News Update Jharkhand : झारखंड के इतिहास में शिबू सोरेन का नाम एक ऐसे नेता के रूप में दर्ज है, जिन्होंने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और आदिवासी समाज के हक के लिए जंग लड़ी। शिबू सोरेन, जिन्हें प्यार से दिशोम गुरु कहा जाता है, ने अपनी जिंदगी झारखंड के लोगों को समर्पित कर दी। उनकी एक ऐसी कहानी, जो आज भी लोगों के दिलों में आग की तरह जलती है, वह है एक बैंगन के लिए शुरू किया गया आंदोलन। यह घटना उनके साहस और जुल्म के खिलाफ उनकी लड़ाई को दर्शाती है।
एक बैंगन ने जगा दी थी आंदोलन की चिंगारी
बात उस समय की है जब शिबू सोरेन ने देखा कि आदिवासी और गरीब लोग बाजार में सब्जी बेचने के लिए आते थे, लेकिन साहूकार और बिचौलिए उन्हें लूट लेते थे। एक बार एक गरीब आदिवासी महिला को एक बैंगन बेचने के लिए उचित दाम नहीं मिला। यह छोटी सी घटना शिबू सोरेन के लिए बहुत बड़ी थी। उन्होंने इस अन्याय को बर्दाश्त नहीं किया और इसके खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को इकट्ठा किया और साहूकारों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया। यह आंदोलन केवल एक बैंगन के लिए नहीं था, बल्कि यह गरीबों और आदिवासियों के शोषण के खिलाफ एक बड़ा कदम था।
शिबू सोरेन ने इस आंदोलन के जरिए दिखाया कि छोटी-छोटी बातें भी समाज में बदलाव ला सकती हैं। उनकी इस लड़ाई ने झारखंड के लोगों में हक के लिए बोलने की हिम्मत दी। इस आंदोलन ने न केवल स्थानीय स्तर पर असर डाला, बल्कि यह झारखंड आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया, जिसने बाद में अलग राज्य की मांग को और मजबूत किया।
शिबू सोरेन का झारखंड के लिए योगदान
शिबू सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की और आदिवासी हितों के लिए लगातार संघर्ष किया। उनके नेतृत्व में झारखंड अलग राज्य बना, जो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी। वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने और हमेशा गरीबों और आदिवासियों के हक की बात की। उनकी सादगी और जुझारूपन ने उन्हें जनता का सच्चा नेता बनाया।
क्यों याद किए जाते हैं शिबू सोरेन ?
शिबू सोरेन का बैंगन आंदोलन आज भी एक मिसाल है कि छोटे से मुद्दे को भी अगर सही तरीके से उठाया जाए, तो वह बड़े बदलाव का कारण बन सकता है। उनकी यह कहानी झारखंड के हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो अपने हक के लिए लड़ना चाहता है।
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