समाज में घटित घटनाओं, दैनिक समाचारों, फ़िल्म और नाट्य जगत से जुडी खबरों के अलावे साहित्यिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, सामाजिक व ज्योतिषीय विचारों, कविता, कहानी, फीचर लेख आलेख का संगम है यह "वेब न्यूज पोर्टल"। आशा ही नही अपितु पूर्ण विश्वास है कि आप सबों का भरपूर सहयोग मुझे प्राप्त होगा। आपका सुझाव व मार्गदर्शन भी अपेक्षित है।
रविवार, 9 सितंबर 2018
यह खबर नही देखा तो क्या देखा

यह गाना नही सुना तो क्या सुना

सोमवार, 19 जून 2017
भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" दिखेगा राहुल और रेशमा की लाजवाब कैमेस्ट्री
भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" में दिखेगा राहुल और रेशमा की लाजवाब कैमेस्ट्री
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रेशमा शेख |
मुम्बई की ब्लू भर्ज फिल्म्स के बैनर तले बनी भोजपुरी फ़िल्म "प्लेटफार्म नम्बर-टू" एक पारिवारिक फ़िल्म है। इस फ़िल्म में नवोदित अभिनेता राहुल सिंह और नवोदित अभिनेत्री रेशमा शेख की कैमेस्ट्री दर्शकों को काफी पसंद आएगी। फ़िल्म में इन दोनों के बीच का रोमांस और तकरार दर्शकों को पूरी तरह बांधे रखने में सफल होगी। इन दोनों नवोदित कलाकारों की जोड़ी इसके पूर्व कई शार्ट फिल्मों में काफी धूम मचाया है। जिसे लाखों दर्शकों ने सराहा है। "प्लेटफार्म नम्बर-टू" के जरिये इन दोनों की धमाकेदार इंट्री भोजपुरी फिल्मों की दुनियां में होने वाली है। जंहा निश्चित ही दर्शकों को इनकी जोड़ी पसंद आएगी। इस फ़िल्म में दर्शकों को जंहा राहुल और रेशमा के बीच का प्यार देखने को मिलेगा वंही आईटम क्वीन सीमा सिंह की बलखाती और लचकती कमर के ठुमके दर्शकों को झूमने पर विवस कर देगा
फ़िल्म के अन्य कलाकारों में सिने जगत के जाने माने हास्य कलाकार केके गोस्वामी, थियेटर जगत से लम्बे समय तक जुड़े रहे राजेश "अभागा" , डॉ राबिन्स सिन्हा, डॉ जयन्त जलद, मुन्ना बिहारी, अखिलेश चौरसिया, ललित भंडारी, बिरेन्द्रराम, महेश अमन, छोटेलाल,नागेश्वर राम ,श्रवण कुमार,राकेश राज ,हसन, मुस्कान शास्त्री, कंचन वर्मा, रूबी राज, स्नेहा अमृत, स्वाति स्नेहा, आदि शामिल है।
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रेशमा शेख |
झारखंड प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों सहित अन्य प्रदेशों के कई आकर्षक लोकेसनों पर फिल्माये गये इस भोजपुरी फ़िल्म में थियेटर जगत से लम्बे समय तक जुड़े रहे कलाकारों की एक टोली शामिल है। जो दर्शकों को बांधे रखने में कोई कोर कसर नही उठा रखेंगे।
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राहुल सिंह व रेशमा शेख |
डॉ राबिन्स सिन्हा के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म "प्लेटफ़ार्म नम्बर-टू" की प्रोड्यूसर डॉ नजमा शेख हैं। फ़िल्म की कथा,पटकथा और संवाद राहुल सिंह की है जबकि सिनेमोटोग्राफी/कैमरा अधीर राज ने किया है। फ़िल्म के गानो को सिने जगत के जाने माने गायक कलाकारों के साथ बिहार एवं झारखण्ड के स्थानीय उभरते कलाकारों ने गाये हैं ,जो काफी कर्णप्रिय हैं।
समाज की एक बहुत ही ज्वलन्त समस्या पर आधारित बनी इस फ़िल्म में एक्शन भी है तो रोमान्स भी। थ्रील भी है तो तो सस्पेंस भी। मार-धाड़,एक्शन,थ्रील,सस्पेंस और रोमांस के समायोजन के साथ बनी यह भोजपुरी फ़िल्म पूरी तरह सामाजिक है। जिसे माँ -बहन-बहु-बेटी समेत परिवार के अन्य सभी छोटे बड़े सदस्यों के साथ मिल-बैठकर देखा जा सकता है।
इस फ़िल्म में फूहड़ता का दूर-दूर तक नामोनिशान नही है।
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"प्लेटफार्म नम्बर -टू" |

गुरुवार, 14 जनवरी 2016
प्रेरक कहानी :- "बुराई का फल"
कहानी :-
"बुराई का फल"
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ....
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था .... उसी समय एक
चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ....
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने
फन से ज़हर निकाला .... तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था
उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बुंदे खाने में गिर गई ....
किसी को कुछ पता नहीं चला .... फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने
आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते हीं मौत हो गयी .. अब जब राजा
को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला .... तो ब्रम्ह-हत्या होने से उसे
बहुत दुख हुआ .... ....
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया ..
कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय ....
वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए ....
और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ....
तो उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया .... पर रास्ता बताने के
साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि देखो भाई ....
" जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में
जहर देकर मार देता है ...."
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे .... उसी समय यमराज ने
फैसला (decision) ले लिया .... कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल ....
इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ....
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों .... ?? जब कि उन मृत ब्राह्मणों
की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नही थी ....
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो .... जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं ....
तब उसे बड़ा आनंद मिलता हैं .... पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना
तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला ....
ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ....
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस
महिला को जरूर आनंद मिला .... इसलिये राजा के उस अनजाने
पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ....
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति ....
जब किसी दुसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं ....
तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा .... उस बुराई करने वाले के खाते
में भी डाल दिया जाता हैं ....
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं .... कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप
नही किया .... फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नही .... बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण ....
उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं .... जिनको यमराज बुराई करते ही
हमारे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लो .... " कि किसी के भी पाप-कर्मों का
बखान बुरे भाव से कभी नही करना " .... " यानी किसी की भी बुराई या
चुगली कभी नही करनी हैं " .... लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं ....
" तो हमें ही इसका फल जरूर भुगतना पड़ेगा !
"बुराई का फल"
एक राजा ब्राह्मणों को लंगर में महल के आँगन में भोजन करा रहा था ....
राजा का रसोईया खुले आँगन में भोजन पका रहा था .... उसी समय एक
चील अपने पंजे में एक जिंदा साँप को लेकर राजा के महल के उपर से गुजरी ....
तब पँजों में दबे साँप ने अपनी आत्म-रक्षा में चील से बचने के लिए अपने
फन से ज़हर निकाला .... तब रसोईया जो लंगर ब्राह्मणो के लिए पका रहा था
उस लंगर में साँप के मुख से निकली जहर की कुछ बुंदे खाने में गिर गई ....
किसी को कुछ पता नहीं चला .... फल-स्वरूप वह ब्राह्मण जो भोजन करने
आये थे उन सब की जहरीला खाना खाते हीं मौत हो गयी .. अब जब राजा
को सारे ब्राह्मणों की मृत्यु का पता चला .... तो ब्रम्ह-हत्या होने से उसे
बहुत दुख हुआ .... ....
ऐसे में अब ऊपर बैठे यमराज के लिए भी यह फैसला लेना मुश्किल हो गया ..
कि इस पाप-कर्म का फल किसके खाते में जायेगा .... ???
(1) राजा .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना जहरीला हो गया है ....
या
(2 ) रसोईया .... जिसको पता ही नहीं था कि खाना बनाते समय ....
वह जहरीला हो गया है ....
या
(3) वह चील .... जो जहरीला साँप लिए राजा के उपर से गुजरी ....
या
(4) वह साँप .... जिसने अपनी आत्म-रक्षा में ज़हर निकाला ....
बहुत दिनों तक यह मामला यमराज की फाईल में अटका (Pending) रहा ....
फिर कुछ समय बाद कुछ ब्राह्मण राजा से मिलने उस राज्य मे आए ....
और उन्होंने किसी महिला से महल का रास्ता पूछा ....
तो उस महिला ने महल का रास्ता तो बता दिया .... पर रास्ता बताने के
साथ-साथ ब्राह्मणों से ये भी कह दिया कि देखो भाई ....
" जरा ध्यान रखना .... वह राजा आप जैसे ब्राह्मणों को खाने में
जहर देकर मार देता है ...."
बस जैसे ही उस महिला ने ये शब्द कहे .... उसी समय यमराज ने
फैसला (decision) ले लिया .... कि उन मृत ब्राह्मणों की मृत्यु के पाप का फल ....
इस महिला के खाते में जाएगा और इसे उस पाप का फल भुगतना होगा ....
यमराज के दूतों ने पूछा - प्रभु ऐसा क्यों .... ?? जब कि उन मृत ब्राह्मणों
की हत्या में उस महिला की कोई भूमिका (role) भी नही थी ....
तब यमराज ने कहा - कि भाई देखो .... जब कोई व्यक्ति पाप करता हैं ....
तब उसे बड़ा आनंद मिलता हैं .... पर उन मृत ब्राह्मणों की हत्या से ना
तो राजा को आनंद मिला .... ना ही उस रसोइया को आनंद मिला ....
ना ही उस साँप को आनंद मिला .... और ना ही उस चील को आनंद मिला ....
पर उस पाप-कर्म की घटना का बुराई करने के भाव से बखान कर उस
महिला को जरूर आनंद मिला .... इसलिये राजा के उस अनजाने
पाप-कर्म का फल अब इस महिला के खाते में जायेगा ....
बस इसी घटना के तहत आज तक जब भी कोई व्यक्ति ....
जब किसी दुसरे के पाप-कर्म का बखान बुरे भाव से (बुराई) करता हैं ....
तब उस व्यक्ति के पापों का हिस्सा .... उस बुराई करने वाले के खाते
में भी डाल दिया जाता हैं ....
अक्सर हम जीवन में सोचते हैं .... कि हमने जीवन में ऐसा कोई पाप
नही किया .... फिर भी हमारे जीवन में इतना कष्ट क्यों आया .... ??
ये कष्ट और कहीं से नही .... बल्कि लोगों की बुराई करने के कारण ....
उनके पाप-कर्मो से आया होता हैं .... जिनको यमराज बुराई करते ही
हमारे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं ....
इसलिये आज से ही संकल्प कर लो .... " कि किसी के भी पाप-कर्मों का
बखान बुरे भाव से कभी नही करना " .... " यानी किसी की भी बुराई या
चुगली कभी नही करनी हैं " .... लेकिन यदि फिर भी हम ऐसा करते हैं ....
" तो हमें ही इसका फल जरूर भुगतना पड़ेगा !

बुधवार, 23 दिसंबर 2015
प्रेरक प्रसंग:- " घटना "
प्रेरक प्रसंग:-
" घटना "
श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा -
सिय राम मय सब जग जानी ;
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी !
अर्थात
सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये !
यह लिखने के उपरांत
तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे
तो
किसी बच्चे ने आवाज़
दी -महात्मा जी उधर से मत जाओ
बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है !
तुलसीदास जी ने विचार किया हू !
कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है !
अभी तो लिखा था कि
सबमे राम हैं ;उस बैल को प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा !
पर
जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े !
किसी तरह से वे वापिस वहा जा पहुचे जहा श्री रामचरितमानस लिख रहे थे
सीधा चौपाई पकड़ी
और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि
श्री हनुमान जी ने प्रगट हो कर कहा -तुलसीदास जी ये
क्या कर रहे हो ?
तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा -यह चौपाई गलत है !
और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह
सुनाया !
हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा -
चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को
देखा पर बच्चे में क्यों नहीं ?
आखिर उसमे भी तो भगवान थे ;वे तो आपको रोक रहे थे पर आप
ही नहीं माने !
ऐसे ही छोटी-2 घटनाये हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले
कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते !
" घटना "
श्री रामचरितमानस लिखने के दौरान तुलसीदास जी ने लिखा -
सिय राम मय सब जग जानी ;
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी !
अर्थात
सब में राम हैं और हमें उनको हाथ जोड़ कर प्रणाम करना चाहिये !
यह लिखने के उपरांत
तुलसीदास जी जब अपने गाँव की तरफ जा रहे थे
तो
किसी बच्चे ने आवाज़
दी -महात्मा जी उधर से मत जाओ
बैल गुस्से में है और आपने लाल वस्त्र भी पहन रखा है !
तुलसीदास जी ने विचार किया हू !
कल का बच्चा हमें उपदेश दे रहा है !
अभी तो लिखा था कि
सबमे राम हैं ;उस बैल को प्रणाम करूगा और चला जाऊंगा !
पर
जैसे ही वे आगे बढे बैल ने उन्हें मारा और वे गिर पड़े !
किसी तरह से वे वापिस वहा जा पहुचे जहा श्री रामचरितमानस लिख रहे थे
सीधा चौपाई पकड़ी
और जैसे ही उसे फाड़ने जा रहे थे कि
श्री हनुमान जी ने प्रगट हो कर कहा -तुलसीदास जी ये
क्या कर रहे हो ?
तुलसीदास जी ने क्रोधपूर्वक कहा -यह चौपाई गलत है !
और उन्होंने सारा वृत्तान्त कह
सुनाया !
हनुमान जी ने मुस्करा कर कहा -
चौपाई तो एकदम सही है आपने बैल में तो भगवान को
देखा पर बच्चे में क्यों नहीं ?
आखिर उसमे भी तो भगवान थे ;वे तो आपको रोक रहे थे पर आप
ही नहीं माने !
ऐसे ही छोटी-2 घटनाये हमें बड़ी घटनाओं का संकेत देती हैं उन पर विचार कर आगे बढ़ने वाले
कभी बड़ी घटनाओं का शिकार नहीं होते !

प्रसंग: " Happy New Year....आखिर कब ?"
प्रसंग :-
" Happy New Year आखिर कब....?"
HAPPY NEW YEAR आखिर कब.. ..?
ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..
जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..
सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..
नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे
December बन गया ..
ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..
जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..
इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..
साल को 365 के बजाय 305 दिन
का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..
भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।
इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
अपना तारीख या दिन 12 बजे
रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??
तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।
चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..
इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..
जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..
कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेशब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..
हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं?
जय हिन्द!! जय भारत!!
" Happy New Year आखिर कब....?"
HAPPY NEW YEAR आखिर कब.. ..?
ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन ..
जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए है वो जरा इस बात पर विचार करिए ..
सितंबर, अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर क्रम से 7वाँ, 8वाँ, नौवाँ और दसवाँ महीना होना चाहिए जबकि ऐसा नहीं है .. ये क्रम से 9वाँ,10वाँ,11वां और
बारहवाँ महीना है .. हिन्दी में सात को सप्त, आठ को अष्ट कहा जाता है, इसे अग्रेज़ी में sept(सेप्ट) तथा oct(ओक्ट) कहा जाता है .. इसी से september तथा October बना ..
नवम्बर में तो सीधे-सीधे हिन्दी के "नव" को ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे
December बन गया ..
ऐसा इसलिए कि 1752 के पहले दिसंबर दसवाँ महीना ही हुआ करता था। इसका एक प्रमाण और है ..
जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है????
इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक है और mas यानि मास अर्थात महीना .. चूंकि दिसंबर दसवां महीना हुआ करता था इसलिए 25 दिसंबर दसवां महीना यानि X-mas से प्रचलित हो गया ..
इन सब बातों से ये निष्कर्ष निकलता है
की या तो अंग्रेज़ हमारे पंचांग के अनुसार ही चलते थे या तो उनका 12 के बजाय 10 महीना ही हुआ करता था ..
साल को 365 के बजाय 305 दिन
का रखना तो बहुत बड़ी मूर्खता है तो ज्यादा संभावना इसी बात की है कि प्राचीन काल में अंग्रेज़ भारतीयों के प्रभाव में थे इस कारण सब कुछ भारतीयों जैसा ही करते थे और इंगलैण्ड ही क्या पूरा विश्व ही भारतीयों के प्रभाव में था जिसका प्रमाण ये है कि नया साल भले ही वो 1 जनवरी को माना लें पर उनका नया बही-खाता 1 अप्रैल से शुरू होता है ..
लगभग पूरे विश्व में वित्त-वर्ष अप्रैल से लेकर मार्च तक होता है यानि मार्च में अंत और अप्रैल से शुरू..
भारतीय अप्रैल में अपना नया साल मनाते थे तो क्या ये इस बात का प्रमाण नहीं है कि पूरे विश्व को भारतीयों ने अपने अधीन रखा था।
इसका अन्य प्रमाण देखिए-अंग्रेज़
अपना तारीख या दिन 12 बजे
रात से बदल देते है .. दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है ??
तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है.. यानि की करीब 5-5.30 के आस-पास और
इस समय इंग्लैंड में समय 12 बजे के आस-पास का होता है।
चूंकि वो भारतीयों के प्रभाव में थे इसलिए वो अपना दिन भी भारतीयों के दिन से मिलाकर रखना चाहते थे ..
इसलिए उन लोगों ने रात के 12 बजे से ही दिन नया दिन और तारीख बदलने का नियम अपना लिया ..
जरा सोचिए वो लोग अब तक हमारे अधीन हैं, हमारा अनुसरण करते हैं,
और हम राजा होकर भी खुद अपने अनुचर का, अपने अनुसरणकर्ता का या सीधे-सीधी कहूँ तो अपने दास का ही हम दास बनने को बेताब हैं..
कितनी बड़ी विडम्बना है ये .. मैं ये नहीं कहूँगा कि आप 31 दिसंबर को रात के 12 बजने का बेशब्री से इंतजार ना करिए या 12 बजे नए साल की खुशी में दारू मत पीजिए या खस्सी-मुर्गा मत काटिए। मैं बस ये कहूँगा कि देखिए खुद को आप, पहचानिए अपने आपको ..
हम भारतीय गुरु हैं, सम्राट हैं किसी का अनुसरी नही करते है .. अंग्रेजों का दिया हुआ नया साल हमें नहीं चाहिये, जब सारे त्याहोर भारतीय संस्कृति के रीती रिवाजों के अनुसार ही मानते हैं तो नया साल क्यों नहीं?
जय हिन्द!! जय भारत!!

कविता : "नव वर्ष का आगाज"
कविता :-
" नव वर्ष का आगाज"
जनवरी मे आगाज होता है
नववर्ष का,
पति-पत्नी के बीच बिगुल
बज जाता है संघर्ष का!
मकर संक्रांति पर पत्नी
तिल का ताड बनाकर
लताडती है,
छब्बीस जनवरी को
पति की छाती पर
अपना झंडा गाड़ती है!
इसी बीच फ़रवरी आती है..
महाशिवरात्रि महापर्व
पर पत्नी अपने ब्रत
का असर मांगती है,
पति के सामने ही
भगवान से दूसरा वर
मांगती है!
मार्च मे होली..
रंगों की ठिठोली,
तब तो भगवान ही
रखवाला होता है,
पत्नी लाल पीली..
पति का मुह काला होता है!
अप्रैल मे अप्रैल फूल..
मई मे मजदूर दिवस..
जून मे जून ख़राब होती है..
जुलाई के सावन भादो खलते है,
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस..
पति के मन में आज़ाद
है पति!!
सारे गम भूल जाता है..
फिर से हैप्पी न्यू इअर के
झूले में झूल जाता है!
ये भारतीय पति पत्नी के
प्यार का बवंडर है!
हर वर्ष का
शाश्वत दाम्पत्य कलेंडर है!!
" नव वर्ष का आगाज"
जनवरी मे आगाज होता है
नववर्ष का,
पति-पत्नी के बीच बिगुल
बज जाता है संघर्ष का!
मकर संक्रांति पर पत्नी
तिल का ताड बनाकर
लताडती है,
छब्बीस जनवरी को
पति की छाती पर
अपना झंडा गाड़ती है!
इसी बीच फ़रवरी आती है..
महाशिवरात्रि महापर्व
पर पत्नी अपने ब्रत
का असर मांगती है,
पति के सामने ही
भगवान से दूसरा वर
मांगती है!
मार्च मे होली..
रंगों की ठिठोली,
तब तो भगवान ही
रखवाला होता है,
पत्नी लाल पीली..
पति का मुह काला होता है!
अप्रैल मे अप्रैल फूल..
मई मे मजदूर दिवस..
जून मे जून ख़राब होती है..
जुलाई के सावन भादो खलते है,
15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस..
पति के मन में आज़ाद
है पति!!
सारे गम भूल जाता है..
फिर से हैप्पी न्यू इअर के
झूले में झूल जाता है!
ये भारतीय पति पत्नी के
प्यार का बवंडर है!
हर वर्ष का
शाश्वत दाम्पत्य कलेंडर है!!

शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015
"पत्रकारिता का धर्म"

सत्य घटना "ईश्वर की लीला"
सत्य घटना:-
"ईश्वर की लीला"
इसे कहते है नियति का खेल।
ईश्वर की लीला और मर्जी के आगे भला किसी का अब तक चला है ?
"यह कोई कहानी नही हकीकत है, सत्य घटना है"
"शादी के दौरान ठंड लगने से दुल्हन की मौत, डोली में शव लेकर लौटा दूल्हा "
बिहार की राजधानी पटना के बख्तियारपुर में एक शादी की खुशी उस समय मातम में बदल गई, जब दुल्हन बनी सोनी की डोली उठने की जगह कुछ ही समय पहले उसकी मांग में सिंदूर भरने वाले पति ने उसकी अर्थी को कंधा देकर गंगा घाट पहुंचाया. बख्तियारपुर के टेका बिगहा गांव की सोनी कुमारी का विवाह बरियारपुर के नया टोला निवासी विंदा राय के पुत्र दयानंद के साथ रविवार 13 दिसम्बर 2015 की रात हुआ था. शादी में वर-वधू के विवाह की रस्में अंतिम चरण में थीं, सिंदूरदान हो चुका था. जब वर-वधू बड़ों का आशीर्वाद लेने उठे तो अचानक दुल्हन गिरकर बेहोश हो गई. उसे तुरंत बख्तियारपुर के निजी क्लिनिक ले जाया गया. डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
बताया कि ठंड लगने से मौत हुई है. इस घटना के बाद वर एवं वधू पक्ष को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. सोनी के घरवाले अपनी लाडली को डोली में बिठाकर विदा करने की तैयारी में जुटे थे, लेकिन अब उसकी अर्थी सजाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था. किसी ने नहीं सोचा था कि दूल्हा पत्नी के शव की विदाई कराकर ले जाएगा. डॉक्टरों ने बताया कि रातभर ओस में रस्में पूरी करते-करते सोनी को ठंड लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई. दुल्हन की मौत के बाद भी दूल्हा दयानंद ने उसका साथ नहीं छोड़ा. निष्प्राण दुल्हन की विदाई करवाकर दयानंद उसे अपने घर ले गया और गंगा किनारे मुखाग्नि देकर वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया. इस अनहोनी घटना से सोनी के पिता रवींद्र सिंह का रो-रोकर बुरा हाल है. कुछ ही घंटे पहले पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेनेवाले दयानंद के आंसू थम नहीं ले रहे हैं.
"ईश्वर की लीला"
इसे कहते है नियति का खेल।
ईश्वर की लीला और मर्जी के आगे भला किसी का अब तक चला है ?
"यह कोई कहानी नही हकीकत है, सत्य घटना है"
"शादी के दौरान ठंड लगने से दुल्हन की मौत, डोली में शव लेकर लौटा दूल्हा "
बिहार की राजधानी पटना के बख्तियारपुर में एक शादी की खुशी उस समय मातम में बदल गई, जब दुल्हन बनी सोनी की डोली उठने की जगह कुछ ही समय पहले उसकी मांग में सिंदूर भरने वाले पति ने उसकी अर्थी को कंधा देकर गंगा घाट पहुंचाया. बख्तियारपुर के टेका बिगहा गांव की सोनी कुमारी का विवाह बरियारपुर के नया टोला निवासी विंदा राय के पुत्र दयानंद के साथ रविवार 13 दिसम्बर 2015 की रात हुआ था. शादी में वर-वधू के विवाह की रस्में अंतिम चरण में थीं, सिंदूरदान हो चुका था. जब वर-वधू बड़ों का आशीर्वाद लेने उठे तो अचानक दुल्हन गिरकर बेहोश हो गई. उसे तुरंत बख्तियारपुर के निजी क्लिनिक ले जाया गया. डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
बताया कि ठंड लगने से मौत हुई है. इस घटना के बाद वर एवं वधू पक्ष को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. सोनी के घरवाले अपनी लाडली को डोली में बिठाकर विदा करने की तैयारी में जुटे थे, लेकिन अब उसकी अर्थी सजाने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा था. किसी ने नहीं सोचा था कि दूल्हा पत्नी के शव की विदाई कराकर ले जाएगा. डॉक्टरों ने बताया कि रातभर ओस में रस्में पूरी करते-करते सोनी को ठंड लग गई, जिससे उसकी मौत हो गई. दुल्हन की मौत के बाद भी दूल्हा दयानंद ने उसका साथ नहीं छोड़ा. निष्प्राण दुल्हन की विदाई करवाकर दयानंद उसे अपने घर ले गया और गंगा किनारे मुखाग्नि देकर वैदिक रीति से अंतिम संस्कार किया. इस अनहोनी घटना से सोनी के पिता रवींद्र सिंह का रो-रोकर बुरा हाल है. कुछ ही घंटे पहले पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेनेवाले दयानंद के आंसू थम नहीं ले रहे हैं.

शनिवार, 12 दिसंबर 2015
अभिव्यक्ति :- "खूबसूरती"

कहानी : " किस्मत"
कहानी :-
" किस्मत"
एक सेठ जी थे -
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में
की थी.
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण
उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.
जिससे सब धन समाप्त हो गया.
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ
जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते
हो,
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी
मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब
मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी
उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और
बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया
कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख
दी जाये...
यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया
दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा
कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी
घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर
जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच
दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट
मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में
डालकर चला गया.
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर
के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू
लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू
मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ
जी को वापिस बेच दिया.
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ
का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू
फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा
पीट लिया.
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर
जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की
बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही
समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं
जागा...
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी
और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से
ज्यादा
और...
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न
मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै
संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे
आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।
" किस्मत"
एक सेठ जी थे -
जिनके पास काफी दौलत थी.
सेठ जी ने अपनी बेटी की शादी एक बड़े घर में
की थी.
परन्तु बेटी के भाग्य में सुख न होने के कारण
उसका पति जुआरी, शराबी निकल गया.
जिससे सब धन समाप्त हो गया.
बेटी की यह हालत देखकर सेठानी जी रोज सेठ
जी से कहती कि आप दुनिया की मदद करते
हो,
मगर अपनी बेटी परेशानी में होते हुए उसकी
मदद क्यों नहीं करते हो?
सेठ जी कहते कि
"जब उनका भाग्य उदय होगा तो अपने आप सब
मदद करने को तैयार हो जायेंगे..."
एक दिन सेठ जी घर से बाहर गये थे कि, तभी
उनका दामाद घर आ गया.
सास ने दामाद का आदर-सत्कार किया और
बेटी की मदद करने का विचार उसके मन में आया
कि क्यों न मोतीचूर के लड्डूओं में अर्शफिया रख
दी जाये...
यह सोचकर सास ने लड्डूओ के बीच में अर्शफिया
दबा कर रख दी और दामाद को टीका लगा
कर विदा करते समय पांच किलों शुद्ध देशी
घी के लड्डू, जिनमे अर्शफिया थी, दिये...
दामाद लड्डू लेकर घर से चला,
दामाद ने सोचा कि इतना वजन कौन लेकर
जाये क्यों न यहीं मिठाई की दुकान पर बेच
दिये जायें और दामाद ने वह लड्डुयों का पैकेट
मिठाई वाले को बेच दिया और पैसे जेब में
डालकर चला गया.
उधर सेठ जी बाहर से आये तो उन्होंने सोचा घर
के लिये मिठाई की दुकान से मोतीचूर के लड्डू
लेता चलू और सेठ जी ने दुकानदार से लड्डू
मांगे...मिठाई वाले ने वही लड्डू का पैकेट सेठ
जी को वापिस बेच दिया.
सेठ जी लड्डू लेकर घर आये.. सेठानी ने जब लड्डूओ
का वही पैकेट देखा तो सेठानी ने लड्डू
फोडकर देखे, अर्शफिया देख कर अपना माथा
पीट लिया.
सेठानी ने सेठ जी को दामाद के आने से लेकर
जाने तक और लड्डुओं में अर्शफिया छिपाने की
बात कह डाली...
सेठ जी बोले कि भाग्यवान मैंनें पहले ही
समझाया था कि अभी उनका भाग्य नहीं
जागा...
देखा मोहरें ना तो दामाद के भाग्य में थी
और न ही मिठाई वाले के भाग्य में...
इसलिये कहते हैं कि भाग्य से
ज्यादा
और...
समय
से पहले न किसी को कुछ मिला है और न
मीलेगा!ईसी लिये ईशवर जितना दे उसी मै
संतोष करो...
झूला जितना पीछे जाता है, उतना ही आगे
आता है।एकदम बराबर।
सुख और दुख दोनों ही जीवन में बराबर आते हैं।

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015
आलेख : "अपरिचित लेकिन सबसे अनमोल "
आलेख :
"अपरिचित लेकिन सबसे अनमोल"
पति-पत्नी,,,,,
एक बनाया गया रिश्ता,
पहले कभी एक दुसरे को देखा भी नहीं था,
अब सारी जिंदगी एक दुसरे के साथ हैं,
पहले अपरिचित,
फिर धीरे धीरे होता परिचय,
धीरे धीरे होने वाला स्पर्श,
फिर
नोकझोंक....झगड़े....बोलचाल बंद...,
कभी जिद...कभी अहम का भाव,
फिर धीरे धीरे बनती जाती प्रेम पुष्पों की माला ।
फिर
एकजीवता...तृप्तता,
वैवाहिक जीवन को परिपक्व होने में समय लगता है,
धीरे धीरे जीवन में स्वाद और मिठास आती है,
ठीक वैसे ही जैसे,
अचार जैसे जैसे पुराना होता जाता है,
उसका स्वाद बढ़ता जाता है ।
पति पत्नी एक दुसरे को अच्छी प्रकार जानने समझने लगते हैं,
वृक्ष बढ़ता जाता है,
बेलाएँ फूटती जातीं हैं,
फूल आते हैं, फल आते हैं....,
रिश्ता और मजबूत होता जाता है ।
धीरे धीरे बिना एक दुसरे के अच्छा ही नहीं लगता ।
उम्र बढ़ती जाती है, दोनों एक दुसरे पर
अधिक आश्रित होते जाते हैं,
एक दुसरे के बगैर खालीपन महसूस होने लगता है ।
फिर धीरे धीरे मन में एक भय का निर्माण होने लगता है,
"ये चली गईं तो, मैं कैसे जिऊँगा ? "
" ये चले गए तो, मैं कैसे जीऊँगी ?"
अपने मन में घुमड़ते इन सवालों के बीच जैसे,
खुद का स्वतंत्र अस्तित्व दोनों भूल जाते हैं ।
कैसा अनोखा रिश्ता...
कौन कहाँ का.....
एक बनाया गया रिश्ता.....
पति पत्नी का.............
"अपरिचित लेकिन सबसे अनमोल"
पति-पत्नी,,,,,
एक बनाया गया रिश्ता,
पहले कभी एक दुसरे को देखा भी नहीं था,
अब सारी जिंदगी एक दुसरे के साथ हैं,
पहले अपरिचित,
फिर धीरे धीरे होता परिचय,
धीरे धीरे होने वाला स्पर्श,
फिर
नोकझोंक....झगड़े....बोलचाल बंद...,
कभी जिद...कभी अहम का भाव,
फिर धीरे धीरे बनती जाती प्रेम पुष्पों की माला ।
फिर
एकजीवता...तृप्तता,
वैवाहिक जीवन को परिपक्व होने में समय लगता है,
धीरे धीरे जीवन में स्वाद और मिठास आती है,
ठीक वैसे ही जैसे,
अचार जैसे जैसे पुराना होता जाता है,
उसका स्वाद बढ़ता जाता है ।
पति पत्नी एक दुसरे को अच्छी प्रकार जानने समझने लगते हैं,
वृक्ष बढ़ता जाता है,
बेलाएँ फूटती जातीं हैं,
फूल आते हैं, फल आते हैं....,
रिश्ता और मजबूत होता जाता है ।
धीरे धीरे बिना एक दुसरे के अच्छा ही नहीं लगता ।
उम्र बढ़ती जाती है, दोनों एक दुसरे पर
अधिक आश्रित होते जाते हैं,
एक दुसरे के बगैर खालीपन महसूस होने लगता है ।
फिर धीरे धीरे मन में एक भय का निर्माण होने लगता है,
"ये चली गईं तो, मैं कैसे जिऊँगा ? "
" ये चले गए तो, मैं कैसे जीऊँगी ?"
अपने मन में घुमड़ते इन सवालों के बीच जैसे,
खुद का स्वतंत्र अस्तित्व दोनों भूल जाते हैं ।
कैसा अनोखा रिश्ता...
कौन कहाँ का.....
एक बनाया गया रिश्ता.....
पति पत्नी का.............

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