तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान “ठेकुवा” और मौसमी फल आदि अस्त होते सूर्य देव को को चढ़ाया जाता है। अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है।

5. चौथे दिन बिल्कुल उगते हुए सूर्य को अंतिम अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है।

6. इस बार पहला अर्घ्य 13 नवंबर को संध्या काल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 14 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा।


छठ महापर्व की तिथि

नहाय खाय – रविवार 11 नवंबर

खरना – दिन सोमवार 12 नवंबर

सायं कालीन अर्घ्य – दिन मंगलवार 13 नवंबर (सूर्यास्त : 5:26 बजे)

प्रात:कालीन अर्घ्य – बुधवार 14 नवंबर (सूर्योदय : 6:32 बजे)

यह है मान्यता

छठ पूजा के बारे में कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी। महर्षि कश्यप के कहने पर इस दंपत्ती ने यज्ञ किया। जिससे पुत्र की प्राप्ति हुई। दुर्भाग्य से नवजात मरा हुआ पैदा हुआ। राजा-रानी प्राण ज्याग्ने के लिए आतुर हुए तो ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं। इसलिए षष्ठी कहलाती हूं। उनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होगी। राजा-रानी ने षष्ठी व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।


द्रौपदी ने भी की थी छठ पूजा

मान्यता है कि पांडव जुए में जब राजपाठ हार गए तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था, जिससे राजपाठ वापस मिला था। माना जाता है कि महाभारत काल में छठ पूजा की शुरूआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। सूर्य की कृपा से वह महान योद्धा बने।

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

पांच पर्वों का पर्व है दीपावली

"पाँच पर्वों का पर्व है दीपावली"



दीप और अवली से मिलकर बना है शब्द दीपावली, जिसका अर्थ है दीपकों की पंक्ति । संपूर्ण भारतवर्ष में कार्तिक मास में कृष्‍ण पक्ष की अमावस्‍या को दीपावली का त्‍यौहार मनाया जाता है ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सनातन धर्म को मानने वालों द्वारा दीपावली मनाने के कारण-

पहला तो यह कि देवी लक्ष्मी जी कार्तिक मॉस की अमावस्या के दिन ही समुद्र मंथन में से अवतार लेकर प्रकट हुई थी। दूसरा यह कि चौदह वर्षो के वनवास के दौरान भगवान श्री राम, लंका के अत्‍याचारी राजा रावण का वध करके इसी दिन पुन: अयोध्‍या को लौटे और उनके आने की खुशी में पूरे अयोध्‍या में घी के दीए जलाये गए | सम्‍पूर्ण अयोध्‍या को जगमगा दिया गया । उसी दिन से कार्तिक मास की अमावस्‍या को दीवाली के रूप में मनाया जाने लगा।

तीसरी कथा भक्त प्रहलाद से सम्बंधित है | मान्यता है कि दीपावली के ही दिन नृसिंह रूप में विष्‍णु भगवान ने प्रकट होकर हिरणकशिपु को महल के प्रवेश द्वार पर जो न तो घर के भीतर था और न हीं घर के बाहर, गोधूलि बेला में जो न तो दिन था और ना ही रात, नरसिंह रूप में जो आधा मनुष्‍य था और आधा पशु, अर्थात जो न तो पूरी तरह से मनुष्‍य था और न ही पशु हिरणककिशपु को अपनी जंघा पर लिटाकर, जो न तो धरती में था और न ही आसमान में, अपने तीखे लंबे तेज नाखूनों से मारा था जो न तो अस्‍त्र था, न ही कोई शस्‍त्र ।

जिस दिन भगवान विष्‍णु ने हिरणकशिपु का वध किया था, उस दिन को दीवाली के त्‍यौहार के रूप में मनाया जाता है।

इसी प्रकार सिक्ख धर्म के अनुयाई दीपावली इस कारण मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन उनके छठवें गुरू हरगोबिन्‍द सिंह जी जेल से रिहा हुए थे। इसी तरह से जैन धर्म के लोग इस त्‍यौहार को इसलिए मनाते हैं क्‍योंकि इसी दिन जैन संप्रदाय के चौबीसवें तीर्थकार महावीर स्‍वामी का निर्वाण हुआ था। इस दिन मंदिरों में निर्वाण लाडू चढाया जाता है | स्वामी दयानंद सरस्वती का निर्वाण दिवस होने से आर्यसमाजियों के लिए भी दीपावली महत्व पूर्ण है |

हिन्‍दु धर्म में दीपावली को पंच पर्वो का त्‍योहार कहा जाता है जो धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज पर समाप्‍त होते हैं। यानी पंच पर्वों के अन्‍तर्गत धनतेरस, नरक चतुर्थी, दिपावली, राम-श्‍याम अथवा गोवर्धन पूजन और भैया दूज सम्मिलित हैं। पूरे भारत सहित सम्‍पूर्ण दुनियां में जहां कहीं भी हिन्‍दू, जैन, सिख, आर्य समाज और प्रवासी भारतीय हैं, वे सभी इस दिपावली के त्‍यौहार को पूर्ण उत्‍साह के साथ मनाते हैं क्‍योकि इस त्‍यौहार का न केवल धार्मि‍क महत्‍व है बल्कि व्‍यापारिक महत्‍व भी है।

वस्तुतः दीपावली एक दिन का नहीं बल्कि पांच दिन का पर्व है |

पंच पर्व -
धनतेरस~
इस पर्व पर लोग अपने घरों में यथासम्‍भव सोने का सामान खरीदकर लाते हैं और मान्‍यता ये होती है कि इस दिन सोना खरीदने से उसमें काफी वृद्धि होती है। लेकिन आज के दिन का अपना अलग ही महत्‍व है क्‍योंकि आज के दिन ही भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश व आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे और इसी कारण से भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है।

इस दिन तुलसी के पौधों के पास व घर के द्वार पर दीपक जलाया जाना शुरू करते हैं, और ये दिया अगले 5 दिनों तक हर रोज जलाया जाता है।

नरक चतुर्दशी~
नरक चतुर्दशी को कहीं-कहीं छोटी दिपावली भी कहा जाता है क्‍योंकि ये दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है और इस दिन मूल रूप से यम पूजा हेतु दीपक जलाए जाते हैं, जिसे दीप दान कहा जाता है।

मान्‍यता ये है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए। इस दिन को यम पूजा के रूप में भी मनाया जाता है, जो कि घर से अकाल मृत्‍यु की सम्‍भावना को समाप्‍त करता है। यम पूजा के रूप में अपने घर कि चौखट पर चावल के ढेरी बना कर उस पर सरसो के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से अकाल मृत्‍यु नही होती है। साथ ही इस दिन गायों के सींग को रंगकर उन्हें घास और अन्न देकर प्रदक्षिणा की जाती है।

दीपावली~
भारतीय नव वर्ष की शुरूआत इसी दिन से मानी जाती है इसलिए व्यापारी बन्‍धु अपने नए लेखाशास्‍त्र यानी नये बही-खाते इसी दिन से प्रारम्भ करते हैं और अपनी दुकानों, फैक्ट्री, दफ़्तर आदि में भी लक्ष्मी-पूजन का आयोजन करते हैं

साथ ही इसी नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही गलियों में नमक बिकने आता है, जिसे “बरकत” के नाम से पुकारते हैं और वह नमक सभी लोग खरीदा करते हैं क्‍योंकि मान्‍यता ये है कि ये नमक खरीदने से सम्‍पूर्ण वर्ष पर्यन्‍त धन-समृद्धि की वृद्धि होती रहती है।

दीपावली के दिन सभी घरों में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है और हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की इस रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं तथा लोगों को वैभव की आशीष देती है।

भगवान गणपति प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए सर्वप्रथम पंच विधि से उनकी पूजा-आराधना करने के बाद माता लक्ष्‍मी जी की षोड़श विधि से पूजा-अर्चना करने से घर में कभी धन-धान्‍य की कमी नहीं होती।

वृषभ लग्‍न व सिंह लग्‍न के मुहूर्त में ही लक्ष्‍मी पूजन किया जाना चाहिए क्‍योंकि ये दोनों लग्‍न, भारतीय ज्‍योतिष शास्‍त्र के अनुसार स्थिर लग्‍न माने जाते हैं इसलिए स्थिर लग्‍न में लक्ष्‍मी पूजन करने से घर में स्थिर लक्ष्‍मी का वास होता है।

दीपावली हमेंशा अमावश्‍या की रात्रि को ही मनाई जाती है, अतः यह दिन तंत्र-मंत्र सिद्धि की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जाता है । नवरात्रि के ही समान दीपावली की रात्रि को भी लोग सिद्धि प्राप्त करने हेतु पूजापाठ करते हैं ।

ये भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने राजा बलि को पाताल लोक का स्वामी बनाया था और इन्द्र ने स्वर्ग को सुरक्षित जानकर प्रसन्नतापूर्वक दिपावली मनाई थी।

गोवर्धन पूजा~
दीपावली के अगले दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर भगवान इन्द्र को पराजित कर उनके गर्व का नाश किया था तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा-अर्चना कर गायों का पूजन किया था। इसलिए दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा-अर्चना करते हुए भगवान कृष्‍ण को याद किया जाता है।

इसी दिन भगवान राम के वनवास से लौटने के बाद उनके दर्शन के लिए अयोध्‍यावासी उनसे मिलने आये थे और अपने प्रभु को पुन: अयोध्‍या आने के संदर्भ में एक-दुसरे को बधाई दी थी, इस कारण से इस दिन को रामा-श्‍यामा का दिन भी कहा जाता है और इस दिन सभी लोग अपने परिचित लोगों से मिलने उनके घर जाते हैं व पुराने पड़ चुके रिश्‍तों में फिर से जान डालते हैं।

भाईदूज/ चित्रगुप्त पूजा-

दिपावली के तीसरे दिन “भाईदूज”/"चित्रगुप्त पूजा "  का त्यौहार मनाया जाता है और इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर तिलक लगाकर उसकी सलामती की प्रार्थना करती हैं। यह त्यौहार उत्तर भारत में भी बड़ी आस्था से मनाया जाता है तथा इस त्यौहार को “यम द्वितीया” के नाम से भी जाना जाता है।

कहा जाता है कि यम की बहन यमुना देवी ने इसी दिन यम को तिलक लगा कर यम का पूजन किया था। इसीलिए इस दिन को यम द्वितिया के नाम से भी जाना जाता है।

इसी दिन सम्पूर्ण जगत के कर्मों के लेखा-जोखा रखने वाले भगवान श्री चित्रगुप्त ब्रम्हा जी के हज़ारों वर्षों की कठिन तपस्या के बाद उनकी ही काया से हाथों में कलम,दवात,कागज और कृपाण लेकर एक दिव्य पुरुष के रूप में अवतरित हुये थे। जिन्होंने यमपुरी में अपना धाम बनाया और सभी मानवों के कर्मो का आंकलन शुरू किया। उन्हीं के द्वारा की गयी गणना के आलोक में मरणोंपरान्त मानवों को स्वर्ग और नरक की प्राप्ति होती है।इसलिये इस दिन भगवान "श्री चित्रगुप्त की "पुजा अर्चना की जाती है। ताकि मानव के पापों का प्रायश्चित हो और उनके सतकर्मों की ही गणना हो सके।